लोकतांत्रिक व्यवस्था का हमासीकरण भारतीय जनतंत्र के लिए घातक 

लोकतांत्रिक व्यवस्था का हमासीकरण भारतीय जनतंत्र के लिए घातक 

अभी हाल ही में केरल के अंदर एक ऐसी घटना घटी जिसकी प्रतिध्वनि दूर तक सुनाई दी और पूरा देश सन्न रह गया। खबरों में बताया गया कि मलप्पुरम में जमात-ए-इस्लामी की युवा शाखा, सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट द्वारा आयोजित फिलिस्तीन समर्थक रैली को हमास के नेता खालिद मशाल ने आभासी माध्यम से संबोधित किया। इस संबोधन ने एक गर्म बहस छेड़ दी है और केरल के लिए चिंता बढ़ा दी है। इस संबोधन पर न केवल राज्य के विभिन्न राजनीतिक गुटों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की, बल्कि भारत में इजराइल के राजदूत नाओरगिलोन ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। मशाल का भाषण फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने वालों के लिए कार्रवाई का आह्वान था। यदि मशाली की भाषा पर गौर करें तो साफ लगता है कि मशाल केवल फिलिस्तीन की बात नहीं कर रहे हैं, वे दुनिया के मुसलमानों का जिहाद के लिए आह्वान कर रहे हैं। फिलिस्तीन के बहाने मशाल, फिलिस्तीन विरोधियों पर आक्रमण करने और अल-अक्सा मस्जिद के पुनरुद्धार की बात कर रहे हैं। यह केवल फिलिस्तीन के समर्थन की बात नहीं है अपितु यह उस इस्लामिक जिहाद का अंग है, जिसे हर इस्लामिक आतंकवादी अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखता रहा है। 

खालिद के संबोधन ने विचार के लिए कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाए हैं। खालिद मशाल हमास का नेतृत्व करते हैं। हमास एक फिलिस्तीनी संगठन है, जिसे संयुक्त राष्ट्र और कई अन्य देशों द्वारा आतंकवादी समूह के तौर पर घोषित किया जा चुका है। विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, हमास को एक जटिल और गैर जिम्मेदार संगठन मानता है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकाय फिलिस्तीनी राज्य से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) को अधिकृत निकाय के रूप में मान्यता प्रदान कर रखा है। संयुक्त राज्य की मान्यता के ठीक विपरीत, हमास पीएलओ को चुनौती दी। हमास 1970 के दशक में अस्तित्व में आया और संयुक्त राष्ट्र के साथ ही साथ शांतिप्रिय उन तमाम देशों की योजना पर पानी फेर दिया, जिसके प्रयास के कारण फिलिस्तीन और इजरायत, स्थाई शांति की ओर बढ़ रहे थे। इससे हमास की वैधता पर सवाल खड़ा होता है। सच पूछिए तो यह संगठन सच्चे अर्थों में फिलिस्तीनियों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व भी नहीं करता है। हमास, दुनिया के देशों के महापंचायत, संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप घोषित किया गया है। हमास, हिंसक गतिविधियों में संलिप्त रहा है। यह केवल इजराइलियों के लिए ही घातक नहीं है, अपितु इसने कई विरोधी शांतिप्रिय फिलिस्तीनियों को भी निवटाया है। यहां यह बता देना जरूरी होगा कि फिलिस्तीनी नेतृत्व के भीतर आपसी अंतरविरोध लंबे समय से फिलिस्तीनी-इजराइली संघर्ष के लिए एकीकृत दृष्टिकोण प्राप्त करने में बाधक रहा है। भारत सहित दुनिया के कई अन्य देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे हमास जैसे आतंकवादी समूहों के प्रति सावधान रहें, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित कर रखा है। इससे न केवल हमारी छवि खड़ाब होगी अपितु पाकिस्तान की तरह हमारा देश भी बदनाम हो जाएगा। 

अक्सर इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के साथ धार्मिक पहलू जोड़ दिए जाते हैं। अल-अक्सा मस्जिद इस्लाम के लिए बेहद पवित्र स्थानों में से एक है। इससे संबंधित कोई भी कार्रवाई या बयान दुनिया भर में मुसलमानों की भावनाओं को भड़काता है। अल-अक्सा का समर्थन करने की खालिद मशाल की अपील स्वाभाविक रूप से मुसलमानों को पसंद आयी होगी। यह मामला ही धार्मिक है, जबकि फिलिस्तीन ओर इजरायल की लड़ाई धार्मिक न होकर राजनीतिक, ऐतिहासिक और क्षेत्रीय है। फिलिस्तीनी मुद्दा कई लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। खासकर उनके लिए, जो न्याय और मानवाधिकारों की वकालत करते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी कारण के समर्थन में की गई कार्रवाई अनजाने में समाज के भीतर अशांति को बढ़ावा न दे। भारत के मुसलमानों को यह सोचना होगा कि एकजुटता व्यक्त करने के बीच सामाजिक संतुलना बनाए रखें। फिलिस्तीन और इजरायल के चक्कर में हम अपनी शांति न कहीं नष्ट कर लें। 

खालिद मशाल के संबोधन और व्यापक इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को लेकर विवाद और बहस के बीच, यह याद रखना जरूरी है कि गाजा की स्थिति ऐसी है जिसने कई हलकों में गहरी चिंता और आलोचना पैदा की है। इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष की जटिलताएं निर्विवाद हैं। सैन्य अभियानों के दौरान नागरिक जीवन का बचाव और सम्मान बहुत जरूरी है। यह एक सार्वभौमिक नैतिकता का अंग है। सामान्य और निर्दोष नागरिकों के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयों की गंभीरता से जांच की जानी चाहिए और मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन की निंदा की जानी चाहिए। रचनात्मक बातचीत, कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से, इस लंबे संघर्ष का उचित और स्थायी समाधान निकाला जा सकता है। सैन्य कार्रवाई से आहत और परेशान गाजा के नागरिकों के प्रति हमें सहानुभूति रखनी ही चाहिए। यह केवल इस्लामिक दायित्व नहीं है, अपितु यह सकारात्मक मानवीय भाव है। हमें इसके लिए प्रयास करना चाहिए कि गाजा में स्थाई रूप से शांति बहाल हो। हमें इसके लिए जेहाद की गलत व्याख्या कर लोगों को भड़काना नहीं चाहिए। फिलिस्तीन के मामले में दुनिया की राय से भिन्न भारत का चिंतन नहीं है। ऐसे में खालित मशाल का आभाषी संबोधन भारत जैसे लोकतांत्रित देश के लिए बेहद खतरनाक है।

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