गौतम चौधरी
इन दिनों केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इस्लाम के इंडोनेशियाई वर्जन नुसंतारा पर बहस छिड़ी हुई है। भारत सहित दुनिया के कई विद्वानों ने इसका समर्थन किया है। भारत के एक हिन्दू दक्षिणपंथी नेता ने तो इसे इस्लाम का आधुनिक रूप तक बताया दिया। उन्होंने भारत के मुसलमानों को इस मॉडल का अनुसरण करने की सलाह दी है। उनकी समझ यह है कि यह मुसलमानों को उनके मौजूदा संकट से मुक्त दिलाने में बेहद कारगर सिद्ध होगा। यही नहीं शेष राष्ट्र के साथ अल्पसंख्यक समुदाय के संबंधों को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी। आइए इस्लाम के इस इंडोनशियाई मॉड्यूल पर चर्चा करते हैं।
इंडोनेशिया के इस इस्लामिक स्वरूप का नाम इस्लाम नुसंतारा है। यह इस्लाम का सक्रिय रूप से चुना गया एक वैकल्पिक संस्करण है जिसे 2015 में इंडोनेशिया में इस्लामिक विद्वानों के एक समूह द्वारा तैयार किया गया था। यह आईएसआईएस के कट्टरपंथी के खतरे के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया। इस्लाम के इस संस्करण का मुख्य एजेंडा राष्ट्र-राज्य की अवधारणा की रक्षा करना और इस्लामी शिक्षाओं के उदार मूल्यों की वकालत करना है, जो किसी राष्ट्र के सांस्कृतिक और राजनीतिक पहलुओं में हस्तक्षेप नहीं करता। यह जिहाद के विचार को पुरातन इस्लाम की चरम शिक्षा के रूप में खारिज करता है। इस्लाम के इस सुधारवादी संस्करण की निगरानी नहदलातुल उलमा नामक विद्वानों के एक समूह द्वारा की जाती है, जो इंडोनेशियाई सरकार के सहयोग से काम करते हैं। इस्लाम के इस मॉडल की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसने राष्ट्रीय चेतना को धार्मिक सिद्धांत के साथ घालमेल नहीं किया है। यह उम्मत की अवधारणा का विरोध करता है, जो राष्ट्र के सीमाओं के परे इस्लाम के बैनर तले एकजुट होने वाले भाईचारे को संदर्भित करता है।
सच पूछिए तो इंडोनेशिया के विचारवान उलेमाओं ने जिस प्रकार की अवधारणा प्रस्तुत की है उसी प्रकार की धारणा भारतीय मुसलमानों को भी बनाना चाहिए। यदि इस्लाम के इतिहास को देखें तो खुद इस्लाम के मानने वालों ने भी कुछ गैरजिम्मेदार शासकों के खिलाफ झंडा बुलंद किया है। यह संभव नहीं है कि दुनिया के लोग एक जैसे दिखें और एक जैसे कपड़े पहने। यह भी संभव नहीं है कि दुनिया के सभी लोग एक ही संस्कृति को मानें और एक राष्ट्रीयता को मानें। इंडोनेशिया ने दुनिया के मुसलमानों को रास्ता दिखाया है। भारत में भी इस प्रकार के प्रयोग हुए हैं। मुगल शासकों में कुछ को छोड़ कर अधिकतर ने कभी तुर्कों के खिलाफत को मान्यता नहीं दी। भारत में सल्तनत काल में भी कई शासकों ने ऐसा किया लेकिन वे इस्लाम के पक्के विश्वासी थे। ऐसे में इस्लाम के लिए अरबी संस्कृति की जरूरत नहीं है।
जब तुर्की में अतातुर्क मुस्तफा कमाल पाशा ने सत्ता संभाली तो उसने कुरान का तुर्की भाषा में अनुवाद करवाया। हालांकि उसकी मान्यता नहीं मिली लेकिन विश्व की बदल रही व्यवस्था में ऐसा करना होगा। कुरान को किसी अन्य भाषा में न भी अनुवाद करांए लेकिन किसी देश की राष्ट्रीयता और उसकी संस्कृति से जब इस्लाम की टकराहट हो तो वहां इस्लामी विद्वानों को नरम रुख अपनाना ही पड़ेगा अन्यथा यह विश्व शांति के लिए खतरा पैदा करेगा। इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं। भारतीय मुसलमान भी यदि इस्लाम के ऐसे ही मॉडल को स्वीकार करते हैं और अरबी संस्करण को छोड़ देते हैं, तो भारत कई प्रकार की परेशानियों से बच जाएगा। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जैसे कट्टरपंथी संगठनों ने अक्सर राष्ट्र-राज्य की अवधारणा को कमजोर करके इस्लामिक स्टेट के जड़वादी संस्करण को बढ़ावा दिया है। अमूमन उलेमा इस्लाम को समावेशी अवधारणा के बजाय कटरपंथी अवधारणा प्रस्तुत करते हैं। इससे युवाओं में कट्टरता बढती है और समस्या खड़ी होती है। युवा गुमराह हो रहे हैं। जैसा कि इस्लाम नुसंतारा ने बताया है, आस्था का स्थानीयकरण चरमपंथी विचारधाराओं की संभावना को बहुत कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशियाई मदरसों ने अपने उदार चरित्र का श्रेय फिक्ह शिक्षा में बहतसुल मासाइल मॉडल को दिया है, जिसका नेतृत्व एक धार्मिक विद्वान करते हैं और इसमें पुरुष और महिला दोनों छात्र शामिल होते हैं। यह सीखने का मॉडल इंडोनेशियाई मुसलमानों को उनके स्थानीय संदर्भ में फिक्ह की व्याख्या करने में सक्षम बनाता है। भारत में भी इस तरह की व्याख्या की आवश्यकता है, ताकि स्थानीय संदर्भ में इस्लाम को समझा जा सके। सूफी परंपरा ने भक्ति परंपरा के कई तथ्यों को अपने साथ जोड़ा है। इसके कारण भारत में समकालिक संस्कृति के विकास में मदद मिली।
यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इंडोनेशिया एक मुस्लिम बहुल देश है, जो किसी भी परिवर्तन के बावजूद, अभी भी इस्लाम के प्रभाव में कार्य करता है। भारत एक बहुधर्मी देश होने के कारण इस्लाम नुसंतारा के इंडोनेशियाई मॉडल का पालन करना कठिन हो सकता है। हालांकि, मॉडल को भारतीय संस्करण में परिवर्तित किया जा सकता है क्योंकि इस्लामी चरमपंथ की समस्या दोनों देशों के लिए समान है। भारत में हाल ही में उदयपुर में हुई हत्या की तरह, इंडोनेशिया को भी 90 के दशक के अंत में मुसलमानों और ईसाइयों के बीच इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। यह अंतर-धार्मिक संगठनों और रचनात्मक संवादों के गठन के माध्यम से हल किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप इस्लाम नुसंतारा का निर्माण हुआ। इंडोनेशिया द्वारा अपनाए गए मार्ग से सीखते हुए, भारत के मुसलमान इस्लाम नुसंतारा का उपयोग भारतीय संस्करण में परिवर्तित कर कर सकते हैं। इस्लाम को प्रोत्साहन तो मिलेगा ही साथ ही बहुधार्मिक सहिष्णुता में भी बढ़ोतरी होगी।
जैसा कि सूफी परंपरा ने हमें सिखाया है, नफरत से केवल प्यार से ही निपटा जा सकता है और यह प्यार इस्लाम नुसंतारा द्वारा आसानी से प्रदान किया जा सकता है। हाल ही में बिहार की राजधानी पटना के फुलवारीशरीफ मॉड्यूल के पर्दाफाश से पूरा देश सन्न है। इस माॅड्यूल की जांच से पता चलता है कि भारत को इस्लामिक स्टेट में बदलने की कोशिश करते हुए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के कैडर बड़ी तेजी से काम कर रहे हैं। इसका विस्तार रोकना है तो भारतीय सूफीवाद के साथ इस्लाम नुसंतारा को फ्यूज कर नए इस्लामिक माॅड्यूल को गढ़ने की जरूरत है।