वैसे तो भारत एक धर्मनिर्पेक्ष देश है। भारतीय राजनीतिक चिंतन में धर्मनिर्पेक्षता रचीबसी है लेकिन इतिहास की कुछ ऐसी घटनाएं हमें जानना चाहिए, जिसके कारण हम प्रतंत्रता के लिए बाध्य हुए। इन घटनाओं ने हमें अपने सनातम मूल्यों पर फिर-से विचार करने के लिए बाध्य किया। इन्हीं घटनाओं में एक गोवा की घटना है। आइए इसे तसल्ली से जानते हैं।
प्रतीक खरे
गोवा भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है। रमणीय समुद्र तट, नीले पानी, सुनहरी रेत और सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र। लेकिन इसके अतीत में आज भी भयावह सच मौजूद हैं। यह हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि इस छोटे से राज्य में आज बचे हुए हिन्दुओं को अपनी पहचान ऐसे स्मारकों में तलाशनी पड़ रही है, जिन्हें कभी ईसाई मिशनरियों ने उन्हीं के रक्त से सींचा था।
भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गोवा के वेल्हा में चर्च और आश्रम, पुर्तगाली शासन के दौर से ही मौजूद हैं। 16वीं और 17वीं शताब्दी के बीच पुराने गोवा में व्यापक स्तर पर चर्चों और गिरजाघरों का निर्माण किया गया था। दुर्भाग से स्वतन्त्र भारत में इन कुछ चर्चों और आश्रमों को वर्ष 1986 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। यूँ तो इतिहास में बहुत कुछ दफन है लेकिन एक ऐसा स्तम्भ, जिस पर कभी कहीं भी बात नहीं की जाती, वह है गोवा का हाथ काटरो खम्भ ।
आज हम इस से सम्बन्धित इतिहास को जानेंगे लेकिन इससे पहले यह जानना आवश्यक है कि इसकी शुरुआत कब और कहा से हुई। फ्रांसिस जेवियर के नाम पर आज देशभर में कई स्कूल, कॉलेज, संगठन और गिरजाघर मौजूद हैं।
ईसाई मिशनरी धर्म प्रचारक सेंट फ्रांसिस जेवियर पुर्तगाली काफिले के साथ भारत आया था। उसने भारत पहुँचकर ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। वह ‘सोसायटी ऑफ जीसस’ से जुड़ा था।
16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, दक्षिण भारत से होने वाले मसालों के व्यापार ने भगवान परशुराम की कर्मस्थली को एक बहु-सांस्कृतिक शहर में बदल दिया जिसे आज हम गोवा के रूप में जानते हैं। देखते ही देखते पुर्तगालियों ने खुद को यहाँ सत्ता में स्थापित कर लिया। पुर्तगालियों ने सुनिश्चित किया कि वहाँ के स्थानीय लोग भी अब उनके जैसी ही धार्मिक मान्यताओं का पालन करें।
वर्ष 1541 में ईसाई मिशनरियों द्वारा फरमान सुनाए गए कि सभी हिन्दू मन्दिरों को बन्द कर दिया जाए। इसके बाद, 1559 तक आते-आते तकरीबन 350 से अधिक हिन्दू मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया और मूर्ति पूजा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। सेंट जेवियर ने देखा कि हिन्दुओं के बलात धर्म परिवर्तन के उसके प्रयास पूरी तरह से कामयाब नहीं हो रहे थे। उसे समय रहते यकीन होता गया कि सनातन धर्म की आस्था अक्षुण्ण है। यदि वह मन्दिरों को नष्ट करता है तो लोग घरों में ही मन्दिर बना लेते हैं। उसने देखा कि लोगों को धारदार हथियारों से काटने, उनके हाथ और गर्दन रेतने और असीम यातनायें देने के बाद भी सस्ती शराब और सनातन धर्म में से, लोग सनातन धर्म को ही चुनते और मौत को गले लगा लेते। इसके बाद हिन्दुओं पर यातनाओं का सबसे बुरा दौर आया। फ्रांसिस जेवियर ने गोवा का पूर्ण अधिग्रहण किया।
हिन्दुओं के दमन के लिए धार्मिक नीतियाँ बनाई और यीशु की कथित सत्ता में यकीन न करने वाले हिन्दुओं को दण्डित किया जाने लगा। अक्टूबर, 1560 तक आम जनता के जिन्दा रहने और उनके मरने से लेकर उनके भाग्य का फैसला ईसाई प्रीस्ट के हाथों में आ गया। यह सभ्यता की आड़ में आस्था का बेहद क्रूर और वीभत्स अधिग्रहण था। लोगों को ईसाई बनाने के लिए बर्बर हिन्दू-विरोधी कानून लाए गए। धर्मांतरण के लिए लोगों को ‘विश्वास के कार्य’ की प्रक्रिया से गुजरना होता था, जिसमें नृशंस यातनाएँ दी जाने लगीं।
ओल्ड गोवा के कई स्मारकों और संरचनाओं के बीच, पेलोरिन्हो नोवो नाम का एक काला बेसाल्ट स्तंभ इतिहास के काले अध्यायों का साक्षी है। गोवा के शोक की कहानी कहता यह स्तम्भ वर्तमान में राजमार्ग पर एक प्रमुख जंक्शन पर स्थित है। इस खंभ के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि इसका हाथ कटारो नाम इसलिए पड़ा क्योंकि संत नाम से जाने जाने वाले फ्रांसिस जेवियर यहाँ लाकर उन हिन्दुओं को बाँध देता था जो ईसाई बनने से मना कर देते थे। उन्हें तड़पा-तड़पा कर उनके हाथ काट दिए जाते थे। यह तब तक किया जाता जब तक वह व्यक्ति या तो ईसाई बन जाता या वह मर जाता। आपको इतिहास में धर्मांतरण की ऐसी दर्दनाक दूसरी घटना का वर्णन कहीं नहीं मिलेगा। इस स्तम्भ को सालों पहले गोवा के बाहरी इलाके में स्थानांतरित कर दिया गया था। अब यह स्तम्भ सड़क के केन्द्र में स्थित है। यह स्तम्भ एक प्राचीन मन्दिर का अवशेष है। यह कदंब राजवंश से सम्बंधित है जिसे पुर्तगालियों ने कई मंदिरों को तोड़कर अपने दरवाजे और खिड़की की सजावट में इस्तेमाल किया था और बाद में यहाँ हिन्दूओं को मारने का काम होने लगा।
इस नरसंहार के बारे में लिखने वाले इतिहासकारों को भी सख्त यातनाएँ दी गईं। उन्हें या तो गर्म तेल में डालकर जलाया जाता या फिर जेल भेज दिया जाता। ऐसे ही कुछ लेखकों में फिलिपो ससेस्ती, चार्ल्स देलोन, क्लाउडियस बुकानन आदि के नाम शामिल थे। इतिहास में पहली बार हिन्दू भागकर बड़े स्तर पर पलायन करने को मजबूर हुए। दुर्भाग्य यह है कि समकालीन स्मारकों के विपरीत, यह स्तम्भ आज तक भी एक संरक्षित स्मारक नहीं है। आज हजारों की संख्या में सैलानी गोवा सैर करने जाते हैं, शायद ही कोई जानता हो कि गोवा के सनातन अतीत का साक्षी यह स्तम्भ आज भी वहां मौन खड़ा है।
इस बार आप गोवा जाएँ तो इस स्तम्भ के दर्शन कर उन लोगों को श्रृद्धांजली अवश्य दीजियेगा जिन्होंने अपने हाथ कटा लिए लेकिन सनातन धर्म नहीं छोड़ा, धर्म के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने से भी नहीं चूके।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सारोकार नहीं है। यह आलेख झक्कास खबर नामक वेबपोर्टल से से प्राप्त किया गया है।)