वैश्विक संकट के इस क्षण में शांति के लिए सुल्लह व सह अस्तित्व हो सकता है बेहतर समाधान 

वैश्विक संकट के इस क्षण में शांति के लिए सुल्लह व सह अस्तित्व हो सकता है बेहतर समाधान 

वर्तमान दुनिया कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रही है। मानवता पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यही नहीं प्रकृति भी अपना विकट रूप दिखाने लगी है। स्वार्थी और आराम पसंद व्यक्तियों के द्वारा इन समस्याओं में बढ़ोतरी की जा रही है। सशस्त्र संघर्ष, आर्थिक अस्थिरता, जलवायु आपदाएं, राजनीतिक दमन और सामाजिक विभाजन, आज के दौर की आम समस्या बनती जा रही है। ईरान, इजरायल के ग़ाज़ा और यूक्रेन में लड़े जा रहे युद्धों ने इस्लामोफोबिया, शरणार्थी संकट और नैतिक क्षरण को नए सिरे से परिभाषित करने को मजबूर कर दिया है। मानवता एक अराजकता के चक्कर में उलझी हुई लगती है। इन मानव जनित त्रासदी के बीच, लोग न्याय, स्थिरता और शांति की तलाश में हैं। ऐसे कठिन समय में मार्गदर्शन का एक व्यापक स्रोत इस्लाम के सार्वभौमिक सिद्धांतों में ढूंढा जा सकता है। 

इस्लाम, जिसका व्यापक अर्थ है ‘शांति’ और ‘ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण’, जीवन का एक पूर्ण मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है, जो सौहार्द, न्याय और करुणा को प्राथमिकता देता है। इस्लाम के पवित्र ग्रंथ और पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.अ.) की शिक्षाएं न केवल मुसलमानों के लिए है, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक शांतिपूर्ण विश्व निर्माण की कालातीत बुद्धिमत्ता प्रदान करती हैं।

इस्लाम के पवित्र ग्रंथ में बार-बार न्याय की महत्ता को दर्शाया गया है। ‘ऐ ईमान लाने वालों! न्याय के लिए डटकर खड़े रहो और अल्लाह के लिए गवाही दो, चाहे वह तुम्हारे अपने खिलाफ़ हो या माता-पिता और रिश्तेदारों के खिलाफ़…।’ युद्ध और अशांति के समय में इस्लाम बदले या अत्याचार की नहीं, बल्कि न्याय की बात करता है। यह सामूहिक सज़ा को निषिद्ध करता है और शत्रुओं के साथ भी न्यायपूर्ण व्यवहार की आज्ञा देता है। पैगंबर हजरत मुहम्मद (स.अ.) ने मक्का विजय के समय इसका उदाहरण प्रस्तुत किया, जब उन्होंने अपने पुराने अत्याचारियों को माफ कर दिया, बदला नहीं लिया।

जीवन की पवित्रता इस्लाम की सबसे केंद्रीय शिक्षाओं में से एक है। पवित्र ग्रंथ कहता है, ‘जिसने एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या की, मानो उसने पूरी मानवता की हत्या की और जिसने किसी एक को बचाया, मानो उसने पूरी मानवता को बचाया।’ पवित्र ग्रंथ का यह पवित्र श्लोक आतंकवाद, नरसंहार और अन्यायपूर्ण युद्धों के विरुद्ध इस्लाम के कड़े रुख को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है। पैगंबर (स.अ.) ने युद्ध के दौरान आम नागरिकों, जानवरों और यहां तक कि पेड़ों को भी नुकसान पहुँचाने से मना किया, जो कि आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों से बहुत पहले की इस्लाम की नैतिक शिक्षाओं में से हैं।

आज के समय में नस्ल, राष्ट्र और धन के आधार पर बढ़ते विभाजन वैश्विक शांति के लिए खतरा बन चुके हैं। इस्लाम भाईचारे और एकता को बढ़ावा देता है। बरेलवी संप्रदाय के विद्वान मुफ्ती तुफैल खां कादरी साहब फरमाते हैं कि पैगंबर (स.अ.) ने अपनी विदाई हज के दौरान घोषणा की, ‘किसी अरबी को गैर-अरबी पर कोई श्रेष्ठता नहीं है और न ही किसी गैर-अरबी को अरबी पर, सिवाय तक़वा (धार्मिकता) के।’ इस्लाम नस्लभेद और लालच को खारिज करता है, जो आज के अधिकतर संघर्षों के मूल में है। इसके स्थान पर सम्मान और साझा मानवता पर आधारित आध्यात्मिक पहचान को इस्लाम में महत्व दिया गया है। 

मुफ्ती साहब कहते हैं कि पैगंबर मुहम्मद (स.अ.) को “रहमतुल लिल आलमीन” संपूर्ण सृष्टि के लिए रहमत, कहा गया है। उनका जीवन करुणा से परिपूर्ण था। भूखों को खिलाना, बीमारों की देखभाल करना और अपने दुश्मनों को क्षमा करना, उनकी मूल प्रवृत्ति थी। ऐसे समय में जब प्रतिशोध, घृणा और हिंसा का बोलबाला है, इस्लामी शिक्षाएं क्षमा और मेल-मिलाप की ओर हमें बुला रही है। पवित्र ग्रंथ का एक वाकया है कि ‘‘जैसी चोट वैसी सज़ा दी जा सकती है, लेकिन अगर कोई क्षमा कर दे और सुलह कर ले, तो उसका इनाम अल्लाह के जिम्मे है।’’

आज के समय में गरीबी और असमानता भी अनेक संघर्षों का कारण हैं। इस्लाम इस समस्या को सुलझाने के लिए मज़बूत सामाजिक कल्याण प्रणालियाँ प्रस्तुत करता है, जैसे कि ज़कात (अनिवार्य दान) और सदक़ा (स्वैच्छिक दान)। ये केवल दया के कार्य नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी हैं, जिनका उद्देश्य निर्धनों को ऊपर उठाना और सामाजिक तनाव को कम करना है, ताकि संपत्ति का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित हो सके।

इस्लाम का पवित्र ग्रंथ बार-बार ईमान वालों से से कहता है कि यदि शांति की ओर झुकाव दिखाया जाए, तो उसे स्वीकार करें, और यदि वे शांति की ओर झुकें, तो तुम भी झुको और अल्लाह पर भरोसा करो। चाहे राजनीतिक विरोधियों से हो या अंतर्राष्ट्रीय दुश्मनों से, इस्लाम आक्रामकता के बजाय संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता देता है।

आज जिन वैश्विक संकटों का सामना किया जा रहा है, वे नैतिक विफलता, लालच और मानव गरिमा की अवहेलना के परिणाम हैं। इस्लामी शिक्षाएं, जो शांति, न्याय, करुणा और एकता पर आधारित हैं, एक शक्तिशाली ढांचा प्रदान करती हैं, जिसमें सदभाव और सह-अस्तित्व की संभावना है। यदि इन्हें ईमानदारी से अंगीकार किया जाए तो एक बढ़िया विश्व की रचना खद व खदु सामने दिखने लगेगा। इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए। युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मानवता के महान और उच्चतर मूल्यों को अपनाकर दुनिया को बदला जा सकता है। इसमें सुल्लह एक बेहतर समाधान है।

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