हिमाचल प्रदेश : सत्ता में वापसी के लिए सिद्धांतों से समझौता कर रही है भाजपा

हिमाचल प्रदेश : सत्ता में वापसी के लिए सिद्धांतों से समझौता कर रही है भाजपा

बदलेव शर्मा

हिमाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक विधानसभा चुनावों के लिये पार्टी के उम्मीदवारों की कोई सांकेतिक सूची तक जारी नहीं की है। जबकि कांग्रेस, माकपा और आप इस दिशा में भाजपा से बहुत आगे निकल चुके हैं। माना जा रहा है कि रणनीतिक तौर पर भाजपा अपने उम्मीदवारों की सूची अन्तिम दिन जारी करेगी। ताकि जिनके टिकट काट दिये जाते हैं उनके पास बगावत के लिए व्यवहारिक रूप से कोई समय न बचे। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि जो पार्टी केन्द्र और प्रदेश में दोनों जगह पार्टी की सरकारें होने के नाम पर सत्ता में वापसी के दावे कर रही है वह इतना संभल कर क्यों चल रही है? उसे बगावत का खतरा क्यों महसूस हो रहा है? इस सवाल की पड़ताल करने के लिए 2017 के चुनावों से लेकर आज तक सरकार और पार्टी में घटी कुछ मुख्य घटनाओं का स्मरण करना आवश्यक हो जाता है।

स्मरणीय है कि 2017 में भी पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित न करने की रणनीति पर चली थी। लेकिन जब चुनाव प्रचार के दौरान यह फीडबैक मिला कि मुख्यमंत्री घोषित किये बिना जीत संभव नहीं है तब पीटरहॉफ की बैठक के बाद धूमल को मुख्यमंत्री घोषित करना पड़ा। इस घोषणा का लाभ मिला और पार्टी को चुनावों में बहुमत हासिल हो गया। परन्तु इस जीत में धूमल और उनके आधा दर्जन कट्टर समर्थक चुनाव हार गये। यह हार कितनी प्रायोजित थी यह जंजैहली प्रकरण से लेकर मानव भारती विश्वविद्यालय प्रकरण में शान्ता कुमार, राजेन्द्र राणा और जयराम की संयुक्त सक्रियता तथा बाद में सुरेश भारद्वाज के बयान से पूरी तरह खुलकर सामने आ चुकी है। इसी कारण से उस समय विधायकों का बहुमत धूमल के साथ होने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। उस समय जगत प्रकाश नड्डा ने भी मुख्यमंत्री बनने के लिये पूरे प्रयास किये थे और वह सफल नहीं हो पाये थे। यह पूरा प्रदेश जानता है।

इन परिस्थितियों में जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री तो बन गये लेकिन आगे चलकर बतौर मुख्यमंत्री उनकी परफॉरमैन्स का जब यह परिणाम सामने आया कि भाजपा के पास डबल इंजन होते हुये भी चार में से दो नगर निगम हारने के बाद तीन विधानसभा के रूप और एक लोकसभा उपचुनाव हारने से शिमला नगर निगम का चुनाव करवाने तक का साहस नहीं कर पाये। इस स्थिति पर किसी भी हाईकमान का माथा टनकना स्वभाविक था। इससे प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें चलना शुरू हो गयी। कई मंत्रियों की छुट्टी करने और विभाग बदलने की चर्चाएं शुरू हो गयी। लेकिन यह चर्चाएं व्यवहारिक रूप नहीं ले पायी। क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा हिमाचल से ताल्लुक रखते थे। नड्डा धूमल शासनकाल में कैसे दिल्ली पहुंचे यह भी प्रदेश में सब जानते हैं। 2017 के चुनाव के बाद नड्डा ने फिर हिमाचल आने का मन बनाया तो जयराम ने इसे सफल नहीं होने दिया। लेकिन जब भी हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन का सवाल दिल्ली में उठा तो जयराम का विकल्प नड्डा की जगह धूमल ही उभरा। परन्तु नड्डा के लिये यह दिल से स्वीकार्य नहीं हो पाया। इसलिये परिस्थितियों ने जयराम को ही कुर्सी पर बनाये रखा। लेकिन जयराम अपने को प्रमाणित नहीं कर पाये वह अपनो के स्वार्थों से ऐसे घिर गये कि शीर्ष प्रशासन पर उनकी पकड़ और समझ रेत की मूठी से आगे नहीं बढ़ पायी। जो मुख्यमंत्री लोकसेवा आयोग के लिये किये गये अध्यक्ष के अपने फैसले को अन्जाम न दे सके जिस मुख्यमंत्री के शीर्ष प्रशासन के आधा दर्जन अधिकारियों पर लगे आरोपों की जांच के लिये आये पी.एम.ओ. के फरमान को अमली शक्ल न दे पाये वह प्रधानमंत्री का कितना विश्वास पात्र बना रह सकता है। इसका अन्दाजा लगाना किसी भी राजनीति विश्लेषक के लिये कठिन नहीं हो सकता है।

मुख्यमंत्री की प्रशासनिक पकड़ का ताजा उदाहरण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के रूप में सामने आया है। वर्ष 2000 में स्व. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर शुरू हुई इस योजना का अन्तिम चरण भी अब सितम्बर 2022 को समाप्त हो गया है। योजना का अन्तिम चरण 2019 में शुरू हुआ था। इस योजना में गांव को सड़कों से जोड़ना था। केंद्र में यह योजना ग्रामीण विकास विभाग देखता है। लेकिन हिमाचल में यह काम मुख्यमंत्री के लोक निर्माण विभाग के पास है। योजना समाप्त हो गयी है और इसके तहत बन रही 203 सड़के अभी तक अधूरी हैं। केन्द्र ने योजना की समय अवधि बढ़ाने का सरकार का आग्रह अस्वीकार कर दिया है। इनमें निवेशित हुआ सैकड़ों करोड़ रुपया बेकार होने के कगार पर पहुंच गया है। यदि मुख्यमंत्री के प्रभार में चल रहे विभाग की यह स्थिति होगी तो अन्य विभागों का क्या हाल होगा? क्या ऐसी परफॉरमेन्स पर सत्ता में वापसी के दावे जमीनी हकीकत हो सकते हैं। इस परिदृश्य में ही सुजानपुर में राज्य सभा सांसद इन्दु गोस्वामी को धूमल को भारी बहुमत से विजय बनाने का आह्वान करते हुये नेतृत्व के प्रश्न पर भी कई संकेत छोड़ जाता है। जबकि आज भाजपा के विधायक किस तरह प्रशासन पर अपने नाजायज फैसले मनवाने के लिये प्रशासन पर दबाव डाल रहे हैं यह विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज के वायरल वीडियो से सामने आ चुका है।

उपाध्यक्ष हंसराज, केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से शिकायत करने की धमकी दे रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष और अनुराग ठाकुर तक की इस प्रकरण पर चुप्पी पार्टी और सरकार में फैली अराजकता का सीधा सन्देश दे रही है। इसी कारण से आज छः मंत्रियों सहित 30 विधायकों और 14 पूर्व विधायकों के टिकट काटने की चर्चा चल पडी है। इसी चर्चा के साथ नड्डा के बेटे या पत्नी तथा धूमल के चुनाव लड़ने का फैसला हाईकमान पर छोड़ा जा रहा है। निर्दलीयों और कांग्रेस से आये विधायकों तथा सुरेश चन्देल और हर्ष महाजन को शिमला की एक सीट से उम्मीदवार बनाने के लिये भाजपा अपने सिद्धांतों की आहुति देने के कगार पर आ पहुंची है।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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