इस्लाम में केवल दीनी ही नहीं आधुनिक शिक्षा का भी महत्व

इस्लाम में केवल दीनी ही नहीं आधुनिक शिक्षा का भी महत्व

इस्लाम के प्रणेता, जिन्हें उनपर विश्वास करने वाले आदर से पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, कह कर पुकारते हैं, ने अपने पहले रहस्योद्घाटन में ही शिक्षा के महत्व को समझाया है। आपने इस्लामी शिक्षाओं को पढ़ने और सीखने के महत्व पर जोर दिया। कुरान-ए-पाक में पैगंबर को दूसरों को ज्ञान प्रदान करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। भारतीय इस्लामिक चिंतक सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूफी मोहम्मद कौसर हसन मजीदी का मानना है कि पैगंबर की प्रसिद्ध प्रार्थनाओं में से एक इमान वालों को निर्देशित करता है कि अल्लाह मुझे चीजों की परम प्रकृति का ज्ञान प्रदान करें जिसका भावार्थ है, ‘‘अल्लाह मुझे परम प्रकृति का ज्ञान प्रदान करें।’’ इसका तात्पर्य यह है कि पवित्र ग्रंथ निस्संदेह दीनी शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा के बारे में भी बता रहा है। इस्लाम के मानने वालों को इल्म के बारे में भी निर्देशित किया गया है। मजीदी साहब यह भी कहते हैं कि इस्लाम में साफ तौर पर कहा गया है कि यदि इल्म सीखने के लिए दूर देश चीन भी जाना पड़े तो हिचकना नहीं चाहिए। यह इस्लाम में शिक्षा और इल्म के महत्व को बताता है।

इस्लामी शिक्षाएं ज्ञान की सार्वभौमिकता पर जोर देती है। मुसलमानों को विविध स्रोतों और विभिन्न क्षेत्रों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह आधुनिक शिक्षा की अंतःविषय और वैश्विक प्रकृति के अनुरूप है, जहां ज्ञान एक विशिष्ट क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विषयों और दृष्टिकोणों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। कुरान-ए-पाक के सूरह 39ः9 में, बताया गया है कि ‘‘क्या वे जो जानते हैं और जो नहीं जानते हैं, उन्हें समान समझा जा सकता है? यह चिंतन अद्भुत है जो विश्वासियों को ज्ञान में उन्नति के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके अलावा, कुरान विश्वासियों को उस चीज का पीछा न करने के लिए प्रोत्साहित करता है जिसके बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं है क्योंकि भगवान उन्हें उन कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराएगा जो ज्ञान की कमी को दर्शाते हैं, जिनके पास ज्ञान है, उनके बारे में पवित्र कुरान कहता है, ‘‘अल्लाह उन लोगों को (कई) डिग्री तक ऊंचा करेगा तुममें से जो ईमान तक पहुंच गए हैं…(सूरह 58ः11) इसका भाव है, ‘‘हे ईमानवालों! जब तुमसे सभाओं‬‎ में जगह बनाने के लिए कहा जाता है, तो ऐसा करो। अल्लाह अपनी कृपा से तुम्हारे लिए जगह बना देगा और यदि तुमसे उठने के लिए कहा जाता है, तो ऐसा करो। अल्लाह उन लोगों को ऊपर उठाएगा तुम जो वफादार हो और ज्ञान प्राप्त लोगों को उच्च पद पर पहुँचाओ और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है।’’ यह आयत न केवल ज्ञान के महत्व पर जोर देती है, बल्कि इस्लाम के भीतर सहिष्णुता और विनम्रता के मूल्यों को भी रेखांकित करती है।

कुरान-ए-पाक में एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण कई छंदों में स्पष्ट है, जो सीखने और ज्ञान प्राप्त करने के महत्व पर जोर देते हैं। हदीसें कुरान की शिक्षाओं को और भी पुष्ट करती हैं, प्रत्येक मुसलमान के लिए ज्ञान प्राप्त करने की अनिवार्य प्रकृति पर प्रकाश डालती हैं। ‘‘ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है। (बैहाकी, मिश्कात)’’ ‘‘ज्ञान की खोज करना प्रत्येक मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिला (इब्न माजा) के लिए अनिवार्य है।’’ पैगंबर मुहम्मद द्वारा बद्र की लड़ाई के बाद मुस्लिम लड़कों को पढ़ाने के लिए कुरैश जनजाति के बंदियों को नियुक्त करने का ऐतिहासिक उदाहरण पेश कर शिक्षा के महत्व को निरूपित किया था। यह शिक्षा के प्रति पैगंबर की प्रतिबद्धता का एक बड़ा उदाहरण है। इस नियम ने न केवल अधिग्रहण के महत्व को प्रदर्शित किया ज्ञान के साथ-साथ शिक्षा को एक उपकरण के रूप में उपयोग करने का मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण भी प्रदर्शित किया, जो समाज के व्यापक कल्याण में योगदान देता है।

ऊपर बताई गई आयतें और हदीसें प्रभावी ढंग से प्रदर्शित करती हैं कि कैसे कुरान में निहित इस्लामी शिक्षाएं, ज्ञान, समालोचनात्मक सोच और नैतिक आचरण-मूल्यों की खोज को प्रोत्साहित करती है। जो आधुनिक शिक्षा के सिद्धांतों के साथ सहजता से मेल खाते हैं। यह व्याख्या इस विचार को पुष्ट करता है कि इस्लाम एक प्रबुद्ध और सूचित समाज को बढ़ावा देता है, जो वैश्विक ज्ञान और प्रगति में सकारात्मक योगदान देता है। जो इस्लाम के केवल धार्मिक पहलू को बढ़ावा देने और जानबूझकर वैज्ञानिक पहलू से बचने वालों के बिल्कुल विपरीत है। अब मुसलमानों के लिए समय आ गया है कि वे इस्लाम के नकारात्मक व्याख्या वाले दृष्टिकोण की भ्रांति को तसल्ली से समझें और मिस्र के अल अजहर विश्वविद्यालय में प्रचलित आधुनिक शिक्षा के साथ धार्मिक शिक्षा के महत्व को समझें। इससे न केवल अपना भला होगा अपितु कौम और मानवता दोनों का भला होगा।

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