भारत को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है जस्टिस फॉर ऑल द्वारा PFI का महिमामंडन

भारत को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है जस्टिस फॉर ऑल द्वारा PFI का महिमामंडन

गौतम चौधरी

इसी वर्ष ठीक तीन महीने पहले भारत में इस्लामोफोबिया विषय पर संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागो में एक वेबिनार का आयोजन किया गया था। यह आयोजन किसी गैर सरकारी संगठन, जस्टिस फॉर ऑल (जेएफए) द्वारा आयोजित था। वेबिनार की विषय वस्तु के पीछे के पाखंड का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वेबिनार के प्रमुख वक्ताओं में से एक भारत के कट्टरपंथी संगठन ‘‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’’ (पीएफआई) के महासचिव अनीस अहमद थे, जिनका हिंसक अतीत जगजाहिर है।

शुरुआत में, जेएफए ने पीएफआई को सामाजिक आंदोलन के रूप में पेश किया, जबकि अनीस अहमद को मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में वहां प्रदर्शित किया गया। इस विषय में भारत सरकार ने किस तरह से अपना पक्ष रखा है पता नहीं लेकिन अनीस अहमद और पीएफआई की गतिविधियों के बारे में भारत ही नहीं दुनिया के कई देश वाकफ हैं। पीएफआई भेड़ के रूप में भेड़ियों जैसा व्यवहार करता रहा है लेकिन भारत को तोड़ने एवं बदनाम करने वाले संगठन जेएफए को इससे क्या लेना-देना। उसके द्वारा पीएफआई के महासचिव निहायत नेक दिल इंसान हैं। दरअसल, अमेरिका एक बार फिर से भारत विरोधी जमात को हवा देने लगा है। इसी का प्रतिफल है, जो इस प्रकार के संगठन और इस प्रकार के लोगों को अमेरिका में जगह मिल रहा है। जस्टिस फाॅल आॅल भारत में सक्रिय अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी इस्लामिक जमात को हवा देकर खुद के पैर में कुल्हाड़ी मार रहा है। पीएफआई के बारे में हाजारों पेज के नकारात्मक तथ्य सोशल मीडिया और इंटरनेट पर भरे पड़े हैं लेकिन जेएफए को इससे कोई लेना देना नहीं है। उसे तो बस भारत को बदनाम करना है।

पीएफआई बदला लेने वाली हत्याओं, अवैध रूप से धार्मांतरण, दंगे भड़काने, मनी लॉन्ड्रिंग आदि के लिए कुख्यात है और इसके नेताओं जैसे एंट्स अहमद ने हमास जैसे आतंकवादी संगठनों की हिंसक कार्रवाइयों की कई बार खुले तौर पर प्रशंसा की है। अनीस अहमद जैसे लोगों और पीएफआई जैसे उनके मूल संगठन ने देश को भीतर से नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सच पूछिए तो इस्लामोफोबिया इन इंडिया शीर्षक अपने आप में एक गलत शीर्षक है जिसे पाकिस्तान, पीएफआई जैसे देश व संगठनों ने आगे बढ़ाया है। जहां तक जेएफए का सवाल है, इसका भारत को इस्लामोफोबिक राष्ट्र के रूप में चित्रित करने का लंबा इतिहास है। जेएफए को यह समझना चाहिए कि मुठी भर मुसलमानों को लेकर वह कोई बड़ी धारणा नहीं बना सकता है। भारत में 15 करोड़ से अधिक मुसलमान रहते हैं और अधिकतर मुसलमान इस देश के संविधान और कानून पर भरोसा करते हैं। इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। अमेरिका या उनके द्वारा संपोषित संगठनों को समझ लेना चाहिए कि भारत के मुसलमानों को भड़काने की कोशिश उनकी नाकाम रही है ओर आगे भी रहेगी। ज्यादातर बार, विदेशी प्रायोजित संगठनों जैसे जेएफए, आईएएमसी, आदि द्वारा आपराधिक घटनाओं को इस्लामोफोबिक करार दिया जाता है। वास्तविकता इससे बहुत दूर है।

अन्य प्रमुख प्रतिभागियों में से एक, मुजफ्फरनगर की नैला सईद ने वर्तमान सरकार पर मुसलमानों के खिलाफ व्यवस्थित भेदभाव का आरोप लगाया, लेकिन इस तथ्य का उल्लेख करने में विफल रही कि उनके पिता सैयद सईदज्जमां (पूर्व मंत्री, कांग्रेस नेता) और उनके भाई सलमान सईद मुजफ्फरनगर दंगों में आरोपी थे। बता दें कि सईद के भाई और पिता मुस्लिम बहुल खालापार इलाके में भड़काऊ भाषण दिए। इस भाषण के कारण 153 ए सहित विभिन्न धाराओं के तहत उन पर मामला दर्ज किया गया था, जिसके कारण अंततः मुजफ्फरनगर, यूपी में सबसे भीषण दंगे हुए। नैला सईद ने सत्तारूढ़ पार्टी को इस्लामोफोबिक घोषित करके कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक लड़ाई में ब्राउनी पॉइंट हासिल करने की कोशिश की है। नैला ने जानबूझकर अपने द्वारा उल्लिखित मामलों पर पुलिस और न्यायपालिका द्वारा की गई त्वरित कार्रवाई के तथ्यों को भी छिपाया। इससे उनकी निष्पक्षता और मंशा पर सवाल खड़ा होता है।

वेबिनार के एक अन्य प्रतियोगी चिन्नैया जंगम ने वर्तमान सरकार को दलित विरोधी और आदिवासी विरोधी घोषित किया। गौरतलब है कि भारत के निवर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद एक निम्न जाति के दलित थे और द्रौपदी मुर्मू- जिन्होंने उनकी जगह ली वह ओडिशा की आदिवासी महिला हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही दर्जनों दलित व आदिवासी-समर्थक कल्याणकारी योजनाओं का उल्लेख किए बिना भी उपरोक्त दो उदाहरण स्वयं चिन्नैया जंगम द्वारा सामने रखे गए जो उनकी ही मान्यता को खारिज करता है।

मुस्लिम कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा का एक संपादकीय राष्ट्रीय समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस के 05 जुलाई, 2022 संस्करण में प्रकाशित हुआ था। संपादकीय में मुसलमानों से संबंधित भारतीय न्यायपालिका के विभिन्न निर्णयों के बारे में विवरण दिया गया है और यह साबित करता है कि मुस्लिम, विशेष रूप से मुस्लिम महिलाएं, विद्वान न्यायाधीशों के अधिकांश निर्णयों से लाभ प्राप्त की है। हिंदू महिलाओं की तुलना में वह ज्यादा संतुलन हैं। जेएफए का भारत में इस्लामोफोबिया का रोना दुनिया भर में बैठे अपने आकाओं को खुश करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने के अलावा और कुछ नहीं है। जेएफए के आईसीएनए, साउंड विजन आदि जैसे संगठनों द्वारा भारत के प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), जेइआई, लश्कर और एचएम आदि के साथ संबंध हैं। ऐसे संगठन का मानवाधिकार और इस्लामोफोबिया पर व्याख्यान देना कहां तक तथ्यपरक है?

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