तिरहुत की लोक-कथा/ जातीय सद्भाव : एक मल्लाह योद्धा ने बचाई ब्राह्मण कुमारी कन्या की लाज

तिरहुत की लोक-कथा/ जातीय सद्भाव : एक मल्लाह योद्धा ने बचाई ब्राह्मण कुमारी कन्या की लाज

गौतम चौधरी 

तीरभुक्ति यानी तिरहुत के लोक जीवन में कमला नदी इस प्रकार रची-बसी है कि उसे आप सहजता से समझ सकते हैं। यह लोक परंपराओं में भी विद्यमान है। यही कारण है कि माई कमला तिरहुत की कई लोक कथाओं में भिन्न-भिन्न रूपों में अभिव्यक्त हुई है। आज हम उन्ही लोक कथाओं में कमला के विमर्श को आपके सामने अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हूं। तसल्ली से पढ़िए और कमला के संपूर्ण व्यक्तित्व का अनुभव कीजिए। 

कमला बिहार तथा तिरहुत की एक प्रसिद्ध नदी है। बिहार की सबसे चंचल नदी कोसी के सन्दर्भ में जो भयावहता जुड़ी हुई है, वैसी बातें तो कमला के साथ नहीं है लेकिन कई ऐसी बातें कमला के साथ जुड़ी है, जो उसे अन्य नदियों के चरित्र से थोड़ा अलग दिखाता है। कोसी का पानी कृषि के लिये उपयोगी नहीं है, जबकि कमला जीबछ है। इसका अर्थ जीवों को अपने अंकों में पालने वाली जीवनदायनी है। तिरहुत में कहा जाता है कि कमला का पानी जहां पड़ जाय वहां की मिट्टी से सोना उगलने लगता है। इतनी जीवनदायिनी नदी होने के बावजूद कमला के बारे में प्राचीन संस्कृत साहित्य में कोई विशेष वर्णन नहीं मिलता। आदि ग्रंथ रामायण तथा महाभारत में भी कोई ऐसा उल्लेख नहीं मिलता जिससे कि यह निर्विवाद संकेत मिले कि कमला को रेखांकित किया गया है। जैन और बौद्ध साहित्य भी कमला पर मौन साध लेता है। लेकिन लोक कथाओं तथा किंवदंतियों में कमला कोसी से ज्यादा जीवंत है। कमला को स्थानीय लोग एक अविवाहित ब्राह्मण कन्या मानते हैं।

लोक कथाओं के अनुसार, ‘‘कमला जब इन्द्र लोक में रहती थी तब एक बार स्वर्ग में सभी देवी-देवताओं की पूजा के लिये मृत्यु लोक में पुजारी नियुक्त किये जा रहे थे। सबके पुजारियों की व्यवस्था तो हो गई मगर कमला छूट गई और कोई ब्राह्मण ऐसा बचा नहीं जो कमला की नियमित पूजा कर सके। तब कमला ने ब्रह्मा से इस बात की शिकायत की। कमला ने कहा, जब ब्राह्मण ही नहीं बचे तो उसकी पूजा कौन करेगा? ब्रह्मा ने कमला को बताया कि वह तो पानी की देवी है अतः उसकी पूजा मल्लाह जाति के लोग करेंगे। उन्होंने कमला से कहा कि मृत्युलोक में विश्वम्भर सरदार और उसकी पत्नी रानी गजवन्ती से जो पुत्र उत्पन्न होगा वही कमला की पूजा शुरू करवायेगा। प्रचलित मान्यता के अनुसार विश्वम्भर सरदार बिहार में दरभंगा जिले के उत्तर पश्चिम में सिंहवारा के पास भरौरा नामक गांव के रहने वाले थे। ब्रह्मा ने जब यह बात कमला को बताई तब यह बालक रानी के गर्भ में था और वहीं से कमला की उत्सुकता इस बच्चे में बढ़ी। गर्भीदयाल सिंह नाम के इस बालक की गर्भ से लेकर उसके विवाह तथा शिक्षा दीक्षा तक की कहानी तिरहुत की लोक-कथाओं में वर्णित है, जिसे गाने व सुनाने वाले इसे कई दिन में कथा को पूरी कर पाते हैं। गर्भीदयाल सिंह का विवाह बेगूसराय जिले में बखरी के पास दुखहरन सरदार और उसकी पत्नी बहुरा से पैदा हुई कन्या धानी से हुआ। बहुरा जादूगरनी थी और उसने विश्वम्भर सरदार और गर्भीदयाल सिंह तथा उनके परिवार वालों को बहुत परेशान किया। हालांकि बाद में माई कमला की कृपा से सब ठीक हो गया। विवाह के बाद गर्भीदयाल सिंह ने तिलयुगा के किनारे कमला की पहली पूजा की और तभी से इलाके के मल्लाह कमला की पूजा करते आ रहे हैं। कुछ ऐसी ही कहानी मल्लाहों के आराध्य देवता जयसिंह और कमला के साथ से जुड़ी हुई है।’’ इस कथा के कई मायने हैं। इसकी व्याख्या कभी बाद में करूंगा।

एक दूसरी कथा के अनुसार ‘‘कमला का एक शुभचिंतक मल्लाह था, जिसका नाम कोइलाबीर है। उसकी कुदाल का बेंट चौरासी मन का और फाल यानी पाट अस्सी मन का था। वह मिट्टी काट-काट कर कमला के लिये रास्ता तैयार करता था और कमला उसका अनुसरण करती थी। लोक कथाओं में कोइलबीर आज भी ऐसा करता है। कोइलाबीर आज भी किसी भी विपत्ति से कमला की रक्षा करता है। कहते हैं कि एक बार चमड़े और हड्डी के कारोबारी, ‘उगला’ की दृष्टि अति सुंदरी ब्राह्मण कन्या, कमला पर पड़ी और उसे इस बात से ईर्ष्या हुई कि कमला की सब लोग पूजा करते हैं मगर उसको कोई नहीं पूछता। उगला ने तय किया कि वह कमला को वह बांध देगा और जैसे ही कमला ऊपर की ओर उठेगी, वह उसे खींच कर अपने घर ले जाएगा, उसकी मांग में सिन्दूर भरेगा और उससे शादी करेगा। कमला उगला के इस संकल्प से डर गई और उसने कोइलाबीर को अपनी व्यथा और उगला की नीयत के बारे में बताया। कोइलाबीर ने उगला के मिट्टी के बांध को जा कर काट दिया और कमला फिर आजाद हो कर बहने लगी।’’ यहां कमला के भाई के रूप में कोइलाबीर को चित्रित किया गया है। 

‘‘उगला भी हार मानने वाला नहीं था। उसने अगली बार कमला को हड्डी का बांध बना कर घेर लिया। कमला फिर कोइलाबीर के पास गई और अपनी तकलीफ सुनाई। कोइलाबीर बाँध तक तो आया मगर यह देख कर कि बाँध हड्डी का बना हुआ था, उसे छूने या तोड़ने से मना कर दिया क्योंकि उसके हिसाब से यह काम अपवित्र था। उसने कमला से कहा कि तुम दिल्ली चली जाओ जहाँ तुम्हें महाराज अमर सिंह नाम का एक राजा मिलेगा जो कि शायद यह हड्डी का बना हुआ बाँध तोड़ दे। राजा ब्रह्मचारी हैं और उसका सात महल का गढ़ है जिसके दक्षिण में चन्दन का एक पेड़ है और वहीं उसका सात कोस का अखाड़ा है जिसे देख कर तुम पहचान जाओगी। कमला दिल्ली आई और अखाड़ा पार कर के चन्दन के पेड़ पर बैठ गई। वहां जब व्रती राजा अमर सिंह पहुँचे तो उन्हें कुछ दाल में काला लगा कि उनकी ताकत घट गई है और वह सोचने लगे कि निश्चित ही इस अखाड़े को किसी स्त्री ने काट दिया है और अखाड़ा अब पहले जैसा नहीं रहा। राजा गुस्से में बड़बड़ाया कि अगर यह स्त्री उसे मिल जाय तो वह उसे एक जोरदार मुक्का मार कर जमीन में अस्सी फुट नीचे दबा देगा। पेड़ पर छिप कर बैठी कमला को विश्वास हो गया कि यही आदमी अमर सिंह है और वह मोरांग जाकर उगला से उसकी रक्षा अवश्य करेगा। कमला प्रत्यक्ष हो गई और सारी बातें उसने अमर सिंह को कह सुनाई कि कैसे-कैसे उगला ने उसे बांध रखा है और सिन्दूर लेकर उसे जबर्दस्ती शादी करने के लिये खोज रहा है। अमर सिंह ने धैर्यपूर्वक कमला की सारी बातें सुनी और उससे वायदा किया कि वह उसकी रक्षा करेगा और ऐसा न कर पाने पर अस्सी कोस के नर्क में गिरेगा।

अमर सिंह क्षत्रीय था। उसका शरीर नौ गज लम्बा और छः गज चैड़ा शरीर था। अमर सिंह मातृभक्त भी था। वह अपनी माता की आज्ञा ले कर उगला व्यापारी से युद्ध करने कमला के साथ चल पड़ा। अमर सिंह का उगला के साथ भीषण युद्ध हुआ और उस युद्ध में उगला मारा गया लेकिन जब बांध की ओर अमर सिंह बढ़ा तो देखा कि यह तो हड्डी का बना हुआ था और हड्डी अमर सिंह भी नहीं छूएगा। अमर सिंह ने कमला से कहा कि वह तो यह हड्डी का बांध नहीं तोड़ पायेंगा। अमर सिंह ने कमला को कहा कि पश्चिम में अरब देश में एक मीरन फकीर रहते हैं, वह इसे जरूर तोड़ देंगे, उनको बुला लाओ। अब कमला मीरन फकीर के पास जाकर हड्डी के बांध को तोड़ने के लिए मनाया। मीरन फकीर आए और कमला पर हड्डी के बने बांध को तोड़ दिया। कमला उस समय से बिना किसी बाधा निरंतर प्रवाहित हो रही है।’’ तब से कमला के साथ-साथ मीरन या मीरा फकीर की पूजा भी होती है। 

कमला की इस लोक कथा में संपूर्ण उपमहाद्वीप की चर्चा है। इसके साथ ही अरब देश की भी चर्चा की गयी है। इसका मतलब यह है कि उन दिनों तिरहुत का केवल राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध दुनिया के अन्य देशों के साथ था अपितु उस समाज का सामाजिक और सांस्कृतिक हस्तक्षेप भी था। इन लोक-कथाओं में कल्पना की कितनी उड़ान है, इसका पता लगाना सहज है लेकिन कल्पना का भी अपना अस्तित्व होता है। जाहिर है नदियां हमारे परिवेश, सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह जमारे लोक जीवन को तो प्रभावित करती ही हैं साथ में हमारी सोच और संस्कृति को भी एक आयाम प्रदान करती है। इनकी हैसियत केवल जल-निकासी की क्षमता से नहीं आंका जा सकता है। बता दूं कि मधुबनी जिले स्थित झंझारपुर के पास कमला के बायें तटबन्ध पर परतापुर में मई कमला का एक मंदिर है, जहां हर वर्ष मेला लगता है। कमला केवल लोक-कथाओं में ही नहीं लोक-गीतों में भी प्रचलित है।

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