कलीमुल्ला खान
भारतीय उपमहाद्वीप में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अल कायदा ने हाल ही में पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ टिप्पणी से संबंधित भारत के पहले से ही तनावपूर्ण माहौल को एक बार फिर से खराब करने की कोशिश की है। एक्यूआईएस ने खुले तौर पर हिंदुओं को मारने के लिए आत्मघाती बम विस्फोट करने और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए निर्दोष बच्चों का उपयोग करने की धमकी दी है। अरबी पृष्ठभूमि के इस अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन ने अपनी धमकी में इस्लामिक अतिवादी संगठन, गजवा-ए-हिंद के उस सिद्धांत का भी उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि महज 20 वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप का पूर्णरूपेण इस्लामीकरण कर दिया जाएगा। दरअसल, इस तरह के बयान जारी करके, एक्यूआईएस ने भारत में हिंसा को बढ़ावा देने और धार्मिक उत्तेजना और युवाओं को ब्रेनवॉशिंग के माध्यम से मुसलमानों के बीच जमीन हासिल करने की उम्मीद की होगी लेकिन उसे सफलता मिलती नहीं दिख रही है। इस प्रकार के अतिवाद का भारत में कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। भारतीय मानस चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या फिर कोई और मजहब, अतिवाद को कभी प्रश्रय नहीं दिया। बयान जारी करते वक्त एक्यूआईएस शायद यह भूल गए कि भारतीय समाज सहिष्णु है और इस समाज को रत्ती भर भी अशांति पसंद नहीं है। भारतीय मुसलमानों का अतीत बेहद समृद्ध रहा है। भारत के मुसलमान उस संस्कृति में विश्वास करते हैं, जिसे बाबा बुल्ले शाह और निजामुद्दीन औलिया जैसे सूफी संतों ने स्थापित किया है।
धमकी पत्र जारी होने के तुरंत बाद, सांसद एवं एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने एक्यूआईएस के बयान की निंदा की और कहा, ‘‘हमारे पैगंबर मुहम्मद का नाम बुलंद है और इसकी रक्षा के लिए अल कायदा जैसे आतंकवादियों की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अल्लाह, ख्वारिजों यानी दहशतगर्दों से हमारी रक्षा करे, जो देश में हिंसा फैलाता है और इस्लाम के नाम को बदनाम करता है।’’ अभी हाल ही में मुसलमानों के पवित्रतम धर्मस्थल काबे के इमाम ने भी इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वालों के खिलाफ फतवा जारी किया गया हे। काबे के इमाम ने कहा है कि आईएसआईएल, अल कायदा और तालेबान का इस्लाम से कोई संबन्ध नहीं है। पाकिस्तान के जियो न्यूज चैनेल को दिये अपने साक्षात्कार में काबे के इमाम शैख खालिद अलगामेदी ने कहा है कि तालेबान और आईएसआईएल, ख्वारिज हैं। उन्होंने कहा कि इन गुटों का इस्लाम से कोई संबन्ध नहीं है और यह ख्वारिज हैं। इससे पहले मिस्र के अलअजहर विश्वविद्यालय के प्रमुख भी कई बार इस बात की घोषणा कर चुके हैं कि आईएसआईएल का इस्लाम से कोई संबन्ध नहीं है। उनका कहना है कि आईएसआईएल की गतिविधियां इस्लामी विरोधी हैं।
ज्ञात रहे कि काबे के इमाम तथा अलअजहर के प्रमुख के अतिरिक्त मुसलमानों के कई वरिष्ठ धर्मगुरु आईएसआईएल को इस्लाम विरोधी गुट घोषित कर चुके हैं। यहां ख्वारिज के बारे में बताना जरूरी है। मसलन, ख्वारिज, इस्लाम में वह पहला गुट है जिसने मूल इस्लामी नियमों से हटकर अपना अलग गुट बनाया था। अभी हाल ही में इन लोगों का का उदय सिफ्फीन नामक युद्ध के बाद हुआ। सभी को पता होना चाहिए कि इस्लाम आतंकवाद को खारिज करता है। जो लोग नहीं जानते हैं, उनके लिए ख्वारिज इस्लामी दुनिया की स्थापना के बाद से आज तक सभी परेशानियों के लिए जिम्मेदार लोगों का एक समूह है। ख्वारिज ही खलीफा उस्मान और बाद में खलीफा हजरत अली की मौत के लिए जिम्मेदार थे।
भारतीय मुसलमान ख्वारिज की साजिश और उन जैसे आतंकवादी संगठनों को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। जमीयत उलेमा हिंद या जमात ए इस्लामी हिंद जैसे प्रमुख मुस्लिम संगठनों में से किसी ने भी एक्यूआईएस के धमकी पत्र का समर्थन नहीं किया है। एक्यूआईएस के बयान का विरोध करने के लिए कई प्रमुख मुस्लिम नेता और बुद्धिजीवी सोशल समाचार वाहिनियों के विभिन्न मंचों पर आकर अपने बयान दर्ज करा चुके हैं। उन सभी संदेशों में लगभग एक जैसा स्वर था- पैगंबर मुहम्मद की बदनामी से जुड़ा मामला भारत का आंतरिक मामला है और इसे आंतरिक रूप से हल किया जाना चाहिए, किसी बाहरी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह पहली बार नहीं है जब एक्यूआईएस जैसे आतंकवादी संगठन के भारत में अपना आधार बढ़ाने के प्रयास विफल रहे हैं। 1980 के दशक में, दुनिया भर के हजारों मुसलमान रूस के खिलाफ जिहाद के नाम पर अफगानिस्तान जाकर तालिबान में शामिल हो गए थे लेकिन भारतीय मुसलमानों ने संयम बनाए रखा। अमेरिका और पाकिस्तान के द्वारा अफगानिस्तान के तालिब आन्दोलन का क्या हस्र हुआ वह दुनिया देख रही है। अंततोगत्वा तालिबानियों ने अपने अफगानिस्तान को ही नर्क बना लिया।
जब आईएसआईएस द्वारा खिलाफत का वैश्विक आह्वान किया गया, तब लाखों भारतीय मुसलमानों में से केवल 200 ने ही उस आह्वान पर वहां पहुंचे। हालांकि, यह बताया गया कि 25 से कम लोग वास्तव में लड़ने के लिए सीरिया गए थे, जबकि लगभग एक अन्य समूह (25) इस्लामिक स्टेट में रहने के इरादे से खुरासान चले गए। बाकी लोग सिर्फ ऑनलाइन गतिविधि में शामिल हो पाए। देश की आबादी का लगभग 14.2 प्रतिशत के साथ इस्लाम, भारत में दूसरा सबसे बड़ा मजहबी समूह है। यहां 172.2 मिलियन लोग इस्लाम के अनुयायियों के रूप में अपनी पहचान बताते हैं। इसका मतलब है कि केवल 0.0001161 प्रतिशत मुस्लिम आबादी ही आईएसआईएस में शामिल हुई। आईएसआईएस में शामिल होने वाले मुसलमान उपरोक्त प्रतिशत से भी कम हैं। भाईचारे, मातृभूमि के प्रति प्रेम और देश की एकता और अखंडता के लिए बलिदान देने की इच्छा से प्रेरित एक असाधारण अतीत के साथ, भारतीय मुसलमानों ने हमेशा जिहाद के नाम पर हिंसा को खारिज किया है।
भारतीय मुसलमानों द्वारा चरमपंथी विचारधारा की अस्वीकृति भारत के अद्वितीय इतिहास का प्रत्यक्ष परिणाम है, जिसने भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र द्वारा लागू की गई एक असाधारण बहुलतावादी संस्कृति को आगे बढ़ाया है। भारत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और निजामुद्दीन औलिया जैसे सूफी संतों की भूमि है। एक्यूआईएस या ऐसे अन्य आतंकवादी संगठनों को हमेशा याद रखना चाहिए कि आधुनिक भारत का निर्माण अशफाकउल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद जैसे बलिदानों और एपीजे अब्दुल कालाम, होमी जे भाभा जैसे वैज्ञानिकों के योगदान से हुआ है। भारत में इस संतुलन को भंग करने की कोई भी कोशिश कभी सफल नहीं हो सकती है। जो लोग प्रयास कर रहे हैं अततः असफल होंगे।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी है। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)