गोंड आदिवासियों की निराली व मस्ती भरी जीवन शैली 

गोंड आदिवासियों की निराली व मस्ती भरी जीवन शैली 

देवेन्द्र नीखरा

गोंड आदिवासी भारत में निवास करने वाली जाति है जो वर्तमान में अनुसूचित जनजाति के नाम से जानी जाती हैं। भारत में प्राचीन काल में गोंड राजाओं का गौरवशाली राज्य स्थापित था। उनके महलों के खंडर व किले रहती, गोरझामर, देवरी, मण्डला, गढ़कोढ़ा, देवगढ़ आदि स्थानों में हैं जो गोंड राजाओं के ऐतिहासिक सांस्कृतिक राज्य की गाथा के प्रमाण हैं। मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग में गोंड जाति निवास करती है। मंडला, बैतूल, बालाघाट, होशंगाबाद , बस्तर, सागर, दमोह, छिंदवाड़ा आदि गोंडों के प्रमुख स्थानों में से हैं।

गोंडों का चेहरा चपटा, माथा चैड़ा और कुछ लंबा, नाक चपटी, नथुने चैड़े होते हैं। काली आंखें, उभरी हुई पलकें, सांवला और काला रंग सुगठित शरीर और मध्यम कद होता है। गोंड स्त्रिायां व पुरूष दोनों ही शर्मीले-लजीले व चपल सीधे स्वभाव के होते हैं। ये सच्चे दिल वाले और विश्वसनीय होते हैं। दुनियां के झंझटों से मुक्त मस्ती भरा जीवन जीना अधिक पसंद करते हैं। ये अभावों में जीते हैं। इनमें सहनशीलता बहुत अधिक होती है।

गांेड पुरूष घुटने तक धोती, लंगोटी और कमीज पहनते हैं। नीले और काले रंग की बंडी व कंधे पर अंगोछा रखते हैं। स्त्रिायां घुटने तक साड़ी कॉछ लगातार पहनती हैं। वे लाल, हरा, जामुनी व गहरे रंग अधिक पसंद करती हैं। पैरों में तोड़ा, हाथों में चूड़ियां, गले में हमेल (जो सिक्कों के आभूषण की बनी होती हैं)। अंगूठी आदि स्त्रिायों के आभूषण हैं। पुरूष भी आभूषण पहनते हैं। गले में मोहरे, कान में बुंदा, कलाई में चुड़ा तथा अंगूठी पहनते हैं।

स्त्रिायों को गुदने गुदवाने का बहुत शौक होता है। ये शरीर पर बहुत स्थानों पर गुदने गुदवाती हैं। अधिकांश स्त्रिायां व पुरूष नंगे पैर रहते हैं। गांेडों का मुख्य भोजन ‘पेज’ है जो कुदई, कुअकी, मकई, ज्वार आदि से बनता है। जंगली पत्तों की भाजी और नमक का साग होता है। ये मांस बड़े चाव से खाते हैं। गोंड लोग ‘दारू’ विशेष रूप से पसंद करते हैं। बूढ़े बच्चे और महिला सभी दारू पीते हैं, यहां तक कि देवी देवता की पूजा, सगाई, विवाह, त्योहारों व अन्य उत्सव में ‘दारू’ अवश्य पीते हैं। गोंड लोग महुआ को देवता मानते हैं।

गोंडों के जीविका साधन कम और परंपरागत होते हैं। ये अपना सारा जीवन भोजन, वस्त्रा और मकान की तलाश में लगा देते हैं। गोंड मुख्य रूप से खेती करते हैं। धान, कोदों, कुटकी, तिलहन, चावल, मक्का, तिमली, गेहूं, चना, राई, मसूर तथा अलसी आदि फसल उगाते हैं। खेती ही इनकी जीविका का साधन है, तथा जंगलों से चिरांेजी, लाख, महुआ, शहद, रार, बीड़ी, पत्ता, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा कर बेचकर नगद पैसा कमा लेते हैं। पत्तों से बने पत्तल दोने आदि बेचकर भी पैसे कमाते हैं।

गोंड पुरूष बहुत मेहनती होते हैं। पुरूषों की भांति स्त्रिायां भी घर, खेत, बाजारोें के कार्य मजदूरी आदि मेहनती कार्य में पुरूषों के बराबर हक रखती हैं। गोंड लोग अंधविश्वासी होते हैं। ये लोग जादू- टोना आदि पर विश्वास रखते है। उनका पुजारी ओझा होता है जो इनका डाक्टर भी है। रोगों का इलाज झाड़-फूंक व जंगली औषधि के प्रयोग से करते हैं।

इनके आवास मिट्टी घास, फूस, बांस आदि के बने होते हैं। मकान की दीवार मिट्टी भूसा मिलाकर बनाते हैं। मकान के पीछे की ओर बाड़ी तथा मकान सामने आंगन अवश्य होता है। आंगन के पास और लकडि़यों से घेरकर गोशाला बनी होती है। मकान के अंदर पानी रखने की घिनौची होती है जो जमीन से ऊंची होती है। दीवारों पर फूल पत्ते, पशु-पक्षी के रेखांकित चित्रा बने होते हैं। मकान में एक बंगला होता है जिसमें मेहमानों को ठहराया जाता है।

गांेड लोग शिकार के बहुत शौकीन होते हैं। गुलेल, गोफन, जाल विभिन्न प्रकार के फोंदा आदि से पक्षी तथा छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। बड़े जानवरों को मारने के लिए तीर, भाला आदि का उपयोग करते हैं। शिकार के अलावा गोंड लोग नृत्य, गंीत, संगीत कला के भी शौकीन होते हैं। सेला, गेड़ी, सुआ आदि इनके प्रसिद्ध सामूहिक नृत्य हैं। ढोलक, टिमकी, सींग बाजा एवं बांसुरी आदि इनके वाद्य यंत्रा हैं। ये लोग त्योहार, उत्सवों आदि में सामूहिक नृत्य, गीत संगीत से आनंद लेते हैं।

(अदिति)

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