गौतम चौधरी
मानसिक चेतना को सशक्त बनाने में शिक्षा की भूमिका अहम होती है। यही नहीं यह किसी प्रकार के वैचारिक और सांप्रदायिक कट्टरपंथ को भी सीमित करता है। वैसे तो दुनिया भर में इसके प्रयोग देखे जा सकते हैं लेकिन बिहार के एक शख्स ने इसे साबित कर दिखाया है।
आज जब मानव जाति मजबूती से अंतरिक्ष में अपना पांव जमा रहा है और दुनिया के कई रहस्यों का उद्भेदन कर रहा है तो उसके सामने कई चुनौतियां भी उपस्थित हो रही है। उन चुनौतियों में से एक बड़ी चुनौती धार्मिक व वैचारिक कट्टरता है। कट्टरपंथ और उग्रवाद की चिंताओं से घिरी दुनिया में डॉ. प्रोफेसर कासिम अहसन वारसी एक ज्योति पुंज के समान दिखाई देते हैं, जिन्होंने शिक्षा के माध्यम से सांप्रदायिक कट्टरता को समाप्त करने का भरसक प्रयास किया। डॉ. वारसी की कहानी, अनगिनत लोगों के साथ, इस बात का एक जीता जागता उदाहरण है कि शिक्षा कैसे आशा की किरण बन कर व्यक्ति को कट्टरपंथ से छुटकारा दिलाता है। साथ ही जीवन को सशक्त बनाने में मददगार साबित होता है।
डाॅ. वारसी का जन्म 10 नवंबर, 1933 को बिहार के अरवल जिले में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो ज्ञान और संस्कृति को महत्व देता था। उनके पिता, शाह मुहम्मद जकी अहसन ने छोटी उम्र से ही उनमें शिक्षा के प्रति प्रेम पैदा कर दिया। प्रारम्भ में डॉ. वारसी ने मौलवी सैय्यद अब्दुल माजिद के मार्गदर्शन में घर पर ही धार्मिक और प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, जिसमें कुरान की पढ़ाई के साथ-साथ अरबी, फारसी और उर्दू भी शामिल थे। डॉ. वारसी के जीवन में उनके पिता की मृत्यु के साथ ही त्रासदी शुरू हो गई। हालांकि, उनकी मां ने पढ़ाई में कभी कोताही नहीं की और उनके जीवन को सजाने व सराहने का बीड़ा उठाया। उनके बेटे की शिक्षा जारी रखी। उन्होंने उसे पास के एक स्कूल में दाखिला दिलाया, उसके बाद पटना मुस्लिम हाई स्कूल में दाखिला कराया, जहां उन्होंने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उनकी शैक्षिक यात्रा अब भी चल रही थी। इस दौरान उन्होंने पटना के बी.एन कॉलेज बी.ए. और बाद में पटना विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
डॉ. वारसी की ज्ञान के प्रति अतृप्त प्यास ने उन्हें दूसरी बार एम.ए. करने के लिए प्रेरित किया। इस बार उर्दू से उन्होंने स्नातकोत्तर उत्तीर्ण किया। उसके बाद उर्दू में ही उन्होंने पीएच.डी. भी कर ली। वारसी यहीं नहीं रूके। डॉ. वारसी के लिए शिक्षा केवल व्यक्तिगत विकास के बारे में नहीं थी। यह उनके समुदाय और उसके जैसे अन्य लोगों के उत्थान के बारे में था। उनका मानना था कि शिक्षा गरीबी के चक्र को तोड़ सकती है, व्यक्तियों को सशक्त बना सकती है और समाज को बदल सकती है। साथ ही मानव को सहिष्णु बनाती है। उनका दृष्टिकोण कक्षा से परे तक फैला हुआ था और उन्होंने उन लोगों के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम किया, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी।
20वीं सदी के बिहार में, जहां मुसलमानों के लिए शैक्षिक अवसर सीमित थे, डॉ. वारसी ने इस अंतर को पाटने के लिए स्कूलों की स्थापना की। प्रसिद्ध शिक्षक डॉ. जाकिर हुसैन से प्रेरित होकर, उन्होंने वंचितों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए पटना में सुल्तान गंज स्कूल खोला, जिसे अब डॉ. जाकिर हुसैन कॉलेज के नाम से जाना जाता है। उन्होंने पटना के न्यू अजीमाबाद कॉलोनी में एमआई हैट उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल की स्थापना की। इस स्कूल ने बिहारी मुस्लिम लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा का द्वार खोल दिया। यह कोई साधारण काम नहीं था और न ही उतना आसान था। अपने द्वारा सोचे गए परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता को उन्होंने पहले ही पहचान लिया था। डॉ. वारसी ने पटना में प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय की स्थापना की। इस संस्था ने अनगिनत शिक्षकों को प्रशिक्षित किया। इसके कारण बिहार में शिक्षा की नयी धारा प्रवाहित होने लगी। शिक्षा के प्रति डॉ. वारसी का समर्पण यहीं नहीं रुका। वह मुस्लिम समुदाय के भीतर शैक्षिक सुधारों की वकालत करते हुए बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड के सदस्य बने। उन्होंने ज्ञान के माध्यम से सशक्तिकरण के संदेश को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किया। आज जो बिहारी समाज शिक्षा के मामले में अन्य किसी प्रांत की तुलना में मजबूती से आगे बढ़ रहा है उसकी भूमिका डाॅ. वारसी जैसे समाज सुधारकों की ही देन है।
डॉ. वारसी की शैक्षिक पहल का प्रभाव बिहार की सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ है। उनकी कहानी, उनके जैसे अनगिनत अन्य लोगों बारे में दर्शाती है कि कट्टरपंथ को रोकने में शिक्षा एक शक्तिशाली हथियार साबित हो सकता है। शिक्षा व्यक्तियों को आलोचनात्मक सोच और अभिनव कौशल से सुसज्जित करती है तथा सहिष्णुता को बढ़ावा देती है। शिक्षा रचनात्मक संवाद को प्रोत्साहित करती है। डॉ. वारसी जैसे शिक्षित व्यक्ति चरमपंथी विचारधाराओं के प्रति कम संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके पास सवाल पूछने, तर्क करने की शक्ति विकसित हो जाती है। साथ ही मानवीय दृष्टि को बढ़ावा देने वाली समझ विकसित हो जाती है। शिक्षा गलत धारणाओं को हतोत्साहित कर देती है। गैर जरूरी रूढ़ियों के खिलाफ खड़े होने की शक्ति प्रदान करती है। विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच दूरियों को पाटने का साहिस प्रदान करती है। गलतफहमियां दूर करती हैं और सद्भाव को बढ़ावा देती हैं। डॉ. प्रोफेसर कासिम अहसन वारसी की जीवन यात्रा, मुस्लिम समुदाय के भीतर शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति को रेखांकित करती है। शिक्षा व्यक्तियों को सशक्त बनाती है, उनकी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाती है और सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्हें कट्टरपंथ से बचाकर नयी जीवन दृष्टि देती है।