वामपंथ/विश्व मजदूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक लेनिन को याद करते हुए

वामपंथ/विश्व मजदूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक लेनिन को याद करते हुए


लेनिन के जीवन के बारे में, उनके विचारों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। लेकिन आज एक बार फिर उनके जन्मदिन पर उनके बारे में, खासकर उनके विचारों, उनके द्वारा विश्व मजदूर वर्ग की सेवा, संपूर्ण मानवता की मुक्ति की तरफ जाने वाले मार्ग को रौशन करने के बारे में लिखने की जरूरत है। बल्कि बार-बार लिखने की जरूरत है। जिन वर्गों के हित मौजूदा शोषण-उत्पीड़न की बुनियाद पर टिकी, पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था को बचाए रखने में हैं, वे अपने दुश्मन पर, मजदूर वर्ग पर हर तरफ से घेरा डालते हैं। वे अपने हर संकट का बोझ मजदूरों पर लादते हैं। कानून, जेल, लाठी, गोली से दबाते हैं और कभी कुछ रियायतों के टुकड़ों से शांत भी करते हैं।

लेकिन इस सबसे पहले वे मजदूर वर्ग को उसके आत्मगत हथियार, उसे राह दिखाने वाले सिद्धांत से वंचित करने की कोशिश करते हैं। मजदूर वर्ग की मुक्ति की विचारधारा मार्क्सवाद पर अपने सभी साधनों के जरिए हमला करते हैं। वे मार्क्सवाद को पुरानी पड़ चुकी, “मौजूदा” हालातों के लिए गैर-प्रासंगिक, व्यवहार में लागू ना हो सकने वाली विचारधारा कहकर कुत्साप्रचार करते हैं। इस विचारचारा के संस्थापकों – मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ पर लगातार कीचड़ उछाला जाता है। निजी चरित्रहनन किया जाता है। संसार के मजदूर वर्ग के पूँजीवाद विरोधी संघर्षों की एक गौरवशाली विरासत रही है। विश्व पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था के रखवाले, इसके बौद्धिक सेवक लगातार झूठ, फरेब, कुत्साप्रचार के सहारे इस गौरवशाली विरासत को ढँक देना चाहते हैं। मजदूर वर्ग के अग्रणी तत्वों की यादों से मिटा देना चाहते हैं। ऐसे समय में अपनी विरासत पर पहरा देना, इसके मजबूत पहलुओं को बार-बार उभारना, वर्ग संघर्ष (विचारधारात्मक वर्ग संघर्ष) का अहम कार्यभार है। इन अर्थों में भी कामरेड लेनिन को याद करना, उनके सैद्धांतिक अवदानों को बुलंद करने की भी एक अहमियत है।

एक छोटे से लेख में कामरेड लेनिन के बारे में लिख पाना असंभव-सा है। उनकी तारीफ के लिए शब्द कम पड़ते महसूस होते हैं। विश्व मजदूर वर्ग के लिए उनके अवदान बहुत बड़े हैं। उन सबके बारे में इस छोटे से लेख में चर्चा करना संभव नहीं। यहाँ हम लेनिन के कुछेक सैद्धांतिक अवदानों की चर्चा तक सीमित रहेंगे।

मार्क्सवाद की स्थापना कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने की थी। लेनिन ने इसे रूसी क्रांति के ठोस व्यवहार के साथ जोड़कर विजयी समाजवादी क्रांति का नेतृत्व करके इसे और अमीर बनाया। लेनिन ने मार्क्सवाद पर संशोधनवादी हमलों का बार-बार मूँह मोड़ा और मार्क्सवाद के अमीर तत्व की हिफाजत की।

नौजवान होते ही जब लेनिन रूस के क्रांतिकारी मार्क्सवादी आंदोलन में शामिल हुए, तो उस समय रूस में नरोदनाया वोल्या (जनता की रजा) नामक संगठन का बोलबाला था। इन्हें निरोदनिक कहा जाता था। यह संगठन रूस के किसानों में काम करता था। यह किसानों का ही संगठन था। नरोदनाया वोल्या के क्रांतिकारी रूस में हुए पूँजीवादी विकास को नकारते थे। उनका मानना था कि रूस पूँजीवादी विकास से बच सकता है। जबकि रूस पहले ही पूँजीवादी विकास की राह पर काफी आगे बढ़ चुका था। नरोदनिकों का मानना था कि रूस में पूँजीवादी विकास जितना भी हुआ है, यह बाहर से थोपा हुआ है, एक बिगाड़ है। पूँजीवादी विकास का एक लाजिमी नतीजा समाज के ध्रुवीकरण, एक सिरे पर संग्रहीकरण और दूसरे सिरे पर कंगालीकरण में निकलता है। पूँजीवादी विकास लगातार छोटे मालिकों (छोटे किसानों, छोटे व्यापारियों, दस्तकारों आदि) के बड़े हिस्से का मजदूरों में रूपांतरण करता है। रूस के नरोदनिक पूँजीवादी विकास की बदौलत रूसी समाज के इस वर्गीय ध्रुवीकरण को रोकने की असफल, नाकाम कोशिशें करते थे। पहले रूस में मार्क्सवाद के संस्थापक प्लेखानोव और फिर लेनिन ने नरोदनिकों के इन युटोपियाई विचारों के ख़िलाफ संघर्ष किया। कॉमरेड लेनिन ने अपनी विभिन्न रचनाओं में ना रद्द होने वाले तथ्यों के जरिए रूस में पूँजीवादी विकास को दिखाया। लेनिन ने साबित किया कि पूँजीवादी विकास की बदौलत छोटे मालिकों का ध्रुवीकरण, यानी उनका मजदूरों में बदलना अटल है। इस प्रक्रिया को रोकना नामुमकिन है, युटोपियाई है। ये कोशिशें सामाजिक विकास के ख़िलाफ, प्रतिक्रियावादी हैं। इस दौर की लेनिन की रचनाएँ भारत के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आंदोलन के लिए खास महत्व रखती हैं। भारत के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आंदोलन का अच्छा-खासा हिस्सा यहाँ हुए पूँजीवादी विकास से इनकार करता है। यह हिस्सा किसानों (मालिक किसानों) में काम करने को विशेष महत्व देता है, क्योंकि इनका कार्यक्रम भारत के ठोस हालातों से पूरी तरह टूटा हुआ है। ये भारत में एक काल्पनिक नव-नवजनवादी क्रांति करना चाहते हैं, जिसकी मुख्य ताकत किसान होंगे। इसलिए ये मजदूरों के महासागर, बड़े शहरों के मजदूरों में लगभग गैर-हाजिर हैं। पूँजीवादी विकास के अटल नतीजे के तौर पर छोटे मालिकों (खासकर किसानों) के हो रहे सर्वहाराकरण (मजदूर बनने दृ संपादक) को रोकने के लिए ये साथी पूरा जोर लगा रहे हैं। लेकिन इन साथियों की ये कोशिशें कामयाब नहीं होतीं। ये कोशिशें असफल कोशिशें हैं, क्योंकि सामाजिक विकास को बाँधा नहीं जा सकता।

कॉमरेड लेनिन ने अपनी कई रचनाओं खासकर ‘क्या करें?’, ‘एक कदम आगे, दो कदम पीछे’ और ‘कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और ढाँचा’ में एक नई तरह की मजदूर वर्ग की पार्टी के सिद्धांत की नींव रखी। लेनिन ने इस बात पर जोर दिया कि यह पार्टी, कैडर आधारित पार्टी होनी चाहिए, कोई भी हड़ताल मजदूर, या कोई भी बुद्धिजीवी पार्टी का सदस्य नहीं बन सकता। सिर्फ वे ही पार्टी सदस्य हो सकते हैं, जो इसके कैडर, यानी इसके किसी ना किसी संगठन में शामिल होकर, अनुशासन में रहकर, काम करने को तैयार हों। लेनिन ने पेशेवर क्रांतिकारी का संकल्प विकसित किया। लेनिन ने कहा कि मजदूर वर्ग की राजनीतिक पार्टी/कम्युनिस्ट पार्टी की रीढ़ पेशेवर क्रांतिकारी, जो क्रांतिकारी गतिविधि को अपना पेशा बना लें, होने चाहिए। इस पार्टी का ढाँचा लाजिमी तौर पर गुप्त होना चाहिए। पार्टी कब किस हद तक गुप्त होगी, यह हालात पर निर्भर करता है। कई हालतों में पार्टी अधिक खुली और कम से कम गुप्त और कई हालतों में इसके उलटा व्यवहार करेगी। पार्टी ने खुले से गुप्त और गुप्त से खुले की ओर बढ़ना होता है। सिर्फ पेशेवर क्रांतिकारियों पर आधारित पार्टी ही ऐसी हो सकती है। सिर्फ पेशेवर क्रांतिकारियों पर आधारित पार्टी ही पूँजीवादी सत्ता के दमन का मुकाबला कर सकती है। कॉमरेड माओ ने कहा था कि क्रांति के तीन चमत्कारी हथियार हैं दृ कम्युनिस्ट पार्टी, लाल फौज और संयुक्त मोर्चा। इन तीनों चमत्कारी हथियारों में सबसे ऊपर कम्युनिस्ट पार्टी का स्थान है। कम्युनिस्ट पार्टी मजदूर वर्ग का सबसे महत्वपूर्ण हथियार है, जिसकी अगुवाई में वह मौजूदा पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकेगी। कम्युनिस्ट पार्टी के बिना मजदूर वर्ग निहत्था है।

मजदूर वर्ग को आगे बढ़ने के लिए आज लेनिन के पार्टी सिद्धांत पर पहरा देने, इसके मार्गदर्शन में एक देश स्तरीय कम्युनिस्ट पार्टी के निर्माण के कार्यभार में जुट जाना बेहद जरूरी है। आज लेनिन के पार्टी सिद्धांत पर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं। आज ज्यादातर कम्युनिस्ट कहनी में इस पर अमल करने के दावे करते हैं, लेकिन असल में ये पार्टी निर्माण के लेनिनवादी सिद्धांतों को छोड़ रहे हैं। खासकर मालिक वर्गों में “क्रांतिकारी व्यवहार” में पूरी तरह डूबे क्रांतिकारी, ज्यादातर कैडर भर्ती इन वर्गों से ही कर रहे हैं। यहाँ तक कि इनके अग्रणी हिस्सों में भी मालिक वर्गों की बहुतायत है, ना कि पेशेवर क्रांतिकारियों (जिनका पेशा ही क्रांति हो) की। कुछ संगठन पार्टी में जनवाद और केंद्रवाद में एक बेबुनियाद दीवार खड़ी कर रहे हैं, मजदूर वर्ग की आजाद (पार्टी से) पहलकदमी पर जोर देते हुए, सारतत्व में पार्टी रहित “क्रांति” के सिद्धांत भी दे रहे हैं। मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति से इन भटकावों का खंडन करना और लेनिन के पार्टी सिद्धांतों पर पहरा देना आज के पीछे धकेले जाने के दौर में बहुत जरूरी हो जाता है।

लेनिन द्वारा विकसित साम्राज्यवाद का सिद्धांत, कॉमरेड लेनिन द्वारा मार्क्सवाद के विचारधारात्मक शास्त्रागार में की गई एक महत्वपूर्ण वृद्धि है। 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी के शुरू में आजाद मुकाबले का पूँजीवाद, साम्राज्यवाद में विकसित होने लगा। अंग्रेज पूँजीवादी अर्थशास्त्री हॉब्सन और मार्क्सवादियों में कार्ल काउत्सकी, हिलफर्डिंग, रोजा लक्जमबर्ग, बुखारिन आदि की इस बारे में रचनाएँ सामने आईं। लेकिन साम्राज्यवाद के बारे में यह सभी विश्लेषण आंशिक, अधूरे, सतही और गलत थे। यह कॉमरेड लेनिन ही थे, जिन्होंने साम्राज्यवाद का वैज्ञानिक विश्लेषण किया और पूँजीवाद की नई, सर्वोच्च अवस्था के लिए मजदूर वर्ग की रणनीति और रणकौशल विकसित किए। लेनिन के साम्राज्यवाद के सिद्धांत की रौशनी में आज की दुनिया को समझा जा सकता है और इसे बदला जा सकता है।

आज लेनिन के साम्राज्यवाद के सिद्धांत पर दो तरफ से हमले हो रहे हैं। एक ‘मुक्त चिंतन’ बुद्धिजीवी हैं, जो दावा करते हैं कि अब दुनिया इतनी बदल गई है कि इस दुनिया में लेनिन का साम्राज्यवाद का सिद्धांत अप्रासंगिक हो गया है। इन्होंने नेगरी, हर्ट, प्रभात पटनायक, एजाज अहमद, लियो पैनिच जैसे बुद्धिजीवी शामिल हैं। यहाँ हम इनके सभी तर्कों-दावों के विस्तार में नहीं जा सकते। लेकिन इनके एक दावे के बारे में बात करेंगे। इनका दावा है कि पूँजी का इस कदर अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया है कि अब अंतर-साम्राज्यवादी कलह खत्म हो गई है। लेकिन पिछले कुछ सालों में संसार में तीखी हुई कलह ने इनके दावों का जुलूस निकाल दिया है। साम्राज्यवादी विश्व लेनिन के निष्कर्ष की ही पुष्टि करता है कि साम्राज्यवाद के दौर में साम्राज्यवादी कलह और युद्ध अटल है।

लेनिन के सिद्धांत पर हमला करने वाला दूसरा रुझान कठमुल्ला रुझान है। यह रुझान खासकर भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में पाया जाता है। एक तो इस रुझान के पक्षधर, दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में और साम्राज्यवाद की कार्यप्रणाली में आए बदलावों से पूरी तरह से इनकार करते हैं। दूसरा ये लेनिन के साम्राज्यवाद के सिद्धांत की मनमुआफिक व्याख्या करते हैं। इनका दावा है कि दुनिया आज भी उत्पीड़क और उत्पीड़ित राष्ट्रों में बँटी हुई है। साम्राज्यवाद तीसरी दुनिया के देशों में सामंतवाद से गँठजोड़ करके, यहाँ पूँजीवादी विकास को रोकता है (जबकि इन देशों में सामंतवाद है ही नहीं, जिससे कि साम्राज्यवाद गँठजोड़ कर सके। ये देश पहले ही पूँजीवादी विकास के मामले में काफी आगे बढ़ चुके हैं)। इसलिए यहाँ नई जनवादी क्रांति होगी। एक तो यह पूरा विश्लेषण ही काल्पनिक है, ऊपर से सितम यह है कि ये सभी बातें लेनिन के माथे मढ़ दी जाती हैं, जबकि लेनिन का साम्राज्यवाद का सिद्धांत इन कठमुल्ले सूत्रों से ठीक उलटा है।

लेनिन के कुल अवदानों की चर्चा एक काफी बड़ी पुस्तक का विषय है। हमने यहाँ खुद को सिर्फ उपरोक्त तीन अवदानों की संक्षिप्त व्याख्या तक ही सीमित रखा है।

इतिहास की प्रासंगिकता नए इतिहास के निर्माण में होती है। लेनिन का जीवन और शिक्षाएँ नए इतिहास के निर्माण का रास्ता दिखाती हैं। इन अर्थों में ही कॉमरेड लेनिन को याद करने की प्रासंगिकता है।

(वैसे तो यह आलेख मुक्ति संग्राम के आधिकारिक वेबपेज से लिया गया है लेकिन उन्होंने यह आलेख पंजाबी मार्क्सवादी पत्रिका ‘प्रतिबद्ध’ के बुलेटिन संख्या 38 से प्राप्त किया है)

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