गौतम चौधरी
हाल के दिनों में, ‘लव जिहाद’ शब्द बड़ी तेजी से सुर्खियां बटोरने लगा है। इस मामले को लेकर विभिन्न प्लेटफार्मों पर बहस और चर्चाएं हो रही है। चर्चा के केंद्र में एक बुनियादी सवाल, जबरन धर्मांतरण का जरूर होता है। अब सवाल यह उठता है कि इस्लाम में क्या जबरन धर्मंतरण को प्रश्रय दिया गया है? इसका अन्वेषण बेहद जरूरी है। दरअसल, हम जिस समाज में रह रहे हैं, वह समाज बहुपांथिक और बहुसांस्कृतिक है। बहुलतावादी संस्कृति हमारी सभ्यता की बुनियाद है। हमारे देश में दुनिया भर के लोग आए और वे अपनी संस्कृति, पंथ, आस्था एवं चिंतन साथ लाए लेकिन भारत अपने तरह का देश है। आज भी यहां तमाम संस्कृतियां, अपने शुद्ध रूप में दिखाई देती है। यहां यह भी बता दें कि जिस मूल क्षेत्र की संस्कृति भारत में आयी, उस क्षेत्र में वह संस्कृति और सभ्यता समाप्त हो चुकी है लेकिन भारत में जिंदा है। ऐसे कई उदाहरण हैं। उसकी चर्चा फिर कभी करूंगा, फिलहाल तो इस्लाम में जबरन धर्मंतरण का चिंतन है या नहीं, उसी पर अपना विमर्श केन्द्रित रखूंगा। तो विभिन्न इस्लामिक चिंतक और इस्लाम के मानक ग्रंथों के आधार पर आज हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि जबरन धार्मांतरण के मामले में इस्लाम क्या कहता है।
इस्लाम के मूल में आस्था के मामले में स्वतंत्र इच्छा और व्यक्तिगत पसंद का सिद्धांत निहित है। इस्लाम के पवित्र ग्रंथों की बात करें तो उसमें स्पष्ट कहा गया है, ‘धर्म (इस्लाम) में कोई जबरदस्ती न हो, क्योंकि सत्य स्पष्ट रूप से झूठ से अलग होता है।’ यह वाक्यांश मूलः अंतरात्मा की स्वतंत्रता के प्रति इस्लाम की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है और विश्वास के मामलों में किसी भी प्रकार की जोर जबरदस्ती को खारिज करता है। इस्लाम विश्वास के मामलों में स्वतंत्र इच्छा और व्यक्तिगत पसंद का महत्व देता है। इस्लाम में किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने की धारणा इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत है। इस मामले में बरेलवी फिरके के इस्लमिक विद्वान, मुफ्ति तुफैल खान कादरी का मानना है कि इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, अल्लाह ने अपने ज्ञान में, सभी व्यक्ति को खुद का रास्ता चुनने की आजादी दी है। पवित्र ग्रंथों में भी कई बार इसे दुहराया गया है। जब ऐसी बात हमें बतायी गयी है, तो जबरन धर्मांतरण की बात कहां से आयी?
इस्लाम द्वारा जबरन धर्मांतरण के समर्थन में आलोचक अक्सर संदर्भ से परे कुरान की आयतों और कुछ हदीसों का हवाला देते हैं। हालाँकि, इन स्रोतों की गहन जांच से एक अलग कहानी सामने आती है। उदाहरण के लिए, कुरान 2/190-193 और कुरान 8/38-39 जैसी आयतों को अक्सर गैर-विश्वासियों के खिलाफ हिंसा के लिए सही ठहराने के लिए पेश कर दिया जाता है। वास्तव में, ये उद्धरण विशिष्ट ऐतिहासिक संदर्भों में प्रकट हुए थे। यह मुख्य रूप से आक्रामकता और उत्पीड़न के खिलाफ आत्मरक्षा को लेकर कहा गया है, न कि किसी के खिलाफ बिना मलतब हिंसा के लिए। इसके अलावा, इस्लामी इतिहास, धार्मिक सहिष्णुता और सह-अस्तित्व के सिद्धांत का गवाह है। सदियों से, मुस्लिम-बहुल समाजों ने बहुलवाद और पारस्परिक सम्मान के लोकाचार को बढ़ावा देते हुए विविध धार्मिक समुदायों को अपनाया है। इस्लाम की सहिष्णुता की समृद्ध विरासत सभी व्यक्तियों के धार्मिक अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान करने की अनिवार्यता को रेखांकित करती है। इस मामले में युनाइटेड अरब अमिरात आधुनिक इस्लाम का सटीक उदाहरण है। ऐसे भी हमें अच्छा देखना चाहिए। हम पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, ईरान, मिस्र को ही क्यों देखते हैं। हमें मलेशिया, इंटोनेशिया, युनाइटेड अरब अमिरात को भी देखना चाहिए। हमें सउदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में बदल रहे सउदी अरब और प्रधानमंत्री शेख हसीना बाजेद के नेतृत्व में बांग्लादेश के बदलाव को देखना चाहिए।
सच तो यह है कि इस्लाम बौद्धिक जांच और सत्य की खोज को प्रोत्साहित करता है। इस्लाम में विश्वास थोपा नहीं जाता, बल्कि आस्था को समझ और दृढ़ विश्वास के माध्यम से खोजा जाता है। भारत के मुसलमान, भारतीय मूल्यों का सम्मान करना जानते हैं। उन्हें इस बात की समझ है कि यह देश विविधताओं में एकता और सभी धर्मों के लिए पारस्परिक सम्मान के सिद्धांतों को बनाए रखने वाला राष्ट्र है। हां, कुछ लोग जरूर राह भटक गए हैं। वह तो अन्य आस्था वालों में भी देखने को मिलता है। जहां तक प्रेम के साथ जिहाद को जोड़ने की बात है तो यह विशुद्ध राजनीतिक मामला है। इस्लाम इसके लिए कभी इजाजत नहीं दे सकता। यदि देता है तो वह इस्लाम नहीं हो सकता। प्यार के नाम पर दूसरे धर्मों से गलत तरीके से धर्मांतरण में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस्लाम स्पष्ट रूप से जबरन धर्मांतरण की मनाही करता है। इस संदर्भ में, थोड़ा मुसलमानों को भी सतर्क रहना होगा। यह जरूरी है कि मुसलमान अन्य समुदायों की लड़कियों को जबरदस्ती इस्लाम में शामिल करने से बचें। इस्लाम भारतीय समाज के ढांचे के भीतर विविध समुदायों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत करता है। भारत में मुसलमान धार्मिक विविधता से देश में आने वाली समृद्धि को पहचानते हुए समावेशिता और सहिष्णुता के लोकाचार को अपनाएं और देश के विकास में अपनी भूमिका सूनिश्चित करें। हालांकि बड़ी तेजी से मुसलमानों की सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव जरूरी है। थोड़े सिरफिरों के लिए पूरे समाज को बदनाम नहीं किया जा सकता है। इसका खयाल मुसलमानों को भी रखना होगा।
निष्कर्षतः, इस्लाम स्पष्ट रूप से आस्था के मामलों में जबरन धर्म परिवर्तन और जबरदस्ती की धारणा को खारिज करता है। सच्चा विश्वास दृढ़ता और आस्था के प्रति उच्चकोटि के सम्मान से पैदा होता है। किसी का व्यवहार व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। जबरदस्ती या चालाकी बहुत दिनों तक नहीं चलती है। पूरी दुनिया में इस्लाम प्रेम और भाईचारे से फैला है। भारत में भी ऐसा ही हुआ है। जबरन इस्लाम में दीक्षित करने के उदाहरण जरूर हैं लेकिन भारत में जो इस्लाम आया है उसमें बड़ी भूमिका प्रेम और भाईचारे की है। सभी नागरिकों के धार्मिक विश्वासों की परवाह किए बिना उनके अधिकारों और स्वतंत्रता को बनाए रखना भारतीय संविधान का अनिवार्य दायित्व है। नागरिकों के रूप में, धार्मिक विविधता के प्रति सहिष्णुता, समझ और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देना हम सभी का जिम्मेबारी है।