भारतीय रणनीतिकारों को कजाकी दंगों से सबक लेनी चाहिए

भारतीय रणनीतिकारों को कजाकी दंगों से सबक लेनी चाहिए

रजनी राणा

अक्सर अशांत रहने वाले मध्य एशियायी क्षेत्र में सबसे स्थिर कहे जाने वाले देश कजाकिस्तान में हाल ही में हुए प्रदर्शनों ने उसकी स्थिरता के विषय पर बहस छेड़ दी है। दो जनवरी को इंधन तेलों के मूल्यों में की गयी बढ़ोतरी के विरोध जो प्रदर्शन हुए वह कजाक के लिए अभूतपूर्व था। आजादी के बाद इस देश में हुए अब तक के सबसे बड़े प्रदर्शनों में इसे गिना जाने लगा है। इस तेजी से फैले घटनाक्रम के पीछे मुख्य कारण अफानिस्तान में हुए सत्ता बदलाव को बताया जा रहा है। दरअसल, अभी हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबानियोें ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया और एक चुनी हुई सरकार को अपदस्त कर दिया। पिछले वर्ष नवंबर में हुए इस बदलाव के कारण पूरे क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन को लेकर गत वर्ष, भारत सहित कई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक बैठक हुई थी। उस बैठक में भारत, रूस, ईरान और अन्य पांच मध्य एशियायी देशों के सुरक्षा सलाहकारों ने हिस्सा लिया और तालिबानियों द्वारा सत्ता कब्जे के बाद अफगानिस्तान में कट्टरवादियों द्वारा सिर उठाने के विषय को लेकर विचार-विमर्श किया गया। इस बैठक में भारत की ओर से चेतावनी दी गयी थी कि अफगान की जमीन पर स्थापित हो रही चरमपंथी विचारधारा, अवैध प्रवास तथा मादक पदार्थों की तस्करी चारो तरफ से घिरे इस राष्ट्र की सीमाओं को पार कर अन्य देशों में फेल सकती है। कजाकिस्तान में हाल ही में हुए दंगों से यह बात सच साबित हो गयी है।

पूरे देश में फैले दंगों के बाद कजाकी राष्ट्रपति, कासिम-जोमार्ट तोकायेव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी जो मुख्यतः अफगानिस्तान व अन्य देशों के निवासी हैं, का मुख्य उद्देश्य संवैधानिक आदेश को नजअंदाज करते हुए विद्रोह के रास्ते सत्ता हथियाना था। सामूहिक सुरक्षा संधी संगठन के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यह विदेशी आतंकवादी खून बहाने और कजाकिस्तान के विरूद्ध हमले करने में माहिर हैं। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के प्रशिक्षित आतंकवादियों और पाकिस्तान की तब्लिगी जमात, एक ऐसा संगठन जिसपर कई मध्य एशियायी देश और रूस ने प्रतिबंध लगा रखा है, जो इस क्षेत्र में अपने नेटवर्क को बढ़ाने के फिराक में है, के मध्य हो रहे सहयोग ने कजाकिस्तान में आतंकवाद और दंगों को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा तुर्की के विद्रोहियों की गतिविधियों और उनके अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के विद्रोहियों के साथ कायम संबंधों पर भी नजर रखी जा रही है। उन्होंने कहा कि एक हफ्ते की अवधि में बच्चों समेत लगभग 160 लोग मारे जा चुके हैें। इसके अलावा इन देशव्यापी प्रदर्शनों के कारण लगभग आठ हजार लोगों को जेल भेज दिया गया है।

तब्लीगी जमात की गुप्त योजना उस समय सबकी नजरों में आ गयी, जब पिछले वर्ष दिसंबर में सऊदी अरब ने उनकी गतिविधियों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि यह स्थापित सरकारों के लिए भयंकर खतरा है और आतंकवाद का दरवाजा है। पाकिस्तान स्थित तब्लीगी जमात, जो कजाकिस्तान समेत अन्य मध्य एशियाई देशों में धर्मांतरण करवा कर अपने पैर पसारने की कोशिश कर रही है, पर कजाकी सरकार ने आरोप लगाया कि उसने उनके देश में आतंकवाद जैसा वातावरण पैदा करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। सोवियत यूनियन के टूटने के बाद से ही यह देश अपने उदारवादी तथा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए जाना जाता रहा है। कजाकिस्तान के पड़ोसी देश किर्गिजस्थान, अलमाटी नामक स्थान तथा रूस में अपनी अच्छी खासी मौजूदगी के कारण तथा साउदी अरब द्वारा हाल ही में लगाए गए प्रतिबंधों के चलते कजाकी सरकार के आरोपों में दम दिखता है।

हैरानी की बात है कि पाकिस्तान की तब्लिगी जमात ने बार-बार अपने कार्यों से साबित किया है कि वह हिब्ज-उत-तहरीर नामक आतंकवादी संस्था, जो मध्य एशिया व रूस में प्रतिबंधित है, के साथ काफी मेल खाती है। हिब्ज मध्य एशिया में खलीफा राज कायम करना चाहती है। काबुल में तालिबानियों की वापसी और पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक की हाल में मिली जीत के कारण इनके हौसले बुलंद हुए हैं। इन्होंने पाकिस्तान सरकार पर फ्रांस पर ईश निंदा के कारण अपने संबंध विच्छेद करने की मांग की है। हिफ्ज-उत-तहरीर की तरह ही तहरीक-ए-लब्बैक, पाकिस्तान ने भी यह मांग की है कि पाकिस्तान धीरे-धीरे कानूनी रास्ता अपना कर और राजनीतिक प्रक्रिया के द्वारा शरिया को मौलिक कानून के तौर पर स्थापित करें, ताकि आगे चल कर यहां भी खलीफा राज कायम किया जा सके।

 
कजाकिस्तान में 7800 भारतीयों की उपस्थिति तथा उस देश पर यूरेनियम जैसी धातु के आयात के लिए निर्भरता को देखते हुए भारत को इस क्षेत्र व उस देश के अंदर हो रही स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है। यही नहीं भारत को आतंकी मंसूबों से लैस समूहों की गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया जैसे संगठन, जिसका भारत में आतंकवाद से नाता साबित हो चुका है और जिसकी पाकिस्तानी संगठन हिब्ज-उत-तहरीर और तब्लिगी जमात जैसे ही विचारधारा है पर ध्यानपूर्वक नजर रखने तथा उसकी गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। याद रहे कजाकी सरकार द्वारा उनके देश में तब्लिगी जमात के बढ़ते प्रभाव को नजअंदाज करने के कारण उन्हें हालिया दंगों का सामना करना पड़ा है। भारत भी तब्लिगी जमात के सदस्यों के बहुत बड़े समूह की सरजमी है। अभी हाल ही में बांग्लादेश में हुए अल्पसंख्यकों पर हमले के लिए जिम्मेदार टोंगी-इज्तेमा का पाकिस्तानी तब्लिगी जमात से तार जुड़ते दिख रहे हैं। भारत के लिए यह खतरे की घंटी है। यदि भारत स्थित तब्लिगी जमात पर जल्द कुछ नहीं किया गया तो स्थिति बिगड़ सकती है।
भारत को कजाकिस्तान की गलतियों से सबक लेना होगा और अपनी धरती पर पनपने वाली दंगे जैसी स्थिति को रोकने के लिए जल्द कुछ उपाय करना होगा। यह भी जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय चरमपंथियों या आतंकवादी समूहों के घुसपैठ की आशंका को खत्म करने के लिए समुचित सुरक्षात्मक एवं नीतिगत कदम उठाने होंगे। इसके अलावा भारत को हाशिये पर सक्रिय तत्वों को पहचानना होगा, जो विदेशों में बैठ कर गतिविधियां कर रहे हैं और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा व आंतरिक शांति को चुनौती दे रहे हैं।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी है। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »