खेती किसानी/ किसानों की बढ़ती आत्महत्या की संख्या भारत के आर्थिक दशा का मूल्यांकन

खेती किसानी/ किसानों की बढ़ती आत्महत्या की संख्या भारत के आर्थिक दशा का मूल्यांकन

गौतम चौधरी 

अभी हाल ही में भारत सरकार के एक खास प्रतिष्ठाान National Crime Records Bureau (NCRB) में खुलासा हुआ है कि 2019 के बाद किसानों की आत्महत्या में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट में विस्तार से इस बात पर चर्चा की गयी है। साथ ही 2019 के बाद प्रतिवर्ष कितने किसानों ने आत्महत्या की उसका भी रिपोर्ट जारी किया गया है। सच पूछिए तो भारत, एक कृषि प्रधान देश है और यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह खेती-किसानी पर आधारित है। अगर भारत की खेती चौपट हो जाती है तो लाख कोशिश के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो जाएगी। हमारे यहां किसानों की आत्महत्या, एक सामाजिक और आर्थिक समस्या के रूप में देखा जा सकता है। पिछले कुछ सालों में यह गंभीर रूप लिया है और 2019 के बाद से इसकी वृद्धि को लेकर चिंता स्वाभाविक है। इस लेख में, हम किसानों की आत्महत्या के पीछे के कारणों और समाधानों के बारे में विचार करेंगे।

किसानों की आत्महत्या के कारणों पर गौर किया जाए तो कई तथ्य सामने आते हैं। जब से खेती में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ है तब से किसान अक्सर आर्थिक समस्याओं का सामना करते देखे जा रहे हैं। जैसे कि कर्ज, उचित मूल्य न मिलने और नकदी की कमी। किसानों को उनके फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाता है। यहां बिचैलिए बड़े प्रभावशाली तरीके से सक्रिय होते हैं, जो किसानों के हक को मार ले जाते हैं। सरकार इस दिशा में कई कदम उठाई है लेकिन उसका प्रतिफल सामने नहीं आ पा रहा है। उदाहरण के लिए, यदि बाजार में टमाटर की कीमत 50 रूपये हैं तो किसानों को किलो पर मात्र 10 रूपये ही प्राप्त हो पाता है। दूसरी बात किसानों को अभी भी अपने फसल की बिक्री के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध नहीं हो पाया है। जहां सहकारी या सरकारी मंडियां हैं वहां भी किसानों को सरकार के द्वारा जारी समर्थन मूल्य से कम पर अपना उत्पाद बेचकर वापस आना होता है। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनके साथ परेशानी होती है। वे कई दिनों तक मंडियों का धक्का खाते रहते हैं। मंडियों के आढ़ती इतने सशक्त और संगठित हैं कि वहां किसानों की एक नहीं चलती है। सरकार फसलों पर लगातार समर्थन मूल्य बढ़ाती जा रही है। उसी समर्थन मूल्य के अनुसार बीज, उर्वरक, कीटनाशक, डीजल आदि के दाम बढ़ जाते हैं। इधर किसान अपनी फसलों के लिए महंगे खाद, बीज, किटनाशकों का उपयोग करते हैं लेकिन जब उत्पाद सामने होता है तो उसकी कीमत बेहद कम लगाई जाती है। इस पर सरकार को तसल्ली से विचार करना होगा।  

दूसरी बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन की है। अद्यतन जलवायु परिवर्तन परिवर्तन के कारण बारिश, अनियमित होने लगी है। यही नहीं जहां पानी की कमी नहीं होती थी वहां बारिश कम हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण कई प्रकार की समस्या आ रही है। इस परिवर्तन के कारण भी किसान परेशान हैं। 

आत्महत्या के लिए किसानों का मानसिक स्वास्थ्य भी जिम्मेबार है। धन, समाजिक दबाव और किसानों की अधिकतम मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण, उनकी मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके कारण भी किसान आत्महत्या के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके अलावे किसानों में अनुभव और ज्ञान की कमी भी देखी जा रही है। भारत के अधिकतर किसान आधुनिक तकनीक से दूर हैं। वे छोटे और मझोले किस्म के किसान हैं लेकिन खेती की तकनीक का जो वे उपयोग करते हैं वे बड़े किसानों वाली होती है। इसके कारण उनकी खेती मंहगी हो जाती है। यदि वे प्रशिक्षित हों तो इस प्रकार की गलती वे नहीं करेंगे। यही नहीं किसानों को यह सोचना होगा कि उनकी फसल का आखिर बढ़िया बाजार कहां उपलब्ध होगा। बाजार आधारित खेती भारतीय किसानों की आदत में ही नहीं है।

इस सबसे महत्वपूर्ण बात सरकारी नीतियों की है। भारत सरकार इन दिनों किसानों के खाते में सहयोग के तौर पर सीधे राशि उपलब्ध करा दे रही है। इसमें सरकार की मन्शा पर तो प्रश्न नहीं खड़ा किया जा सकता है लेकिन इसका कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। सरकार को इसके लिए बड़े त्याग करने होंगे। साथ ही किसानों की जो सबसे बड़ी समस्या फसलों के बाजार की है उसके लिए सरकार को ही प्रयास करना होगा। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है। इसे दूर करना जरूरी है। 

समाधान के तौर पर देखें तो किसानों को आत्महत्या से रोकने के लिए उसे ऋणमुक्ति करना होगा। कुछ राज्य सरकारें किसानों के लिए ऋणमुक्ति कार्यक्रम चला रही हैं जिससे उनका कर्जा माफ किया जा रहा है लेकिन यह नाकाफी है। इसे बड़े पैमाने पर चलाना होगा। मूल्य निर्धारण की समस्या का समाधान तत्काल करना होगा। सरकारें किसानों के उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों को सुनिश्चित करने के उपायों पर विचार कर रही हैं लेकिन इसका भी दायरा बढ़ाना होगा। कृषि बीमा इसके लिए एक समाधान तो है लेकिन इसमें भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है। किसानों को अप्राकृतिक हानियों से सुरक्षित रखने के लिए कृषि बीमा योजनाएं प्रदान की जा रही हैं। इसे और प्रभावशाली बनाना होगा। किसानों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचानी होगी। सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कोई स्वायत्तता प्रभावशाली अभिकरण की स्थापना करे जो किसानों को तकनीकी सहायता और आधुनिक कृषि का प्रशिक्षण प्रदान करे। 

कुल मिलाकर किसानों की आत्महत्या एक गंभीर समस्या है और इसका समाधान बेहद जरूरी है। इसके लिए किसानों को भी थोड़ा आगे आना होगा। इस बड़ी समस्या से जूझने के लिए केवल सरकारी सहायता जरूरी नहीं है। सरकार के साथ ही साथ समाज और विभिन्न स्थानीय संगठनों को भी आगे आना होगा। खेती किसानी में सुधार के लिए प्रभावशाली कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए केवल सरकार को ही नहीं कोसा जा सकता है खुद को भी इसके लिए जिम्मेदार मानना होगा और उसके आधार पर रणनीति तय करनी होगी। भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां के किसानों का महत्व देश की आर्थिक सुरक्षा के लिए अत्यधिक है। किसान निरंतर अन्न और फसलें उत्पादित करके देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। इसके लिए भी किसानों का बचा रहना जरूरी है। 

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