राज सक्सेना
वर्षों से अंतराष्ट्रीय बाजार में प्रवेश की आस लगाये भारत का सरकारी बांड्स बाजार अब अंतराष्ट्रीय बाजार में प्रवेश के कगार पर खड़ा है। अंतराष्ट्रीय बाजार में सरकारी बांडों की बिक्री, बाजार में जून 2024 में द्रुत गति से प्रवेश कर जायेगी और इसके साथ ही भारत के विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में प्रवेश की सबसे बड़ी बाधा अपने आप हट जायेगी। भारत का एक ट्रिलियन (एक हजार अरब) डॉलर का सरकारी बांड बाजार, अंतराष्ट्रीय बाजार में अपनी साख के अभाव में, जो लगभग त्याज्य की स्थिति में है, अलग होने की आलोचना से ऊपर उठने के लिए वर्षों से संघर्ष करता चला आ रहा है। जेपी मॉर्गन चेज एंड कंपनी के अपने उभरते बाजारों के सूचकांक में भारतीय सरकारी बांड्स को सूचीबद्ध कर शामिल करने वाला पहला वैश्विक सूचकांक प्रदाता बनने का निर्णय लेने के बाद, यह स्थिति अब बदलना निश्चित है। यह निर्णय जून 2024 में अरबों डॉलर के प्रवाह के लिए परिस्थितियाँ तैयार कर देगा, जबकि सरकारी बांड बाजार रिकॉर्ड सरकार की उधारी के दबाव में है। पिछले दिनों मिन दाई के नेतृत्व में मॉर्गन स्टेनली के रणनीतिकारों ने एक नोट में लिखा, ‘यह भारत में विदेशी प्रवाह को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेरक कारक हो सकता है और विदेशी निवेशकों के भारतीय निश्चित आय बाजार में अधिक सक्रिय होने की संभावना है’। जेपी मॉर्गन का भारत को इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स में शामिल किया जाना भारतीय अर्थव्यवस्था में भरोसे को दिखाता है।
भारत के लिए खुशखबरी है कि प्रख्यात जेपी मॉर्गन समूह ने केंद्र सरकार के बॉन्ड को अपने ग्लोबल बांड इंडेक्स में शामिल करने की घोषणा कर दी है। हालांकि इस घोषणा का असर जून 2024 के बाद से देखने को मिलेगा उल्लेखनीय है कि सरकारी अर्थव्यवस्था में वित्तीय घाटों को पूरा करने के लिए सरकारें स्वयं बाजार से ऋण लिया करती हैं और इन ऋणों की प्राप्ति का माध्यम सरकारी बांड होते हैं। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में वित्तीय घाटे की स्थिति तब पैदा होती है जब वित्तीय आय की तुलना में व्ययों की स्थिति अधिक रहने लगती है।
सरकारी बांड अल्पकालिक या दीर्घकालिक दोनों अवधि के हो सकते हैं। मगर सामान्यतरू सरकारों के द्वारा इन्हें दीर्घकालिक अवधि के लिए ही प्रस्तावित किया जाता है। अब मोदी सरकार ने इसकी अधिकतम समय अवधि 50 वर्ष निर्धारित की है। उल्लेखनीय है कि जेपी मॉर्गन समूह के इंडेक्स में मात्र सरकारी बॉन्ड की ही लिस्टिंग होती है। यह इंडेक्स विश्व की कुछ तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को ही प्राथमिकता देता है। इसलिए यह वैश्विक स्तर पर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण सुअवसर है। क्योंकि इसके माध्यम से भारत को आने वाले समय में विभिन्न विदेशी निवेशकों के जरिए पूंजी प्राप्त करने का मौका मिलेगा।
वर्तमान समय में सरकारी बांड के अंतर्गत विदेशी निवेशकों का हिस्सा दो फीसदी से भी काम है। जो कि वैश्विक स्तर पर भारत की वित्तीय साख को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत नहीं करता। आजादी के बाद से सरकारों के वित्तीय ऋण हेतु बांड के अंतर्गत निवेश की जिम्मेदारी भारतीय बैंकों तथा बीमा क्षेत्र ने ही उठा रखी है। इसके चलते बैंकों द्वारा भारतीय समाज में अन्य क्षेत्रों में, जिन में एमएसएमई (लघु कुटीर एवं मध्यम उपक्रम भारत सरकार) प्रमुख है, में वित्तीय सुविधा तुलनात्मक रूप से बहुत कम दी जाती है। छोटे या लघु उद्योग अपनी वित्तीय सुविधाओं तथा ऋणों को ज्यादा ब्याज दरों पर, अनौपचारिक गैरसरकारी क्षेत्रों से ही हासिल कर पाते हैं। भारतीय बैंकों पर यह प्रतिबद्धता केंद्रीय बैंक की एसएलआर रेट के कारण रहती है। 80 के दौर में एसएलआर 40 प्रतिशत हुआ करती थी। जिसके फलस्वरुप भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत अधिक विस्तार नहीं कर पाई थी। बाद में विभिन्न वित्तीय समितियां ने एसएलआर को कम करने की मांग रखी, पर आज भी यह दर 19 फीसदी बनी हुई है। भारतीय बीमा क्षेत्र पर विभिन्न ‘ट्रिपल ए रेटेड सरकारी बॉन्ड’ में निवेश करने की प्रतिबद्धता के चलते, देश में जीवन बीमा के अलावा अन्य क्षेत्रों में बीमा कंपनियों का विस्तार बहुत ही कम है। क्योंकि कंपनियां ग्राहक केंद्रित नहीं है और उनकी लाभदायकता एक चुनौती बनी रहती है। अब चर्चा इस बात की है कि मोदी सरकार की इस उपलब्धि का, आने वाले समय में आखिर फायदा क्या होगा। निश्चित है कि इससे आने वाले समय में भारतीय बैंकों को कुछ राहत मिलेगी। केंद्रीय बैंक, भविष्य में एसएलआर को घटाएगा। क्योंकि जेपी मॉर्गन के इंडेक्स में सूचीबद्ध होने से विदेशी निवेशकों का सरकारी बॉन्ड में धनप्रवाह बढ़ेगा।
आगामी वर्षों में भारतीय बैंक अपनी वित्तीय तरलता के चलते समाज के अन्य क्षेत्रों को उनकी जरूरत के लिए आसानी से कर्ज उपलब्ध करवा सकेगा। दूसरा इस समय बांड्स पर ब्याज की दरें काफी ऊंची है। जिससे सरकार को अधिक लागत लगानी पड़ती है। जेपी मॉर्गन में लिस्टिंग होने के बाद जब विदेशी निवेशकों का धनप्रवाह बढ़ेगा तो यकीनन यह लागत कम होगी और सरकार अपने वित्तीय फंड्स का उपयोग आधारभूत विकास व महत्वपूर्ण सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर कर सकने में सक्षम हो सकेगी। निरूसंदेह जब विदेशी निवेशकों के जरिए सरकारी बॉन्ड की लागत में कमी होगी तो करो की दरों में भी घरेलू बाजार में बदलाव देखने को मिलने की पूरी पूरी सम्भावना हो सकेगी।
हालांकि सरकारी ब्रांड में निवेश हेतु वैश्विक स्तर पर सभी बड़े प्रतिष्ठानों की भारत के साथ दो मुख्य समस्याएं रही हैं। जिनका उल्लेख वे समय समय पर करते भी रहते हैं। जिनमें एक करो में छूट तथा दूसरी देश के बाहर विदेशी मुद्रा में भुगतान की समस्या प्रमुख है। जेपी मॉर्गन में सूचीबद्ध होने के बावजूद सरकारी बॉन्ड रुपए में ही निर्गमित हो सकेंगे और विदेशी निवेशक निश्चित रूप से अधिकतम ब्याज के प्रत्यर्पण की गारंटी में निवेश करने के लिए आकर्षित होंगे। क्योंकि उनके लिए अब सबसे बड़ी समस्या रुपए का डॉलर की तुलना में अनिश्चित विनिमय दर के कारण होने वाला घाटा या मुनाफा नहीं होगा। जब विदेशी निवेशकों का धनप्रवाह बढ़ेगा तो निश्चित ही रुपए की मांग बहुत बढ़ जाएगी। जिसके चलते डॉलर की तुलना में रुपया आंशिक रूप से मजबूत हो जायेगा।
स्मरणीय है कि दस वर्ष पहले जब भारत के सामने भुगतान संतुलन का संकट आया था, तब भारत को ‘फ्रेजाइल फाइव’ (कमजोर अर्थव्यवस्था वाले) देशों में से एक बताया गया था। केंद्र सरकार के अनवरत प्रयासों से वर्तमान दशक में आर्थिक सुधारों के चलते भारत का दबदबा लगातार बढ़ा है और अब यह वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अंगीभूत होने की दिशा में अग्रसर है। यह पहली बार होगा जब भारत सरकार का बांड ऐसे किसी ‘ग्लोबल इंडेक्स’ में जुड़ेगा। यह भारत की अर्थव्यवस्था की बढ़ती शक्ति को दर्शाता है। अब अरबों डॉलर का निवेश भारत आने की उम्मीद है। विदेशी निवेशक भारतीय मुद्रा में ही सरकारी प्रत्याभूतियों में निवेश करेंगे। इससे रुपये को वैश्विक समर्थन मिलेगा। शेयर बाजार पर भी इसका अच्छा असर पड़ने की संभावना बन सकती है।
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