वामपंथ/ फ़िलिस्तीन के हक़ में मज़दूरों ने जो किया उसकी सराहना होनी चाहिए

वामपंथ/ फ़िलिस्तीन के हक़ में मज़दूरों ने जो किया उसकी सराहना होनी चाहिए

‘‘हम पिरेयस बंदरगाह को जंग का क्षेत्र नहीं बनने देंगे”, “हमारे हाथों को लोगों के ख़ून के साथ मत रँगो”, ये बोल यूनान की पिरेयस बंदरगाह के मज़दूरों के हैं, जिन्होंने बंदरगाह के ज़रिए इज़राइल को भेजे जा रहे फ़ौजी साज़ो-सामान को बंदरगाह से आगे नहीं जाने दिया। मज़दूरों ने कहा कि हमारे देश को इज़राइल द्वारा थोपी गई इस अनैतिक जंग को बंद करने की कोशिश करनी चाहिए न कि फ़िलिस्तीनी लोगों के क़त्लेआम का भागीदार बनना चाहिए। इस तरह मज़दूरों ने फ़िलिस्तीन के संघर्षशील लोगों के साथ अपनी एकता का व्यापक संदेश दिया। यह फ़िलिस्तीन के हक़ में दुनिया के सबसे बड़े हिस्से में उठी आवाज़ की एक और मिसाल है।

पिरेयस बंदरगाह यूनान के एथन्ज़ इलाक़े से साथ लगती है और यूनान की सबसे बड़ी बदरगाह है। 17 अक्टूबर को इस बंदरगाह पर फ़ौजी साज़ो-सामान (हथियार, गोला-बारूद) के साथ भरा ट्रक पहुँचा। यह सारा सामान इज़राइल की जिम नाम की कंपनी द्वारा मँगाया गया था। जैसे ही बंदरगाह के कर्मचारियों को इस ट्रक की जानकारी मिली तो यहाँ के कर्मचारियों के संगठन ‘डॉक वर्कर्ज़ यूनियन’ द्वारा यह ऐलान किया कि हम इन हथियारों को आगे नहीं जाने देंगे। इज़राइल में फ़िलिस्तीनी लोगों के क़त्लेआम का हिस्सा हम नहीं बनेंगे। इस ऐलान का समर्थन मेटल वर्कर यूनियन और जहाज़ निर्माण यूनियन ने भी की।

मज़दूरों द्वारा ऐसी कार्रवाई की यह कोई पहली मिसाल नहीं। इससे पहले भी जून 2024 में पिरेयस बंदरगाह के मज़दूरों ने अलटेअर जहाज़ भेजे जाने वाले हथियारों को ढोने से साफ़ मना कर दिया था।

न्याय के लिए एकता की ऐसी मिसाल भारत में भी सामने आई, जब जल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन ऑफ़ इंडिया, जिसके 3500 मज़दूर 11 बंदरगाहों पर काम करते हैं, ने ऐलान किया कि वे इज़राइल को भेजे जाने वाले किसी भी तरह के फ़ौजी साज़ो-सामान को नहीं ढोएँगे। इन मज़दूरों ने अपनी नौकरियों की परवाह न करते हुए फ़िलिस्तीनी लोगों के हक़ में आवाज़ बुलंद करके ज़िंदा होने का सुबूत दिया है। मज़दूरों का कहना था कि अगर हम इन हथियारों को ढोने का काम जारी रखते हैं, तो हम भी फ़िलिस्तीनियों के क़त्लेआम के भागीदार होंगे जो हम नहीं बनना चाहते। उन्होंने माँग उठाई कि इज़राइल द्वारा थोपी गई इस अनैतिक जंग को तुरंत बंद किया जाए। यह घटना यह बात भी साफ़ करती है कि अगर इस समय दुनिया की पश्चिमी साम्राज्यवादी ताक़तें इज़राइल की पीठ पर खड़ी हैं, तो आम लोगों की ताक़त फ़िलिस्तीनी क़ौम के संघर्ष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। इतिहास इस बात का गवाह है कि इस दुनिया में जनता की ताक़त से बड़ी कोई और ताक़त नहीं।

पिछले 75 सालों से इज़राइल अपने आका साम्राज्यवादी अमेरिका की शह पर फ़िलिस्तीन के काफ़ी बड़े हिस्से पर क़ब्ज़ा कर चुका है। अब तक लाखों फ़िलिस्तीनी लोगों का उजाड़ा किया जा चुका है और लाखों का ही क़त्लेआम किया गया है, जिसमें बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे हैं। अक्टूबर 2023 से फ़िलिस्तीन की धरती पर बमबारी का जो कहर बरस रहा है, उससे दुनिया का हर शख़्स वाक़िफ़ है। यहाँ सबसे महत्तवपूर्ण बात यह है कि पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा धन, फ़ौजी, तकनीकी यानी हर तरह की मदद के साथ इज़राइल 75 सालों से फ़िलिस्तीन को जड़ से ख़त्म करने के लिए दमन कर रहा है, लेकिन आज तक इज़राइल का दमन फ़िलिस्तीनी क़ौम के संघर्ष और उनकी आज़ादी की आकांक्षा को ख़त्म नहीं कर पाया, क्योंकि फ़िलिस्तीनी जनता अपनी आज़ादी के लिए लगातार संघर्ष की राह पर हैं। फ़िलिस्तीन का बच्चा-बच्चा इस लड़ाई में शामिल है। दुनिया-भर के इंसाफ़पसंद लोग फ़िलिस्तीन के साथ हैं। अक्टूबर 2023 से लेकर अक्टूबर 2024 तक दुनिया-भर में 12,400 प्रदर्शन फ़िलिस्तीन के हक़ में हुए हैं। कई देशों में बड़ी यूनिवर्सिटियों के विद्यार्थियों ने भी फ़िलिस्तीनियों के हक़ में प्रदर्शन किए हैं। मज़दूरों और अन्य मेहनतकश लोगों ने फ़िलिस्तीनी जनता के हक़ में आवाज़ बुलंद की है।

ये प्रदर्शन बेशक सीधे-सीधे फ़िलिस्तीन में लड़ रहे लोगों की मदद नहीं कर सकते, लेकिन लड़ रहे लोगों के जज़्बे को और दृढ़ ज़रूर बनाते हैं और फ़िलिस्तीनी जनता को डटे रहने का हौसला देते हैं।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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