रामस्वरूप रावतसरे
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में विवाह प्रमाण पत्र प्रदान देने वाले आर्य समाज के मंदिरों, सोसायटियों, ट्रस्टों और संस्थाओं की जाँच का आर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने इनके कामकाज और उसके तरीकों की गहन एवं विवेकपूर्ण जाँच करने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने यह आदेश पारित किया है। कोर्ट को कई मामलों में पुलिस सत्यापन से पता चला कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए आर्य समाज के मंदिरों द्वारा विवाह कराये जा रहे हैं और साथ में प्रमाण पत्र भी जारी किए जा रहे हैं।
ऐसे जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं के साथ दिए गए आधार कार्ड सहित अन्य दस्तावेज जाली पाए गए हैं। यहाँ तक कि नोटरीकृत शपथ पत्र भी फर्जी पाए गए हैं। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह पंजीकरण अधिकारी ने बिना सत्यापन के फर्जी और अमान्य विवाह प्रमाणपत्र के आधार पर विवाह पंजीकृत कर दिया। कोर्ट ने कहा, “इस तरह की शादियाँ मानव तस्करी, यौन शोषण और जबरन श्रम को बढ़ावा देती हैं। बच्चे सामाजिक अस्थिरता, शोषण, जबरदस्ती और शिक्षा में व्यवधान के कारण भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात सहते हैं। इसके अलावा ये मुद्दे अदालतों पर बोझ डालते हैं, इसलिए, दस्तावेज़ सत्यापन और ट्रस्टों/सोसायटी की जवाबदेही के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।”
विवाह प्रमाण-पत्र जारी करने वाली 15 ऐसी समितियों/ट्रस्टों/मंदिरों के नामों पर गौर करते हुए न्यायालय ने पाया कि पुलिस सत्यापन के बाद अधिकांश मामलों में यह पाया गया कि या तो समितियाँ धोखाधड़ी कर रही थीं या मुख्यालय से संबद्ध नहीं थीं या विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 का उल्लंघन करके संपन्न किए गए थे। यहाँ तक कि पार्टियों द्वारा दिए गए विवरण और दस्तावेज भी जाली थे। इसको देखते हुए कोर्ट ने गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद के पुलिस आयुक्तों को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 5 और बाल विवाह निषेध अधिनियम 1929 के प्रावधानों का उल्लंघन करके विवाह संपन्न कराने में शामिल ट्रस्टों की गहन और विवेकपूर्ण जाँच करने का आर्देश दिया।
जानकारी के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने अपने जीवन की सुरक्षा के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने अपनी याचिका में दलील दी थी कि वे बालिग हैं और उन्होंने आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। मंदिर द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र के आधार पर उन्होंने रजिस्ट्रार के समक्ष विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन किया था। अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने न्यायालय में कहा कि यह विवाह प्रमाण-पत्र आर्य समाज मंदिर ग्रेटर नोएडा द्वारा जारी किया गया प्रतीत होता है। इसमें पुजारी का नाम-पता, मंदिर का पता, गवाहों का विवरण और यह घोषणा नहीं है। इसमें यह भी नहीं बताया गया है कि विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार किया गया है या नहीं। इसलिए प्रमाण-पत्र जाली हो सकता है। जाली आर्य समाज प्रमाण पत्रों के साथ न्यायालय के समक्ष सुरक्षा की माँग को लेकर लगातार मामले दायर किए जा रहे हैं। इसको देखते हुए कोर्ट ने गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर के सहायक महानिरीक्षक पंजीकरण (स्टाम्प और पंजीकरण) को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा है। इसके साथ ही 1 अगस्त 2023 से 1 अगस्त 2024 के बीच उनके अधिकार क्षेत्र में विवाह के सभी विवरणों को रिकॉर्ड में रखने के लिए भी कहा है। इसके अलावा महानिरीक्षक स्टाम्प, उत्तर प्रदेश को उसी अवधि के लिए यूपी राज्य में पंजीकृत विवाहों की संख्या को जिलेवार दर्ज करने का निर्देश जारी किया है। हालांँकि, न्यायालय के समक्ष सुझाव रखे गए थे, लेकिन राजधानी लखनऊ के 5 मीराबाई मार्ग पर स्थित आर्य समाज प्रतिनिधि सभा की ओर से कोई भी व्यक्ति कोर्ट में उपस्थित नहीं हुआ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह आदेश मानसी व अन्य सहित 42 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आया है। अगली सुनवाई में इन संस्थाओं द्वारा शादी करवाने के लिए ली जाने वाली फीस, विवाह कराने वाले पंजित/पुजारी का नाम-पता आदि की जानकारी कोर्ट के सामने प्रस्तुत करने के लिए कहा है। इन याचिकाओं में याचियों का कहना था कि परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की गई है। मानसी मामले में कहा गया है कि उसकी और उसके पति की जान को खतरा है। याचिकाकर्ता मानसी ने सिविल लाइन्स के नवाब यूसुफ रोड पर स्थित रजिस्टर्ड आर्य समाज संस्थान से शादी कर कोर्ट में विवाह का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था। इसी मामले को लेकर जज ने यह निर्देश दिया है। यह संस्थान आर्य प्रतिनिधि लखनऊ से संबद्ध होने का दावा करती है।
इससे पहले जून 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रयागराज के कृष्णानगर स्थित आर्य समाज को निर्देश दिया था कि वह दो महीने की अवधि यानी 20 जून 2023 तक ऐसे विवाह न कराए, जहाँ प्रस्तावित दूल्हा और दुल्हन के परिवारों की सहमति न हो। आर्य समाज ने एक ऐसे व्यक्ति को विवाह प्रमाणपत्र जारी किया था, जिसके खिलाफ लड़की के परिवार ने मामला दर्ज कराया था। उसमें आरोप लगाया गया था कि लड़के ने लड़की को बहला-फुसलाकर भगाया है और उससे जबरन शादी कर ली है। वहीं, आर्य समाज द्वारा जोड़े को जारी किए गए विवाह प्रमाणपत्र में यह नहीं बताया गया था कि लड़की की उम्र का सत्यापन कैसे किया गया। लड़की के परिवार का दावा था कि वह नाबालिग थी। हालाँकि, आरोपित ने दावा किया था कि लड़की वयस्क है।
इसके पहले जून 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐसी जाँच का आदेश दिया था। उस समय जस्टिस अश्विनी मिश्रा और जस्टिस रजनीश कुमार की खंडपीठ ने प्रयागराज के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को निर्देश दिया था कि वे प्रयागराज के कीडगंज स्थित आर्य समाज के प्रधान संतोष कुमार शास्त्री के माध्यम से विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के तरीके और कार्यप्रणाली की जाँच करें। पीठ ने यह भी कहा था कि इस बात की जाँच की जानी चाहिए कि क्या शादी संपन्न कराए जा रहे हैं या सिर्फ विवाह प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं। संतोष कुमार शास्त्री को पिछले पाँच वर्षों में उनके द्वारा किए गए सभी विवाहों के रजिस्टर पेश करने का भी निर्देश दिया गया था, खासकर अगस्त 2016 में उनके खिलाफ विशिष्ट प्रतिबंध आदेश पारित होने के बाद से। तब पीठ ने कहा था, “बाहरी कारणों से काम कर रहे एक संगठित रैकेट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, जिसमें दूसरों की भागीदारी/सहायता संभव है।” दरअसल, इस मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष दावा किया था कि उसने निजी प्रतिवादी के साथ विवाह किया है और इसलिए उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना अनुचित है।
इसी तरह का एक मामला साल 2022 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में आया था। केस एक मध्य प्रदेश की मुस्लिम लड़की के अपहरण का था जिसका आरोप एक हिन्दू लड़के पर था। लड़की को पुलिस ने बरामद कर लिया था जिसने अपने अम्मी-अब्बू के साथ जाने से मना कर दिया था। लड़की लगातार उस लड़के के साथ जाने की जिद पर अड़ी थी जिस पर उसके अपहरण का आरोप था। लड़की ने बाद में गाजियाबाद के आर्य समाज मंदिर में धर्म परिवर्तन कर लिया। लड़की के परिजनों ने अवैध धर्मांतरण बताकर लड़की को लड़के के घर जाने से रोकने की माँग की थी।
दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज में शादियां हिंदू रीति-रिवाज से ही होती हैं और अग्नि के सात फेरे दिलवाए जाते हैं। इसके बाद एक मैरिज सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। आर्य समाज से होने वाली शादियों को आर्य समाज मैरिज वैलिडेशन 1937 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत मान्यता देने की बात होती है। इसमें दूल्हे की उम्र 21 साल से अधिक और दुल्हन की उम्र 18 साल से अधिक होनी चाहिए। इसमें दो अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग भी शादी कर सकते हैं। यहाँ शादी करने वाले जोड़े को पहले रजिस्ट्रेशन कराना होता है। दोनों पक्षों को हलफनामा देना होता है। इसके बाद दोनों के दस्तावेजों को देखने के बाद उनकी शादी आर्य समाज मंदिर में कराई जाती है। अगर लड़का-लड़की एक ही धर्म का है तो शादी हिंदू एक्ट के तहत मानी जाती है। अगर जोड़ा अलग-अलग धर्म का होता है तो आर्य समाज मैरिज वैलिडेशन एक्ट के तहत उसे मान्यता दी जाती है हालाँकि कानूनी तौर पर शादी को तभी वैध माना जाता है जब शादी को एसडीएम कोर्ट में रजिस्ट्रेशन कराया जाता है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)
बहुत से राज्यों ने इनके सर्टिफिकेट को मान्यता देने से मना कर दिया है