भारत
बीते 31 अक्टूबर को बंगलादेश के ढाका में कपड़ा मजदूरों ने वेतन बढ़ाने की माँग को लेकर हड़ताल शुरू कर दी और सड़कों पर प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शन हिंसक हो गया और पुलिस ने मजदूरों पर आँसू गैस छोड़े और लाठीचार्ज किया। इसमें दो मजदूरों की मौत हो गयी। साथ ही मजदूरों के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गये हैं और कई मजदूरों को गिरफ्तार किया गया है। तात्कालिक तौर पर अभी सरकार की ओर से आश्वासन मिलने पर हड़ताल को वापस ले लिया गया है। मजदूरों का कहना है कि अगर सरकार न्यूनतम वेतन नहीं बढ़ाती तो आगे इससे बड़े प्रदर्शन होंगे।
बंगलादेश की एक यूनियन के अनुसार कपड़ा मजदूरों को मासिक न्यूनतम वेतन के रूप में 8,300 टका यानी 6,250 रुपये मिलते हैं। मजदूरों की माँग है कि मासिक न्यूनतम वेतन 17,334 रुपये की जाये। वहीं बंगलादेश के मालिक इसे 25 प्रतिशत यानी 7500 रुपए पर अड़े हुए थे। इसके बाद ही हड़ताल ने व्यापक रूप लिया। फिर यह हड़ताल ढाका के गाजीपुर से मीरपुर के औद्योगिक इलाके तक फैल गयी। बताया जा रहा है कि हड़ताल में करीब 15,000 मजदूर शामिल रहे। ‘सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग’ की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक कंबोडिया, चीन, भारत, इण्डोनेशिया, विएतनाम जैसे कपड़े बनाने वाले दूसरे देशों के मुकाबले बंगलादेश के कपड़ा मजदूरों को सबसे कम न्यूनतम वेतन मिलता है। ‘बंगलादेश इंस्टिट्यूट फॉर लेबर स्टडीज’ (बीआइएलएस) के विस्तृत अध्ययनों ने दिखाया है कि मजदूरों को गरीबी रेखा से ऊपर रहने के लिए कम से कम 23,000 टका चाहिए। अभी बंगलादेश के हालात यह हैं कि देश में महँगाई दर में एक बार फिर उछाल आया और उसे काबू में करने के सरकार के सभी वायदे धरे के धरे रह गये और महँगाई दर 9.93 प्रतिशत पर पहुँच गयी।
‘बंगलादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एण्ड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन’ (बीजीएमईए) के अनुसार, देश में लगभग 3,500 कपड़ा कारखाने हैं और वह चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा उत्पादक है। देश में इस उद्योग से लगभग 40 लाख मजदूर जुड़े हैं, जिनमें अधिकतर महिलाएँ हैं। इसके बावजूद यहाँ के कारखानों में स्थितियाँ नर्क से भी बदतर हैं। यहाँ श्रम कानूनों से लेकर सुरक्षा के बुनियादी इन्तजाम तक कारखानों में मौजूद नहीं हैं। इसी कारण आये-दिन कारख़ानों में आग लगने की घटनाएँ भी सामने आती हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार कारखानों में आग लगने की 50 से ज्यादा बड़ी घटनाएँ हुई हैं, जिनमें हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं। इन्हें दुर्घटना या हादसा कहना सच्चाई के साथ अन्याय होगा। दुनिया की सारी बड़ी गारमेण्ट कम्पनियों का अधिकतम माल यहाँ तैयार होता है, जिसके लिए मजदूर 18-18 घण्टे तक खटते हैं। इन कारखानों में साधारण दस्तानों और जूते तक नहीं दिये जाते और केमिकल वाले काम भी मजदूर नंगे हाथों से ही करते हैं। फैक्टरियों में हवा की निकासी तक के लिए कोई उपकरण नहीं लगाये जाते, जिस वजह से हमेशा धूल-मिट्टी और उत्पादों की तेज गन्ध के बीच मजदूर काम करते हैं। जवानी में ही मजदूरों को बूढ़ा बना दिया जाता है और दस-बीस साल काम करने के बाद ज्यादातर मजदूर ऐसे मिलेंगे जिन्हें फेफड़ों से लेकर चमड़े की कोई न कोई बीमारी होती है। आज बंगलादेश के जिस तेज विकास की चर्चा होती है, वह इन्हीं मजदूरों के बर्बर और नंगे शोषण पर टिका हुआ है। बंगलादेशी सरकार और उनकी प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने भी इस हड़ताल पर सीधा दमन का रुख अपनाया है। आख़िर उसे भी अपने पूँजीपति आकाओं की सेवा करनी है।
बंगलादेश में जारी इस हड़ताल का हम भारत के मजदूर भी समर्थन करते हैं। साथ ही बंगलादेश के मजदूरों की यह हड़ताल इस बात को और पुख़्ता करती है कि आज के दौर में सिर्फ अलग-अलग कम्पनी में अलग से हड़ताल करके जीतना बहुत ही मुश्किल है। अगर आज मजदूर आन्दोलन को आगे बढ़ाना है इलाक़े व सेक्टर के आधार पर सभी मजदूरों को अपने यूनियन व संगठन बनाने होंगे। जैसे कि बंगलादेश में कपड़ा उद्योग से जुड़े सभी मजदूरों ने हड़ताल की। इसी आधार पर ठेका, कैजुअल, परमानेण्ट मजदूरों को साथ आना होगा और अपने सेक्टर और इलाक़े का चक्का जाम करना होगा। तभी हम मालिकों और सरकार को सबक सिखा पायेंगे। दूसरा सबक जो हमें सीखने की जरूरत है वह है बिना सही नेतृत्व के भी आज के समय में किसी लड़ाई को नहीं जीता जा सकता। भारत के मजदूर आन्दोलन में भी कई अराजकतावादी संघाधिपत्यवादी मौजूद हैं, जो मजदूरों की स्वतरूस्फूर्तता के दम पर ही सारी लड़ाई लड़ना चाहते हैं और नेतृत्व या संगठन की जरूरत को नकारते हैं। सही नेतृत्व न होने के कारण ही आज बंगलादेश के कपड़ा मजदूरों की हड़ताल किसी दिशा में बढ़ती नजर नहीं आ रही, भले ही आज वहाँ के मजदूर संघर्ष को तैयार हैं।
(यह आलेख मजदूर बिगुल के नवम्बर 2023 अंक से प्राप्त किया गया है। आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)