रजनी राणा
विगत दिनों जब भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मैच हो रहा था तो पाकिस्तान के सूचना और प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने कहा, ‘‘भारतीय क्रिकेट टीम की हार के बाद कश्मीर में जश्न मोदी एंड कंपनी की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त होना चाहिए।’’ पाकिस्तान के डॉन अखबार ने पाकिस्तान को भारत के हार पर एक लेख छापा और इसे जानबूझकर शीर्षक दिया, ‘‘पाकिस्तान आलोचकों का मजाक बनाता है, क्योंकि 2015 में पाकिस्तान पर भारत की जीत का मजाक उड़ाया गया था।’’ इस पृष्ठभूमि के बीच, कुछ रिपोर्टों ने मुट्ठी भर भारतीयों द्वारा उत्तर प्रदेश में पटाखे फोड़कर और कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक नारे लगाकर पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाते शीर्षक देकर सुर्खियां बटोरी।
कुछ स्व-घोषित उदारवादियों ने इसे ‘स्पोर्ट्समैनशिप’ का लेबल देकर इसे कालीन के नीचे धकेलने की कोशिश की। हालांकि, जब कुछ भारतीयों द्वारा पाकिस्तान की जीत के जश्न को फवाद चैधरी के बयान और डॉन के शीर्षक के संयोजन में देखा जाता है, तो खेल भावना की परिभाषा धुंधली हो जाती है और यह स्वाभाविक रूप से राष्ट्र-विरोधी के स्पेक्ट्रम को बल मिलता जैसा प्रतीत होता है।
कुछ लोग यह भी कहते सुने गए कि नाहक इस बात को प्रचार दिया जा रहा है। चूकि कुछ लोग शादी में पटाके चला रहे थे और इसे बात का बतंगड़ बना दिया गया लेकिन कुछ स्थानों पर पुलिस की रिपोर्ट में बताया गया है कि सचमुच ऐसे कुछ तत्व थे जिन्होंने शातिराना हड़कत की, जिससे एक खास समुदाय को संदेश दिया जाए िकइस देश के मुसलमान पाकिस्तान के प्रति नगर रवैया रखते हैं और बहुसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पैदा की जाए। साथ ही बहुसंख्यक हिन्दू एवं अल्पसंख्यक मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक वैमनष्यता पैदा की जाए।
पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने के आरोपी सभी छात्र मुस्लिम समुदाय से थे, इससे यह आभास होता है कि भारत में कुछ मुसलमान हैं जो अभी भी पाकिस्तान के लिए नरम हैं- एक आरोप, अगर सही पाया जाता है, तो यह देशद्रोह के अलावा और कुछ भी नहीं हो सकता है। अगर खेल भावना की बात होती तो भारत भर के कई क्रिकेट प्रशंसकों ने चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाया होता। दरअसल, पाकिस्तान की जीत ही नहीं, किसी और देश के अच्छे प्रदर्शन का स्वागत पटाखे फोड़कर या नारे लगाकर किया जा सकता है। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि पाकिस्तान की जीत के साथ एक राजनीतिक रंग जुड़ा हुआ है जिसका उपयोग मुट्ठी भर भारतीयों द्वारा न केवल सत्तारूढ़ व्यवस्था को नीचा दिखाने के लिए किया जा रहा है, बल्कि पूरे समुदाय को बदनाम करने के लिए भी किया जा रहा है।
पाकिस्तान बनने के बाद से ही भारत-पाक प्रतिद्वंद्विता चल रही है। पाकिस्तान एक ऐसा खतरा है, जो भारत को अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। 26/11 और संसद हमले की यादें आज भी ताजा हैं। कारगिल युद्ध हो या कश्मीर पर कब्जा करने के पहले के प्रयास, पाकिस्तान ने लगातार कई तरह के विश्वासघाती और आतंकवादी कृत्यों के माध्यम से भारत के लिए दुश्मन नंबर 1 के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी है। इन परिस्थितियों में, किसी भी भारतीय द्वारा किसी भी रूप में पाकिस्तान की जय-जयकार करना पूरी तरह से अनावश्यक है। यह पाकिस्तान के विश्वासघात के कारण अपनी जान गंवाने वाले हजारों सैनिकों और लोगों का अपमान है और बलिदान का मजाक उड़ाना है।
विद्यार्थी किसी भी देश की रीढ़ होते हैं। वे किसी देश के समृद्ध भविष्य के लिए आवश्यक ठोस आधार प्रदान करते हैं। भारत के संविधान ने अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में एक मौलिक अधिकार प्रदान किया है। हालांकि, यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। यदि भाषण की स्वतंत्रता भारत की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करती है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वतः ही समाप्त हो जाती है। छात्रों को अपने देश को नीचा दिखाने और बदनाम करने के बजाय अपने भविष्य को आकार देने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।
भारतीय इतिहास वीर अब्दुल हमीद, अशफाकउल्लाह खान आदि मुसलमानों के उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि भारत के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। मुस्लिम युवाओं को एपीजे अब्दुल कलाम की तरह बनने की ख्वाहिश रखनी चाहिए। पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने या पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने से पूरे समुदाय को ही शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी और समुदाय नाहक संदिग्धों की कतार में जाकर खड़ा हो जाएगा। यही नहीं यह नफरत फैलाने वाली राजनीति को हवा देने में मददगार साबित होगा।
समस्या पाकिस्तान ही नहीं दुनिया के सभी मुल्कों में है। इसलिए समस्या का समाधान अपने मुल्क के अंदर ही करना चाहिए न कि बाहरी शक्तियों को बुलाकर पंचायत करानी चाहिए। यदि ऐसा होता है तो हमारी ताकत का अंदाजा पड़ोसी लगा लेंगे और हमें ही परेशान करेंगे। एक बात याद रखना चाहिए कि भारत दुनिया का सबसे सुरक्षित देश इसलिए बन पाया कि यहां लोकतंत्र है। इस लोकतंत्र को बचाने के लिए हमें हर समय सतर्क रहना होगा। यदि चूके तो हमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन बनते देर नहीं लगेगा। भारतीय मुसलमानों को अपने पड़ोस में झांकना चाहिए। यदि पाकिस्तान मुसलमानों का इतना ही हिमायती है तो चीन में मुसलमानों पर हो रहे अमानवीय जुल्मों के खिलाफ क्यों नहीं मोर्चा खोलता है?
दूसरी बात हमारी सुरक्षा एजेंसियों को भी सतर्क रहना चाहिए। यदि गलती से इस प्रकार के कृत्य में कोई ईमानदार फंस जाए तो यह ठीक नहीं है। शासन को किसी को नाहक फंसाने से भी बचना चाहिए। हालांकि ऐसी घटनाएं कम ही देखने को मिलती है लेकिन पुलिस की छोटी-सी गलती कुछ लोगों का जीवन तक तबाह कर दिया है। इससे बचना जरूरी है। इसलिए समाज और शासन दोनों को सतर्क रहने की जरूरत है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना देना नहीं है।)