रेलवे रक्षा जवान द्वारा कत्ल को धार्मिक रंग देना कौम और मादरे वतन दोनों के साथ गद्दारी 

रेलवे रक्षा जवान द्वारा कत्ल को धार्मिक रंग देना कौम और मादरे वतन दोनों के साथ गद्दारी 

गौतम चौधरी 

विगत दिनों एक सनसनी मामला सामने आया। मानसिक रूप से अस्वस्थ रेलवे पुलिस बल के एक जवान, चेतन सिंह ने जयपुर-मुंबई सुपरफ़ास्ट एक्सप्रेस ट्रेन में अपने सीनियर सहित कई दूसरे यात्रियों का बेरहमी से कत्ल कर दिया। आरोपी चेतन अपने बयान में बताया कि ट्रेन में वह सो रहा था तो मृत पिता उसके सपने में आए और कहे कि जो भी तुम्हारे रास्ते में आए उसे खत्म कर दो। सबसे पहले उसने बी-5 कोच में टाॅलेट के पास एएसआई टीकाराम मीणा पर सर्विस राइफल से चार राउंड फायर किया। फिर कोच के दूसरे छोर पर भानुवाला पर फायर किया। इसके अलावा एस-6 कोच में असगर अब्बास पर फायरिंग की और इससे सटे पैंट्री कार में भी एक अन्य यात्री पर गोली चलाई। एस-5 कोच में मीरा रोड से दाहिसर के बीच जब ट्रेंन की जंजीर खींची गई और ट्रेंन रुकी तब चेतन सिंह भागने के फिराक में था लेकिन उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उस दिन ट्रेंन में चेतन जब अपनी राइफल लेकर चढ़ा था तो वह किसी भी यात्री से उसकी पहचान नहीं पूछी थी। इसके अलावा ट्रेंन में और भी दाढ़ी व टोपी पहने मुसलमानी रिवास में लोग बैठे थे। बावजूद इसके चेतन ने अन्य किसी भी मुसलमानी लिबास वाले शख्स पर गोली नहीं चलाई। निश्चित रूप से यह कत्ल इंसानियत के खिलाफ है। जितनी हो सके इसकी भर्त्सना होनी चाहिए। यह इंसानियत को शर्मसार करने वाला कृत्य है। शासन के द्वारा फौरी तौर पर कार्रवाई करते हुए चेतन को गिरफ्तार कर लिया गया है। भारतीय दंड संहिता के अनुसार उसपर कार्रवाई की प्रक्रिया भी प्रारंभ कर दी गयी है। फिलहाल चेतन सिंह जेल में है। बावजूद इसके इस मामले को सांप्रदायिक रंग देना निःसंदेह ओछी मानसिकता का परिचायक है। 

आरोपी चेतन सिंह के पागलपन भरी मानसिक बीमारी की वजह से किए गए शूटआउट में 2 हिन्दुओं की भी जान गयी। चेतन ने अपने पागलपन के कारण तीन मुसलमान और दो हिन्दुओं को निशाना बनाया। वैसे इस वारदात में कुल छह लोगों की जान गयी है। ऐसे में इस बारदात को धार्मिक चश्मे से देखना और बताना कि यह किसी खास संप्रदाय के खिलाफ शासन के द्वारा की गई साजिश है, तो इससे ज्यादा हास्यास्पद और कुछ हो ही नहीं सकता है। हालांकि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को परास्त करने के लिए अधिकतर राजनेता इस प्रकार के बयान जारी करते रहते हैं लेकिन इससे समाज और देश को बहुत घाटा होता है। इस प्रकार के बयान जारी करने से पहले देश, कौम और समाज को ध्यान में रखना चाहिए। इस प्रकार के बयान को सेलेक्टिव कहा जाना चाहिए और इसे नफरती भी करार दिया जाना चाहिए। विगत लंबे समय से इस प्रकार के बयानबाजों को मुसलमानों का हितठेकेदार बता दिया जाता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। इस प्रकार के बयान देने वाले मुस्लिम नेता अंततः मुसलमानों का ही अहित करते देखे गए हैं। 

इस मामले में अपने को मुसलमानों का हितचिंतक कहने वाले कई नेताओं ने साम्प्रदायिक बयान जारी किया है, जिसमें राणा अय्यूब, असदुद्दीन ओवैसी आदि कई नेता शामिल हैं। इनके जैसे कथित मुस्लिम हमदर्दों ने घटना के फौरन बाद अपनी घटिया सियासत शुरू कर दी। राणा अय्यूब ने अपने ट्वीट के जरिए एक सियासी जमात को निशाना बनाते हुए हेट स्पीच का हवाला देकर इस घटना को तूल दे सांप्रदायिक रूप देने की कोछी कोशिश की। वहीं ओवैसी साहब ने इसे मुस्लिमों के खिलाफ एक आतंकवादी घटना करार दिया। हेट स्पीच को मुद्दा बनाते हुए राणा अय्यूब ने जिस प्रकार ट्वीट किया है, वह मात्र हेट स्पीच का मामला नहीं है, बल्कि उनके द्वारा सियासी निशाना साधते हुए भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का प्रयास भी है। ओवैसी वायरल वीडियो के आधार पर जिस कांस्टेबल चेतन सिंह के कथन को आधार बनाकर इसे आतंकी घटना बता रहे हैं, गौरतलब है कि चेतन मानसिक रूप से बीमार और अस्थिर चित्त का व्यक्ति है। 

राणा अय्यूब और उनके जैसे लोग जिसको वाकई मुसलमानों की फिक्र होती और हेट स्पीच का मसला उनकी निगाह में महत्व रखता, तो वे सबसे पहले उन लोगों के खिलाफ आवाज बुलंद करते जो खुद को मुसलमान कहते हुए दूसरे फिरके के मुसलमानों को बिना वजह उनकी धार्मिक आस्था के आधार पर टारगेट करते हुए उनके खिलाफ नफरती बयानबाजी करते फिरते हैं। राणा अय्यूब को उन लोगों की भी खबर लेनी चाहिए जो अपनी मस्जिदों में यह बोर्ड लगा कर बैठे हैं कि किसी दूसरे फिरके के लोग इस मस्जिद में ना आए और अगर आ भी गए तो अपनी हालत के जिम्मेदार वे खुद होंगे। राणा साहब को वह बातें दिखाई नहीं देती कि जब किसी खास मसलक की मस्जिद में दूसरे मुसलमान पहुंच जाते हैं तो उस मस्जिद को धुलवाया जाता है। राणा अय्यूब साहब की निगाह में क्या वह बातें नहीं गुजरती कि जब हेट स्पीच के जरिए दूसरे फिरके के लोगों को दहशत का शिकार बनाने की कोशिश की जाती है। अभी हाल ही में मोहर्रम के दिन सूफी मुसलमानों के खिलाफ खौफ का माहौल बनाने की कोशिश की। सूफियों के आस्था पर आघात किया गया। 

संविधान और संवैधानिक मूल्यों की दुहाई देने वाले तथाकथित मुस्लिम नेता उस वक्त कहां चले जाते हैं जब खुद को मुसलमान कहने वाला एक मजहब जुनूनी टोला दूसरे मुसलमानों को उनकी धार्मिक आस्था के आधार पर उनका शोषण करता है। उनका अपमान करता है और उनके खिलाफ हिंसक वारदातों को अंजाम देता हैं। क्या राणा अय्यूब, ओवैसी और उनके जैसे लोग इस बात का जवाब देंगे? हरगिज नहीं देंगे, क्योंकि इनका मुसलमानों से कोई लेनादेना है ही नहीं। ऐसे लोगों को मुसलमानों की परेशानियों से, उनकी तकलीफों से कोई मतलब नहीं होता है। इस प्रकार के लोग, ऐसी घटनाओं के आधार पर एक दंतकथा गढ़ते हैं और अपने हित के लिए भारत को दुनिया में बदनाम करने की कोशिश करते हैं। ये कथित मुसलमानों के नेता बस अपने हित के लिए कौम और मादरे वतन दोनों के साथ गद्दारी कर रहे हैं।  

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