रांची/ झारखंड की वित्तीय स्थिति सुदृढ होने के संकेत मिल रहे हैं। दरअसल, पिछले साल की तुलना में इस वर्ष प्रदेश की मालगुजारी सात गुना अधिक वसूली गयी है। इस बात को लेकर सरकार का वित्तीय महकमा बेहद उत्साहित है।
झारखंड की हेमंत सरकार भले ही असमंजस और अस्थिरता के कई संकटों का सामना कर रही है, लेकिन राज्य के खजाने की स्थिति सुदृढ़ होती दिख रही है। जानकारी के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस वित्तवर्ष में राजस्व की अधिकता दिख रही है।
महालेखाकार को भेजे गए करों के आंकड़े से इसका पता चलता है। पिछले साल 31 जुलाई तक सालाना लक्ष्य केवल 4.45 प्रतिशत की वसूली हो पाई थी। जो इस साल बढ़कर 32.94 प्रतिशत हो गई है। जबकि 2022-23 में जमीन से मिलने वाले राजस्व का लक्ष्य 1500 करोड़ है, जो 2021-22 के सालाना 1100 करोड़ की तुलना में 400 करोड़ ज्यादा है।
केवल जमीन राजस्व ही नहीं बल्कि बल्कि बिक्री कर के मामलें में भी संकट से गुजर रही सरकार ने बाजी मारी है। पिछले साल 31 जुलाई तक राज्य सरकार ने 26.71 प्रतिशत बिक्री कर की उगाही की थी, जो इस साल अभी तक बढ़कर 33.44 प्रतिशत हो गई है। सरकार के बिक्री कर का सालाना लक्ष्य भी पिछले साल के 6,415 करोड़ की तुलना में बढ़कर 6,450 करोड़ हो गयी है।
एजी को भेजे गए आंकड़े बताते हैं कि राज्य के राजस्व संग्रह का लक्ष्य निःसंदेह रूप से बढ़ा है। इस आंकड़े ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश के आधारभूत संरचनाओं के विकास में भले सिथिलता आई हो लेकिन हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार वित्तीय मामलों में मजबूत होती जा रही है और प्रदेश के अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज है।
इस मामले में जानकार बताते हैं कि सरकार भले राजनीतिक संकट से जूझ रही हो लेकिन नीतिगत मामलों और नौकरशाही में बहुत ज्यादा फेरबदल नहीं की है। प्रशासन सामान्य रूप से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। इस मामले में प्रदेश के वित्त मंत्री डाॅ. रामेश्वर उरांव की भी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। डाॅ. उरांव बिना किसी शोर के अपने काम में लगे हुए हैं।
इस उपलब्धि के लिए जानकारों का एक वर्ग यह भी मान रहा है कि नौकरशाही ने सरकार का पतन अभी तक पूरी तरह से तय नहीं माना है, इस कारण अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर शिथिल नहीं है। विपक्ष की ओर से अर्थव्यवस्था, वित्तीय प्रबंधन और कर प्रशासन को अभी तक आलोचना के दायरे में नहीं लाया गया है। इस कारण नौकरशाही व आर्थिक मुद्दों पर लोकलुभावन फैसले नहीं किए जा रहे हैं। इस कारण कर वसूली में प्रशासन कमजोर नहीं पड़ा है।