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भाग 4
राघव शरण शर्मा
लोग यह कहते रहे कि कांग्रेस पार्टी बंगाल में खत्म हो गयी है और विधानचंद्र राय का अस्तित्व समाप्त हो गया है लेकिन ऐसा नहीं है, ज्योति बसु उन्हीं की प्रतिक्षाया के रूप में लंबे समय तक बंगाल पर राज करते रहे।
इस प्रकार का एक नारा नक्सलवाद के अग्रदूत चारू मजूमदार ने दिया और माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया। इस नारे के अथवा बसन्त वज्रनाद के साथ, बगावत के महानायक चारू मजूमदार के नेतृत्व में बगावत की पहली और छोटी चिंगारी पूरे जंगल को जलाने के लिए धधक उठी।
इसके उद्भव के कई करण है, जिसमें-सन 1962 की चीन द्वारा भारत की शर्मनाक पराजय, सन 1965 में पाकिस्तान से बराबरी पर युद्ध समाप्ति, बेकारी, महंगाई, बगावत को चीन का सक्रिय समर्थन, सन 1967 के चुनाव को पिछड़ी जातियों के नए नेता राम मनोहर लोहिया द्वारा प्रस्तावित गैर-कांग्रेसी सरकारों का बनना, असफल होना, इससे अति पिछड़ों में निराशा, ऊंची जातियों के कुण्ठित व्यक्तियों का नक्सन आन्दोलन में सक्रिय सहयोग, जगदेव, चंद्रशेखर, चरण सिंह, देवीलाल का भ्रष्टाचार में आकंठ डूबना और दल-बदल के महानायक साबित होना, 27 अप्रैल सन 1969 को केन्द्रीय सांगठनिक कमेटी का बनना। इसके अलावा चारू मजूमदार, सुशीतल, शिवकुमार, सरोज दत्त, सत्यनारायण, कानू सान्याल, पंचाद्रि, सर्राफ, तेजेश्वर आदि नक्सली नेताओं का नामजद होना आदि आदि है।
इसमें पहला झगड़ा चारू और परिमल के बीच हुआ। चारू ने चुनाव बहिष्कार का पक्ष लिया जो 1969 में असफल हो गया। चारू ने भूमिगत कारवाई का पक्ष लिया और परिमल ने ट्रेड यूनियन का। चारू मजूमदार के समर्थकों ने नारे लगाए, चारू प्राधिकार है। राजसत्ता का जन्म राइफल है। चीन का चेयरमैन हमारा चेयरमैन है। अन्धाधुन्ध हत्या अहम कार्यक्रम है। क्षेत्रवार दखल करते हुए दीरघकालीन लोकयुद्ध जारी रखना है। भारत की जनता का प्रधान अंतर्विरोध साम्राज्यवाद है। इसका प्रधान पहलू साम्यवाद है। सोवियत संघ का सामाजिक साम्राज्यवाद सबसे ज्यादा खतरनाक है।
कलकत्ता के 15-16 मई सन 1970 के अधिवेशन में काफी मतभेद सामने आए। माओ ने सोरन बसु के प्रतिनिधिमंडल को कहा था कि चीन के चेयरमैन को भारत का चेयरमैन कहना गलत है। प्राधिकार कहना गलत है। सिर्फ भूमिगत कारवाई गलत है, जन-संगठन जरूरी है। खराब आर्थिक और प्रशासनिक विफलता ने जगह-जगह नक्सल नेताओं को क्षेत्रीय नव-सामन्त के रूप में जनमने का अवसर प्रदान कर दिया।
15 -16 मई सन 1970 ई. को अधिवेशन में निम्न सदस्य केन्द्रीय समिति में चुने गए। चारू मजूमदार, सुशीतल रॉय चैधरी, सरोज दत्त, असीम चटर्जी, सत्यनारायण सिंह, गुरूबक्श सिंह, शिव कुमार मिश्रा, कॉमरेड महेन्द्र सिंह, वेम्पू टप्पू, नागभूषण पटनायक, सुनीति घोष, कोरनड दमण, सर्राफ, जगजीत सिंह सोहल। चारू मजूमदार महासचिव चुने गए। अमूल्य सेन, कन्हाई चटर्जी का दक्षिण देश इसमें शरीक नही हुआ।
शीघ्र ही नागी रेड्डी, सत्यनारायण सिंह, चंद्रपुल्ला रेड्डी, सुनीति घोष, महादेव मुखर्जी, गुरूदर्शन सिंह आदि इससे अलग हो गए। कुछ ने प्राधिकार पर, कुछ ने शासन वर्ग को दलाल कहे जाने पर, कुछ ने भूमिगत कारवाई पर, कुछ ने किसानी पर, पार्टी की एक नीति से असहमति जताई। पार्टी शुरू से ही तीन कन्नौजिया तेरह चूल्हा की मनोवृत्ति का शिकार हो गयी थी। जिसकी परिनति सबके सामने है।
(सोशल मीडिया से सभार। यह लेखक के निजी विचार है। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)
क्रमशः