गया/ शैक्षणिक उत्कृष्टता एवं गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए प्रदेश में प्रख्यात दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) ने एक बार फिर वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाई है।
जन सम्पर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि पदार्थ विज्ञान से जुड़े आधारभूत प्रश्नों एवं प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ध्यन करने के लिए सीयूएसबी एवं जापान के एटॉमिक एनर्जी नेशनल लेबोरेटरी के बीच पूर्णतः अनुदानित शोध परियोजना पर करार हुआ है। जहां विश्व के तीन हजार वैज्ञानिक शोध करेंगे।
पीआरओ ने बताया कि विवि के भौतिकी विभाग के सह प्राध्यापक डॉ विजय राज सिंह के अथक प्रयासों के बाद सीयूएसबी को वैश्विक विज्ञान परियोजना ष्यूटिलाइजेशन ऑफ इनहॉउस एंड मेगा साइंस बाई सिंक्रोटॉन रेडिएशन ऑफ डेटा स्टोरेज मैटेरियल्सष् पर अध्यन के लिए सहयोगी सदस्य बनने में सफलता मिली है।
सीयूएसबी बिहार राज्य में स्थित पहली संस्था है जिसे इस परियोजना के लिए सहयोगी सदस्य के रूप में चयनित किया गया है।
इस परियोजना को प्राप्त करने के लिए डॉ. विजय राज सिंह और उनकी शोधार्थियों की टीम में शामिल मुफीदुज्जमां, रिया और आराधना कई महीनों से प्रयासरत थे।
डॉ. सिंह और उनके शोधार्थियों को मिली सफलता के लिए कुलपति प्रोफेसर कामेश्वर नाथ सिंह, कुलसचिव कर्नल राजीव कुमार सिंह ने काफी सराहना की है। वहीं, इस उपलब्धि पर डीन एवं भौतिकी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर वेंकटेश सिंह एवं विभाग के अन्य प्राध्यापकों ने डॉ. सिंह एवं इनकी टीम को बधाई तथा शुभकामनाएं दी है।
इस बारे में डॉ. विजय राज सिंह ने बताया कि इस परियोजना से हमें सॉलिड स्टेट फिजिक्स, मटेरियल साइंस एंड स्पिनट्रोनिक डिवाइसेज को प्रभावित करने वाले मूलभूत कारकों की ज्यादा अच्छी जानकारी मिलेगी। साथ ही हम पदार्थ विज्ञान के छुपे रहस्यों को भी जान पाएंगे जो डेन्स डाटा स्टोरेज डिवाइसेज के लिए जरूरी होता है।
उन्होंने बताया कि उनके साथ शोधार्थियों की टीम इस परियोजना में एक अहम भूमिका निभाएंगे और शोध के परिणामों के विभिन्न आयामों का अध्धयन विवि के प्रयोगशाला में किया जाएगा।वें कहते हैं कि उम्मीद है कि इस शोध से काफी उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त होंगे जिससे सीयूएसबी के साथ – साथ बिहार तथा भारत को भौतिकी तथा पदार्थ विज्ञान के अध्धयन से सहभागिता को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी।
इस मेगा साइंस परियोजना को जापान के केईके – पीएफ नेशनल लेबोरेटरी द्वारा संचालित किया जाता है और यह त्सुकुसा के निकट ओहो में स्थित है।इस परियोजना में दुनियाभर के 150 संस्थानों के तीन हजार से ज्यादा वैज्ञानिक एक साथ शोध करेंगें।