इंडोनेशिया : इस्लामिक कट्टरता की ओर देश, हालिया कानून संशोधन पर AJI ने उठाए सवाल

इंडोनेशिया : इस्लामिक कट्टरता की ओर देश, हालिया कानून संशोधन पर AJI ने उठाए सवाल

नयी दिल्ली/ इंडोनेशियाई सरकार के द्वारा विगत 5 दिसंबर को इलेक्ट्रॉनिक सूचना और लेनदेन कानून (आईटीई कानून) में दूसरा संशोधन कर, जहां एक ओर प्रेस की स्वतंत्रता को कमजोर बना दिया है, वहीं दूसरी ओर सांप्रदायिक अभिव्यक्ति पर भी पहरा बिठा दिया है। इस मामले को लेकर देशी व विदेशी प्रेस समूहों के साथ कानूनी विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाए हैं। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने तो साफ तौर पर सरकार की आलोचना की है। साथ ही सरकार से मांग की है कि वह जल्द अपने इस कानून पर विचार करे तथा वापस ले। इस कानून को लेकर एलायंस ऑफ इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स (एजेआई) इंडोनेशिया ने सरकार से कानून को जल्द वापस लेने का आग्रह किया है।

बता दें कि विगत कुछ वर्षें से बड़ी तेजी से इंडोनेशिया की राजनीति बदल हरी है। इंडोनेशिया बुरी तरह इस्लामिक कट्टरता की ओर बढ़ रहा है। इसी के तहत बीते वर्ष इंडोनेशिया सराकर ने एक ऐसे कानून को मंजूरी दी, जिससे देश में स्वतंत्र प्रेस का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा साथ ही देश का संप्रदायनिर्पेक्ष ढ़ाचा भी प्रभावित होगा। दरअसल, बीते वर्ष इंडोनेशिया ने आपराधिक संहिता को कानून के रूप में पारित कर दिया, जो 1918 में बनाई गई संहिता का स्थान लिया। सांसद पिछले कई दशकों से इसे बदलने की कोशिश कर रहे थे। दरअसल, आखिरी बार सांसदों ने 2019 में इस तरह की कोशिश की थी, जिसके बाद देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इस बार, व्यापक आलोचना और सार्वजनिक परामर्श के सीमित अवसरों के बावजूद, राजनेताओं ने अल्प सूचना पर इसे पारित कर दिया।
इसके कई प्रावधान अपने दायरे में खतरनाक रूप से अस्पष्ट और व्यापक हैं – ‘रबर प्रावधान’, जैसा कि इंडोनेशियाई कहते हैं – जो नागरिकों की कीमत पर शासन को सशक्त बनाता है। जिन प्रावधानों की सबसे अधिक आलोचना हुई है, उनमें कामुकता के बारे में रूढ़िवादी नैतिक मूल्यों को थोपने वाले प्रावधान शामिल हैं और जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों को प्रतिबंधित करते हैं।

नए कानून में एक सकारात्मक बदलाव मौत की सजा पाए कैदी के लिए एक परिवीक्षाधीन अवधि की शुरूआत है। एक मौत की सजा पाने वाला कैदी अगर इस अवधि के दौरान अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन करता है और पश्चाताप प्रदर्शित करता है, तो अब उसकी सजा को मृत्यु से कारावास की अवधि में बदला जा सकता है।

दो प्रावधानों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही ध्यान आकर्षित किया है। एक में विवाहेतर यौन संबंध के लिए एक साल तक की जेल की सजा है, और दूसरे में कहा गया है कि जो जोड़े कानूनी रूप से विवाह किए बगैर एक साथ रहते हैं उन्हें भी जेल जाना पड़ेगा। ऐसी आशंका है कि इस कानून के जरिए इंडोनेशिया के हॉलिडे आइलैंड बाली जाने वाले अविवाहित विदेशी जोड़ों को निशाना बनाया जा सकता है।

हालाँकि, ये दोनो अपराध ऐसे हैं, जिनमें शिकायत होने पर ही संज्ञान लिया जा सकता है। इसका मतलब है कि ऐसे मामलों में तब तक कानून लागू नहीं कर सकते जब तक कि परिवार का कोई करीबी सदस्य – पति या पत्नी, माता-पिता या बच्चा – मामले की सूचना पुलिस को नहीं देता।

इससे यह संभव नहीं है कि नए प्रावधानों को कभी भी किसी अविवाहित विदेशी पर्यटक जोड़े के खिलाफ लागू किया जाएगा (हालांकि यह संभव है कि इंडोनेशिया के परिवार द्वारा रिपोर्ट किए जाने पर इंडोनेशियाई साथी के साथ किसी विदेशी के खिलाफ उनका इस्तेमाल किया जा सकता है)।

इंडोनेशियाई लोगों, विशेषकर युवा जोड़ों पर इन प्रावधानों के प्रभाव के बारे में अधिक चिंता है। यह परिवारों को लैंगिकता और साथी की पसंद के बारे में अपने विचारों को लागू करने के लिए पुलिस और अदालतों का सहारा लेने की अनुमति देते हैं।

यह भी आशंका है कि नए कानून का इस्तेमाल समलैंगिक लोगों को लक्षित करने के लिए किया जाएगा, जो इंडोनेशियाई कानून के तहत शादी नहीं कर सकते। इंडोनेशिया में समलैंगिकता अवैध नहीं है (आचे प्रांत को छोड़कर) लेकिन नए कानून के विरोधियों का कहना है कि यह समलैंगिक लोगों को एक लिहाज से अपराधी बनाता है।

गे और लेस्बियन लोगों को भी ‘अश्लील कृत्यों’ पर रोक लगाने वाले एक अन्य प्रावधान के तहत लक्षित किए जाने की संभावना है। यह बहुत ही अस्पष्ट रूप से परिभाषित है और संभवतः समान लिंग के लोगों के सार्वजनिक प्रेम प्रदर्शन पर लागू होगा।

नए कानून में ऐसे प्रावधान भी शामिल हैं जो गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी के प्रसार पर जेल की शर्तें लगाते हैं – यहां तक कि इसे प्राप्त करने की जानकारी पर भी। सरकारी परिवार नियोजन गतिविधियों के लिए अपवाद हैं, लेकिन यह प्रावधान स्पष्ट रूप से महिलाओं के चयन की स्वतंत्रता को सीमित करता है।

अन्य प्रावधान गर्भपात कराने वाली किसी भी महिला को चार साल की सजा और इसे करने वालों के लिए लंबी अवधि की सजा करते हैं (हालांकि बलात्कार पीड़ितों और चिकित्सा आपात स्थितियों में इसकी इजाजत होगी)।

नए कानून में ऐसे प्रावधान हैं जो राष्ट्रपति और सरकार के अंग सहित सरकारी अधिकारियों का अपमान करने पर उसे आपराधिक सजा दिया जाएगा। सत्य का कोई बचाव नहीं है। दूसरे शब्दों में, यदि अधिकारी का अपमान किया जाता है, भले ही आरोप गलत हों, वह अपराध श्रेणी में आएगा।

खुली बहस और प्रेस की स्वतंत्रता पर नए कानून संहिता का भयानक नकारात्मक प्रभाव पड़ता दिख रहा है। वास्तव में, समतुल्य प्रावधानों को संवैधानिक न्यायालय द्वारा असंवैधानिक रूप में पिछली संहिता से हटा दिया गया था। यह उन प्रावधानों को बहाल करने का एक खुला प्रयास है, जिससे सरकार अपने विरोधियों पर नकेल कस सके।

अन्य प्रावधान उन शिक्षाओं के प्रसार पर प्रतिबंध लगाते हैं जो राज्य की विचारधारा के विपरीत हैं। इसे सरकार के आलोचकों के खिलाफ भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रेस की स्वतंत्रता के दो अन्य प्रावधानों के प्रभाव के बारे में भी चिंतित हैं। पहला फर्जी समाचारों के प्रसारण और वितरण पर रोक को लेकर है, जिससे प्रसारण से समुदाय में गड़बड़ी या अशांति होती है। इस पर दो साल तक की सजा देने की बात कही गयी है।

दूसरा पत्रकारों के लिए और भी खतरनाक है। इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो असत्यापित या अतिरंजित या अपूर्ण (ऐसी शर्तें जिन्हें परिभाषित नहीं किया गया है) समाचारों को प्रसारित या वितरित करता है, उसे भी जेल का सामना करना पड़ेगा।

अन्य बहुत विवादास्पद प्रावधान ईशनिंदा से संबंधित हैं। यह कानून धर्म और धार्मिक जीवन पर बढ़ते प्रतिबंधों को पेश करता है, जो उन आधारों को मजबूत और विस्तारित करेगा जिन पर अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों को सताया जा सकता है। यह सोहार्तो के बाद के इंडोनेशिया में बढ़ती हुई समस्या को और बढ़ा देगा। इससे इस्लामिक कट्टरता बढ़ेगी और इंडोनेशिया जो आज एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है कल इस्लामिक देश घोषित हो जाएगा।

अधिकांश इंडोनेशियाई पर्यवेक्षक मानते हैं कि पिछले एक दशक में लोकतांत्रिक प्रतिगमन में वृद्धि हुई है। नया कानून निश्चित रूप से उस पैटर्न में फिट बैठता है। लेकिन इसे फरवरी 2024 में होने वाले बेहद महत्वपूर्ण राष्ट्रपति और विधायी चुनावों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है।

राष्ट्रपति जोकोवी अपने दूसरे कार्यकाल में हैं और फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, इसलिए चुनावों के परिणामस्वरूप इंडोनेशिया में शक्ति और धन का एक बड़ा उलट-फेर होगा जो पांच या दस वर्षों तक चलेगा।

राजनेता पहले से ही आने वाली स्थिति के लिए धक्का-मुक्की कर रहे हैं और कुछ ने प्रचार शुरू कर दिया है। धर्म और नैतिकता की पहचान की राजनीति ने हाल के वर्षों में इंडोनेशिया के कड़े संघर्ष वाले चुनावी मुकाबलों में एक केंद्रीय भूमिका निभाई है। हालिया कानून इसका प्रतिफल प्रतीत होता है।

अभी हाल ही में इंडोनेशियाई सरकार ने एक और संशोधन पेश कर उसे पारित करा लिया जो प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ है। साथ ही धर्मनिर्पेक्ष ताकतों के लिए भी खतरा पैदा करेगा। इसी दोनों बातों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंडोनेशियाई सरकार की आलोचना हो रही है।

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