रांची/ उर्दू शिक्षक के विभिन्न पदों पर बहाली शुरू करने एवं उर्दू भाषा से जुड़े मांगों को लेकर आज आमया संगठन ने राजभवन के समक्ष महाधरना दिया। संगठन के कार्यकर्ताओं का दावा है कि विगत 23 वर्षों से 4401 उर्दू शिक्षकों का पद खाली है लेकिन सरकारी उदासीना के कारण उस पर बहाली नहीं हो पा रही है।
महाधरना में सैकड़ों की संख्या में उर्दू प्रेमी राजभवन के सामने जुटे और सरकार के खिलाफ अपना आक्रोश व्यक्त किया। महाधरना के दौरान आमया संगठन के कार्यकर्ता हाथों में तख्ती लिए अपनी मांगों के समर्थन में नारे लगाते दिखे।
इस अवसर पर महाधरना के नेतृत्व कर रहे एस. अली ने कहा कि वर्ष 1999 में बिहार शिक्षा विभाग द्वारा प्राथमिक एवं मध्य विधालय जहां 10 उर्दू भाषी छात्र पढ़ते हैं, उन विधालयों में उर्दू शिक्षकों की बहाली हेतु 4401 उर्दू शिक्षक के पद सृजित किए गए थे, लेकिन शिक्षा विभाग के गलत नियमवली के कारण आज भी 3700 उर्दू शिक्षक के पद खाली है। अली ने कहा कि इस खाली पद को भरने की पहल नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि इंटर एवं स्नातक टेट उत्तीर्ण में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है।
अली ने बताया कि उक्त पद में 1526 अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया है। इन पदों को पिछड़ा एवं सामान्य वर्ग के कोटे में समाहित किया जाना चाहिए था चूंकि चार बार निकले विज्ञापन में आरक्षित वर्ग से एक भी आवेदन नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यह मामला पूर्ण रूप से अव्यावहारिक है।
अली ने बताया कि पिछले वर्ष 2022 में शिक्षा विभाग ने बिना समुचित जांच किए 543 उर्दू प्राथमिक एवं मध्य विधालय का स्टेटस छीन कर सामान्य विधालय बना दिया और शुक्रवार की छुट्टी समाप्त कर दी। राज्य में 635 ़2 विधालय के लिए मात्र 92 उर्दू शिक्षक के पद दिए जा रहे है जबकि छात्र-शिक्षक अनुपात के अनुसार 300 से अधिक उर्दू शिक्षक होने चाहिए।
उन्होंने बताया कि हाईस्कूल शिक्षक बहाली में वर्ष 2017 के विज्ञापन के विपरित जाकर शिक्षा विभाग और जेएसएससी ने शैक्षणिक योग्यता निर्धारित कर दिया, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हाईस्कूल में उर्दू शिक्षक बहाली में अभियार्थी न्युक्ति से वंचित रह गए। सरकार के संकल्प 1278 वर्ष 2003 के अनुसार प्रारम्भिक उर्दू विधालयों में मातृभाषा में शिक्षा एवं किताबें देनी है लेकिन उससे वंचित किया जा रहा।
उन्होंने कहा कि सरकार की अधिसूचना 6807 वर्ष 2007 में उर्दू को द्वितीय राज्य भाषा घोषित किया गया, जिसके आधार पर सरकारी कार्यालयों के नाम, सरकारी दस्तावेजों, भूमि का निबंधन, सरकारी नियम व अधिसूचना आदि हिन्दी भाषा के साथ उर्दू में होने चाहिए थे लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है।
बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 85 के तहत झारखंड में उर्दू एकेडमी बनना चाहिए था, जो 23 वर्षों में नहीं बना। बिहार से मिले उर्दू अनुवाद और उर्दू टंकक से सरकार क्लर्क किरानी का काम करवा रही है।
महाधरना को उर्दू टेट पास मंच के जावेद अंसारी, मो नूर, अंजुमन तरक्की उर्दू के सुहैल सईद, मौलाना तहज्बुल हसन, अंजुमन फरोग ए उर्दू के मो इकबाल, दानिश आयाज, राष्ट्रीय अंसारी एकता संगठन के हेदायतुल्लाह अंसारी, मदरसा शिक्षक संघ के मौलाना फजलुल कदीर, गिरिडीह से मुमताज अंसारी, साहिबगंज से शेख रसीद, जमशेदपुर से निसार अहमद, लोहरदगा से सुहैब अख्तर, हजारीबाग सबाना शहजादी, रहनुमा प्रवीन, आमया संगठन के जियाउद्दीन अंसारी, मो फुरकान, नौशाद आलम, रहमतुल्लाह अंसारी, एकराम हुसैन, अफताब आलम, हारिश आलम, इमरान अंसारी, मो जावेद, अबु रेहान, नदीम अर्श, गुफरान अंसारी, शेख आसिफ, अब्दुल बारी, नसीम अंसारी, फिरोज अंसारी, अकरम अंसारी, असलम अंसारी, दानिश अब्दुल्ला, मो सईद आदि ने संबोधित किया।