उदार इस्लाम, दावा-धर्मांतरण और मुस्लिम राजनीतिक पुनरुद्धार

उदार इस्लाम, दावा-धर्मांतरण और मुस्लिम राजनीतिक पुनरुद्धार


हसन जमालपुरी

दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश में कुछ मुस्लिम संगठनों के द्वारा धर्मांतरण के नए तरीकों के उद्भेदन के बाद से भारतीय बहुधर्मी समाज इस्लाम के उरारपंथी चेहरों को भी शंका की नजरों से देखने लगा है। इस घटना ने बहुधर्मी समाज को इस्लाम के बारे में नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। भारत में अब इस्लाम के प्रचार और परिचय पर भी लोग शंका जाहिर करने लगे हैं। मसलन, इस्लाम को समझने या समझाने का एक पुराना तरीका दावा है। दावा को यदि दावत समझ कर समझे तो ज्यादा आसान होगा। मुसलमान दावत देकर गैर-मुसलमानों को अपने घर बुलाते हैं और फिर उसे अपने धर्म के बारे में बताते हैं। कई स्थानों पर अलग से दावा घर भी होता है। यहां इस्लाम के मानने वाले गैर-मुसलमानों को आमंत्रित करते हैं और वहां अपने व्यवहार एवं अन्य गतिविधियों के द्वारा उन्हें इस्लाम से परिचय कराते हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन दावा के माध्यम से बड़े पैमाने पर धर्मांतरण या फिर मुसलमानों को शरिया के सख्त नियमों की ओर अग्रसर करना बहुधर्मी या बहुपांथिक समाज में अपराध ही माना जाएगा।

इधर के दिनों में देश में कई मुस्लिम संगठनों के द्वारा संचालित संस्थाओं के उदार आवरण में धर्मांतरण की बातें उभरकर सामने आयी है। इस उद्भेदन ने पश्चिमी सोच को पुख्ता किया है और भारतीय बहुधर्मी समाज को भी इस्लाम पर पश्चिम की सोच को मानने के लिए विवस कर दिया है।

नीना वीडल ने अपनी पुस्तक ‘‘दावा एंड द इस्लामिक रिवाइवल इन वेस्ट’’ में कहा है, ‘‘यदि इस्लामवाद विचारधारा है, तो दावा उन सभी तरीकों को अपनाता है जिसकी मदद से इसे फैलाया जाता है।’’ दावा शब्द इस्लाम को मानने वाले लोगों के द्वारा की जाने वाली उन गतिविधियों से संबंधित है जिसके द्वारा इससे जुड़ने वालों का दिल जीता जाता है और उन्हें उस अभियान के साथ जोड़ दिया जाता है लेकिन इसकी आर में शरिया के कानूनों को लागू करने की बात उभरकर सामने आयी है। दावा इस्लामिक धर्मांतरण का पर्यायवाची नहीं है लेकिन कुछ कट्टरपंथी इस्लामिक जमात के द्वारा इसे मानव कल्याण की गतिविधियों का आवरण देकर इसके माध्यम से धर्मांतरण को हवा दिया जा रहा है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार, न केवल भारतीय नागरिक बल्कि सभी मनुष्य अपनी अंतरात्मा की आवास सुनने के लिए स्वतंत्र है तथा उन्हें अपने धर्म को मानने, दूसरों को समझाने और उसका प्रसार करने का अधिकार है। बहरहाल, अपने धार्मिक-मत को फैलाने के मौलिक अधिकार पर चलने की राह हमेशा ही मुश्किल भरी रही है। हमारे वैधानिक इतिहास एवं न्यायिक फैसले हमेशा से ही इस कठिन राह को चुनते रहे हैं, जिसमें उन्हें किसी को भी अपने धर्म को फैलाने व किसी दबाव, धोखे या लालच की सहायता से धर्मांतरण करने के बीच संतुलन बिगाड़ने की कोशिश की है। इस विषय पर तबतक निष्पक्ष फैसला नहीं किया जा सकता जबतक अपने धर्म का प्रसार करने के अधिकार और दावा से संबंधित गतिविधियों के बीच अंतर को स्पष्ट न किया जाए।

दावा की गतिविधियों को अक्सर धर्मांतरण करने की क्रिया समझने की गलती की जाती है जबकि इसका उद्देश्य गैर-मुसलमानों को ‘‘राजीतिक-इस्लाम’’ में परिवर्तित करना तथा मुसलमानों में चरमपंथी विचारों को पैदा करना है। अयान हिरसी अली ने अपनी पुस्तक, ‘‘द चैलेंजेज ऑफ दावा’’ में विशेष तौर पर कहा गया है कि दावा का अंतिम मकसद एक स्वतंत्र समाज के राजनीतिक-संस्थानों को नष्ट करना और उसकी जगह सख्त शरीया कानूनों को लागू करना है। इस्लामवादी अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए हिंसक और अहिंसक दोनों तरीकों का उपयोग करते हैं। कई बहुधर्मी चिंतकों का मानना है कि दावा से जुड़े नकारात्मक अर्थों को देखते हुए, इसे भारत जैसे बहुधार्मी देशों में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, दावा एक स्पष्ट रूप से धार्मिक मिशनरी गतिविधि है, जिसके कारण स्वतंत्र समाज में इसके प्रतिपादकों को कानून कही अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। चूकि ये प्रतिपादक हिंसा में लिप्त नहीं होते वे सरकारी एजेंसियों को अपनी उदारवादी मुसलमानों की छवि दिखा कर बराबर उन्हें गुमराह करते रहे हैं।

दावा के समर्थक अपने समर्थन में कई प्रकार के तर्क देते हैं और कहते हैं कि हमारी प्रकृति में पूरी तरह से अहिंसक है और इसलिए उनकी बातें मानने योग्य है। हालांकि, एक विश्लेषण में यह भी उभरकर सामने आया है कि इस्लाम के प्रचार अहिंसक और हिंसक केवल कहने के लिए होते हैं। इनकी बाहरी रणनीति केवल भिन्न होती है, वे एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संकल्पित होते हैं। उनका एक मात्र लक्ष्य सख्त शरिया कानून द्वारा शासित समाज की स्थापना करना होता है। वास्तव में, दावा के समर्थकों को चरमपंथियों द्वारा किए गए आतंकी हमलों से हमेशा फायदा हुआ है। इस तरह के हमले उन्हें सरकारों की नजर में उदारवादी बने रहने और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने में मददगार साबित होता है।

दावा यदि सचमुच इस्लाम का उदारपंथी प्रचार है तो इसका प्रभाव हरियाणा के नूह में देखा जाना चाहिए। दावा के खिलाफ तर्क देने वाले चिंतक नूह को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं। हरियाणा के मेवात क्षेत्र (ज्यादातर मेव मुसलमानों द्वारा बसा हुआ मुस्लिम बहुल क्षेत्र) में तब्लीगी जमात के द्वारा विगत कई वर्षों से दावा गतिविधियां चलाई जा रही है। यदि इससे उदारवाद का प्रसार होता तो देश के किसी अन्य भागों की तुलना में यहां इस्लाम का उदार चेहरा देखने को मिलता लेकिन ऐसा यहां बिल्कुल ही नहीं है। एक अध्ययन में पाया गया है कि दावा गतिविधियों के बाद से मेव मुसलमानों में हिंसक गतिविधियां बढ़ी है। हालांकि यह आतंकवादी स्वरूप ग्रहण नहीं किया है लेकिन जिस तरह से यहां के मुसलमान हिंसक हो रहे हैं आगे आने वाले दिनों में इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा कसता है।

हिज्ब-उत-तहरीर सहित कई कट्टरपंथी संगठनों ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि एक मुसलमान, चाहे वह हिंसक हो या अहिंसक, को शरीयत द्वारा शासित खिलाफत की बहाली का लक्ष्य रखना होगा। एक मुस्लिम आस्तिक को अपने घर में और उम्मा (मुसलमानों का वैश्विक समुदाय) के बीच शरिया लागू करना चाहिए। उसे गैर-मुसलमानों को दावा के माध्यम से इस्लाम में शामिल होने और शरीयत के हुक्म के अनुसार जीने के लिए आमंत्रित करने के लिए भी तैयार करना चाहिए। जब यह दावा स्वतंत्र रूप से देखा जाता है, तो दावा के असली रूप सामने आते हैं, जो न केवल हानिकारक है अपितु बहुधर्मी समाज में हिंसा फैलाने वाला है। प्रचार या फिर परिचय तक तो दावा की गतिविधि क्षम्य है लेकिन यह जैसे ही शरिया का स्वरूप ग्रहण करता है, इसके अर्थ बदल जाते हैं और बहुपांथिक समाज इसे किसी कीमत पर ग्रहण नहीं कर सकता है। यह गतिविधि हमें 9/11 और 26/11 की कड़वी यादों को ताजा कर देती है। हिज्बुल तहरीर, मुस्लिम ब्रदरहुड आदि संगठनों की बढ़ती उपस्थिति के साथ, भारत जैसा बहुपांथिक देश दावा गतिविधियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता। प्रशासन और कानूनी संस्थाओं को भी इस दिशा में सोचने की जरूरत है।

(लेखक के विचार स्वतंत्र हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक होने के नाते हम किसी के विचार प्रवाह को बाधित नहीं कर सकते हैं। आलेख में व्यक्त विचार से जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)

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