गौतम चौधरी
दीना और भदरी दो भाई थे। आपको पहले ही बता दें कि यह लोकगाथा बिहार में पायी जाने वाली मुसहर जाति से संबंध है। दीना-भदरी के पिता का नाम कालू सदा और माता का नाम निरसो था। दोनों भाई अपने माता-पिता से अगाध प्रेम करते थे। दीना की पत्नी का नाम रोदना था और भदरी की पत्नी का नाम सुधना था। कुछ स्थानों पर इन दोनों का नाम हंसा-संझा भी बताया जाता है। दरअसल, बिहार में निक नेम रखने की परंपरा पुरानी है। हो सकता है दोनों का यह निक नेम हो। दोनों भाई अपनी-अपनी पत्नियों से बहुत प्यार करते थे और उन्हें घर से बाहर मजदूरी करने के लिए नहीं भेजते थे। वे स्वयं दिनभर जंगल में शिकार करते, खाने को लाते, लेकिन अपने माता-पिता और पत्नी को बेगार खटने नहीं देते थे। यहां बेगार खटने की व्याख्या भी जरूरी है। बेगार का मतलब बिना मजदूरी के किसी जमींदार या व्यापारी के यहां काम करना। उसके बदले में वह कुछ खाना दे देता था। कहा जाता है वो दोनों बहुत वीर थे। अस्सी मन का धनुष और चैरासी मन का तीर हमेशा अपने कंधे पर लटकाये रहते थे। लोकगाथाओं में इस प्रकार के अतिरेक कई स्थानों पर मिल जाते हैं।
दीना और भद्री जिस नगर में रहते थे उस नगर का नाम जोगिया नगर था। उस नगर का राजा कनक सिंह धामि था। वह बड़ा ही अत्याचारी और निरंकुश था और अपने राज्य में रहने वाली प्रजा से बेगार कराता था। जो कोई भी बेगारी नहीं करता, उस पर राजा बेइंतहा जुल्म ढाता था।
राजा कनक सिंह धामि की एक बहन थी जिसका नाम बचिया था। बचिया तंत्रमंत्र में सिद्धहस्त थी। वह दीना-भदरी को नीचा दिखाने के उद्देश्य से अपने राजा भाई से कलहवाकर नगर में एक तालाव खुदवायी और अपने जादू के बल पर उसमें नाग की एक प्रजाति, जिसे तिरहुत में पनियादरार यानी पनियांदराज कहा जाता है, एक जोड़ा डलवा दी। इस तरह जो भी व्यक्ति उस तालाब में स्नान के लिए आता, पनिया दरार उसे डस लेता था। नगर के जानवर भी जब उसमें पानी पीने जाते तो वह उन्हें खा जाता था। धीरे-धीरे वह पोखरा नगर के पशुओं के मृत शरीर से भर गया और उससे दुर्गंध उठने लगी। तब नगर के लोग उस समस्या से निजात पाने के लिए दीना-भदरी के पास गये। नगर के लोगों के आग्रह पर दोनों भाइयों ने तालाब से जानवरों के सारे मृत शरीर को बाहर निकाल दिया जिससे नगर वासियों को राहत मिली।
इस घटना से बचिया खुद को बहुत अपमानित महसूस की। वह दीना-भदरी को सबक सिखाने के लिए षडयंत्र रचने लगी। उसने अपने भाई राजा कनक सिंह धामि को दीना-भदरी से बेगार कराने के लिए उकसाया। राजा ने अपने चैर बरेला में तमाम प्रजा को बेगारी में खेती करने का हुक्म दिया। सुबह होते ही सभी औरत और मर्द बेगार करने किए चौर बरेला पहुंचे। यहां तक परसौती महिलाएं भी अपने दुधमुंहे बच्चे के साथ बेगार करने के लिए विवश थीं। जब लोग बेगार कर रहे थे तब बचिया अपने मंत्र से एक बुढ़िया का वेश धारण कर चौर पहुंचती है और बड़बड़ाने लगी है कि कैसा बेवकूफ गिरहत है। हलवाहा के साथ-साथ दो जवान कुदाल चलाने वाला भी बुला लेता ताकि वह खेत की आड़ी (मेड़) को अच्छे से काटकर मिला देता। बुढ़िया बनी बचिया ने हलवाहे को भी यह सुनाया और कहा कि कनक सिंह धामि को आने दो, उसको बताते हैं कि जोगिया नगर में कालू सदा का बेटा दीना-भदरी बहुत बलशाली है। उसे बुला लावे कुदाल चलाने के लिए। बुढ़िया वेशधारी बचिया यह ताना देते हुए वहां से चली जाती है।
इस बीच कनक सिंह धामि चौर बरेला पहुंचता है जहां हलवाहा उस बुढ़िया द्वारा किये गये उपहास की बात उसे बताता है। हलवाहे की बात सुनकर आगबबूला राजा ताड़ की बारह पसेरी की छड़ी लेकर दीना-भदरी के घर पहुंचता है। दीना-भदरी की मां निरसो चनन गाछ के नीचे बैठकर सीकी का पथिया यानी टोकरी बना रही थी। कनक सिंह निरसो से पूछता है कि तुम्हारा बेटा कहां है? निरसो डर के मारे चुप्पी साध लेती है। निरसो की चुप्पी से बौखलाकर राजा कनक सिंह उसे अपने बारह पसेरी के जूते से मारता है जिससे निरसो मुंह के बल गिर जाती है और जोर-जोर से विलाप करने लगती है। उधर उत्तर नहीं पाकर राजा कनक सिंह दीना-भदरी की खोज में आगे बढ़ जाता है।
दीना-भदरी तब घर में ही सो रहे थे। भदरी सपने में देखता है कि उसकी मां जार-बेजार यानी जोर-जोर से रो रही है। वह हड़बड़ाकर उठता है और दीना को भी जगाता है। दोनों अपनी मां को देखने पेड़ के पास जाते हैं तो पाते हैं कि वो जोर-जोर से विलाप कर रही है। निरसो पूरी बात दीना-भदरी को बताती है जिससे दोनों भाई गुस्से से भर जाते हैं। तभी उनकी नजर राजा कनक सिंह पर पड़ती है जो वहां से जा रहा था। वे दौड़कर जाते हैं और राजा के पीठ पर फांदकर उसकी डांर पर पैर मारते है और उसे पटक देते हैं। तब कनक सिंह अपनी जेब से जादू की किताब निकालकर साबरमंतर (एक तरह का जादू) पढ़ने लगता है लेकिन इससे पहले कि वह अपने जादू से दीना-भदरी पर प्रहार कर पाता, दोनों भाई उस पर हमला बोल देते हैं। तब कोई चारा नहीं देख, राजा कनक सिंह वहां से भाग खड़ा होता है। इसके बाद दीना-भदरी चौर बरेला जाकर बेगारी कर रहे लोगों से काम बंद करवा देते हैं और लोगों को बेगार खटने से छुट्टी मिल जाती है।
दीना और भदरी को जान से मारने की नीयत से बचिया तब राजा सलहेस और दीना-भदरी की आराध्य देवी बहोसरि से छलपूर्वक यह प्रतिज्ञा करा लेती है कि वे दोनों बचिया के उद्देश्य पूर्ति में सहायक बनेंगी। जब राजा सलहेस और देवी बहोसरि को पता चलता है कि बचिया ने दीना-भदरी को उनके हाथों मृत्यु का शपथ करा लिया है तो वो दोनों बहुत दुखी होते हैं। चूंकि दोनों ने प्रतिज्ञा की थी इसलिए वो दोनों दीना-भदरी को मारने के षड्यंत्र में अनचाहे भी शामिल होते हैं। देवी बहोसरि दोनों भाइयों को सपने में बताती है कटैया खाप नामक जंगल में एक सुआर मरा पड़ा है। दोनों भाई उस जंगल में जाने के लिए तत्पर होते हैं। माता निरसो को ननिहाल भेजकर और अपने मामा बुहरन को साथ लेकर दीना-भद्री कटैया खाप की ओर प्रस्थान करते हैं। जंगल में बहुत तलाशने पर भी उन्हें सूअर नहीं मिलता है। बुहरन पेड़ पर चढ़कर देखता है कि दूर में एक हिरण का बच्चा है। दोनों भाई उस बच्चे के पास जाते हैं, तब हिरण का बच्चा बाघ बन जाता है और दीना-भदरी से उसकी लड़ाई शुरू हो जाती है। एक-एक करके सारा तीर खत्म हो जाता है लेकिन लड़ाई खत्म नहीं होती है। अंत में दोनों भाई उस बाघ से शारीरिक युद्ध करने लगते हैं और बाघ के शरीर को दो भागों में चीर देते हैं। तब राजा सलहेस वहां गीदड़ बनकर उपस्थित होते हैं और बाघ के अलग-अलग शरीर को एक कर देते हैं जिससे बाघ जिंदा हो जाता है।
सात दिन और सात रात युद्ध चलता है जिसके जिसमें बाघ जीत जाता है, दीना-भदरी मारे जाते हैं। जंगल में दोनों भाइयों का शव पड़ा रहता है, कोई अंतिम संस्कार करने वाला वहां नहीं है। अंतिम संस्कार नहीं होने से दोनों भाई प्रेतात्मा बन जाते हैं और अपने संस्कार की तैयारी में जुट जाते हैं। प्रेतात्मा बने दोनों भाई मुनष्य वेश धारण कर मुसहरों की बस्ती एकौशी पहुंचते हैं और बस्ती के लोगों के समक्ष जंगल में पड़े दीना-भदरी के शव का अंतिम संस्कार का प्रस्ताव रखते हैं। एकौशी के लोग दीना-भदरी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं। तब दीना-भदरी एक फकीर का वेष धरकर अपने गांव पहुंचते हैं और एक वणिक को सारी कहानी बताते हैं। उसके बाद कफन और दाह-संस्कार की अन्य सामग्रियों का प्रबंध होता है, दाह संस्कार संपन्न होता है और फिर भोज का आयोजन किया जाता है।
दीना-भदरी के प्रेतात्मा बनने के बाद अनेक छोटी-छोटी कथाएं जुड़ती हैं। लोककथा के मुताबिक दाह-संस्कार से पूर्व दीना-भदरी प्रेत योनी में समाज की भलाई के लिए अनेक लड़ाईयां लड़ते हैं और बुराई के खिलाफ उनका संघर्ष तेज होता है। जैसे, वह सबसे पहले बचिया का पीछा करते हैं। बचिया दीना-भदरी से बचने के लिए कोशी पार भाग जाना चाहती है, लेकिन दीना-भदरी उसे पकड़ लेते हैं और तलवार से उसकी गरदन काट देते हैं। उसके बाद वे राजा कनक सिंह धामि के पास पहुंचते हैं और युद्ध करके राजा और उसकी रानी को मार डालते हैं।
इस प्रकार तिरहुत में दीना और भदरी की कथा लोगों को सुनाई जाती रही है। इस कथा से एक खास समाज के लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनके ऊपर पूर्व काल में जो सामंतों के द्वारा जुल्म ढाए गए हैं उसको याद रखते हैं। इस प्रकार तिरहुत में 16 लोक गाथाएं हैं। ये तमाम लोक गाथाएं दलित और पिछड़े समाज से संबंधित है। इन कथाओं में संघर्ष के साथ ही साथ उन दिनों के सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप का भी चित्रण मिलता है। दलितों की स्थिति और समाज में जो असमानताएं थी उसके बारे में भी इन कथाओं में चर्चा है। ये लोग गाथाएं गेय होती है और इसे गाने वाले बेहद रोचक तरीके से उसको प्रस्तुत करते हैं। अगर कोई ठीक ढंग से इन कथाओं को गाए और इस शैली के अनुसार उसकी व्याख्या प्रस्तुत करे तो यह आम जन को अपनी ओर आकर्षित भी करता है। आजकल इस प्रकार के लोक गाथा गाने वालों की बहुत कमी हो गयी है।
(हमारे ग्रामीण एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के शाखा सचिव रहे स्व. रामजी दास मुसहर द्वारा सुनायी गयी कथा पर आधारित।)