जय सिंह रावत
हिन्द महासागर से चला मानसून हिमालय तक पहुँच गया है। भारत में मानसून का मौसम आमतौर पर जून से सितंबर तक होता है। इसे आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून मौसम के रूप में जाना जाता है। इस अवधि के दौरान, भारत में हिंद महासागर से नमी भरी हवाओं का एक महत्वपूर्ण प्रवाह छाया रहेगा। सुखी धरती की प्यास बुझेगी फसलें लहलहायेंगी और चरों ओर हरियाली रहेगी। लेकिन अगर कुदरत रूठेगी तो हमें केदारनाथ जैसी त्रासदी और कोशी की जैसी विनाशकारी बाढ़ के लिए भी तैयार होगा। अरबी शब्द मौसिम से मानसून निकला जिसका अर्थ है हवाओं का मिजाज। 16वीं सदी में मानसून शब्द का सबसे पहले प्रयोग समुद्र मार्ग से होने वाले व्यापार के संर्दभ में हुआ। उस दौरान भारतीय व्यापारी शीत ऋतु में इन हवाओं के सहारे व्यापार के लिए अरब व अफ्रीकी देश जाते थे और ग्रीष्म ऋतु में अपने देश वापस लौटते थे। शीत ऋतु में हवाएं उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हैं जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है। उधर, ग्रीष्म ऋतु में हवाए इसके विपरीत बहती हैं, जिसे दक्षिण पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहा जाता है। इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी। इसलिए इन्हें व्यापारिक हवाएं या ट्रेड विंड भी कहा जाता है।
ग्रीष्म ऋतु में जब हिन्द महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है तो मानसून बनता है। इस प्रक्रिया में समुद्र गरमाने लगता है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है। वहीं उस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंच चुका होता है। ऐसी स्थिति में हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय होती हैं। ये हवाएं आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती हैं। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। विषुवत रेखा पार करके हवाएं और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। इस दौरान देश के विभिन्न हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हवाएं समुद्र से जमीन की ओर बहनी शुरू हो जाती हैं। ये हवाएं समुद्र के जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर उठती हैं और वर्षा देती हैं। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद मानसूनी हवाएं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं। एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं और इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में मानसून छा जाता है।
पिछले 100 वर्षों के दौरान भारत में अनुभव किए गए सबसे खराब मानसूनों में से एक 1943 का मानसून था। कारण बंगाल क्षेत्र में व्यापक सूखा और फसल बर्बाद हो गई, जिससे अकाल पड़ गया। जिससे भुखमरी और संबंधित बीमारियों के कारण अनुमानित 2 से 3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई। पिछले 100 वर्षों के दौरान भारत में सबसे विनाशकारी मानसून मौसम 1974 का मानसून माना जाता है। इसने देश के कई हिस्सों, विशेषकर बिहार राज्य में बड़े पैमाने पर बाढ़ और तबाही ला दी। 1974 के मानसून के मौसम के दौरान कोसी नदी ने अपने तटबंधों को तोड़ दिया, जिससे घरों, बुनियादी ढांचे और कृषि क्षेत्रों को व्यापक नुकसान हुआ। बाढ़ के पानी ने लाखों लोगों को प्रभावित किया और जान-माल का काफी नुकसान हुआ।
उत्तराखंड में सबसे विनाशकारी मानसून वर्ष 2013 का था। जिसके कारण टोंस से लेकर कालीध् शारदा तक जल प्रलय की जैसी स्थिति बन गयी थी । उसी मानसून का दुष्परिणाम केदारनाथ की अकल्पनीय आपदा थी। उस त्रासदी में 4 हजार से अधिक लोग मारे गए, कई घायल हुए, कई यात्रियों के मानसिक संतुलन बिगड़े और हजारों लोग बेघरबार हो गए। जून की 16 रारीख को आ धमका यह मानसून अप्रत्याशित था, क्योंकि उत्तराखंड में मानसून सामान्यतः 20 जून के बाद ही पहुँचता है और उससे पहले प्री मानसून बारिश शुरू हो जाती है। हिमालय पर स्नो लाइन ग्रीष्म ऋतु की गर्मी बढ़ने से साथ पीछे खिसकती है। लेकिन उस समय से मानसून के समय समय से पहले आने से वह बर्फ में ही बरस गया। जिस कारण ज्यादा बर्फ पिघलने से हिमानियों पर आधारित नदियां उफन गयीं। केदारनाथ में बादल चोराबाड़ी ग्लेशियर में जा कर फट गया। जिसका नतीजा केदारनाथ में विनाशकारी बाढ़ के रूप में सामने आया।
मानसून के पूर्वानुमान उन देशों और क्षेत्रों के लिए आवश्यक हैं जो कृषि, जल संसाधनों और समग्र आर्थिक योजना केलिए मानसूनी वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर हैं। मानसून की भविष्यवाणी करना इसके निर्माण और परिवर्तनशीलता मेंशामिल कई कारकों के कारण एक जटिल कार्य है। हालाँकि मानसून पूर्वानुमान में काफी प्रगति हुई है, लेकिन कुछअंतर्निहित चुनौतियाँ हैं जो इन पूर्वानुमानों की सटीकता को प्रभावित करती हैं। देश में गर्मी की शुरुआत होते हीकिसान मानसून पर टकटकी लगाकर बैठ जाते हैं। हमारे देश में 127 कृषि जलवायु उप संभाग हैं और 36संभाग हैं। हमारा देश विविध जलवायु वाला है। समुद्र, हिमालय और रेगिस्तान मानसून को प्रभावित करतेहैं। इसलिए मौसम विभाग के तमाम प्रयासों के बावजूद मौसम के मिजाज को सौ फीसदी भांपना अभी भीमुश्किल है। मानसून बड़े पैमाने पर जलवायु पैटर्न से प्रभावित होता है, जैसे अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ),हिंद महासागर डिपोल (आईओडी), और अन्य वायुमंडलीय और समुद्री घटनाएं। ये कारक परिवर्तनशीलता लाते हैं,जिससे मानसून की तीव्रता, शुरुआत और अवधि की सटीक भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।सटीकपूर्वानुमान वायुमंडलीय और समुद्री माप सहित उच्च गुणवत्ता वाले अवलोकन संबंधी डेटा पर निर्भर करता है। कुछ क्षेत्रों में, इन अवलोकनों की उपलब्धता और कवरेज सीमित हो सकती है, जिससे पूर्वानुमान प्रक्रिया में अनिश्चितताएं पैदा हो सकती हैं। इन चुनौतियों के बावजूद, मॉडलिंग तकनीकों, डेटा संकलन और मानसून की गतिशीलता की समझ में प्रगति ने हाल के वर्षों में मानसून पूर्वानुमानों की सटीकता में सुधार किया है। पूर्वानुमान एजेंसियां और मौसम विभाग पूर्वानुमान क्षमताओं को बढ़ाने के लिए नए अवलोकनों और वैज्ञानिक ज्ञान को शामिल करते हुए अपने मॉडलों औरतकनीकों को परिष्कृत करना जारी रखते हैं।
मानसून कृषि के लिए आवश्यक जल संसाधन प्रदान करता है, जलाशयों, नदियों और भूजल भंडार को फिर से भरता है।मानसून के दौरान पर्याप्त वर्षा फसलों के विकास को जीवन देती है, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है और कृषि आजीविका को सुनिश्चित करती है। मानसूनी बारिश झीलों, नदियों और भूमिगत जलभृतों जैसे जल निकायों कोरिचार्ज करने में मदद करती है। वे जलाशयों और बांधों को भरने में भी योगदान देते हैं, जिससे शुष्क मौसम के दौरान पीने, सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन के लिए पानी की निरंतर आपूर्ति होती है। मानसून की बारिश जंगलों, आर्द्रभूमियों और पारिस्थितिक तंत्रों का पोषण करते हैं, जैव विविधता का जीवन का पोषण करती है। मानसून के मौसम के दौरान वातावरण में नमी तापमान पैटर्न को प्रभावित करती है, शीतलन प्रभाव को बढ़ावा देती है और प्रभावित क्षेत्रों में हीटवेव की तीव्रता को कम करती है।
लेकिन मानसून से जुड़ी भारी वर्षा बाढ़ और भूस्खलन का कारण बन सकती है। मानसून वर्षा से बाढ़ से घरों, बुनियादी ढांचे और कृषि क्षेत्रों को काफी नुकसान हो सकता है जिससे जान-माल का नुकसान हो सकता है। मानसून की बारिश के कारण अक्सर परिवहन और संचार नेटवर्क बाधित हो जाते हैं। सड़कें और पुल अगम्य हो सकते हैं, और उड़ानों, ट्रेनों और परिवहन के अन्य साधनों में देरी या रद्दीकरण का सामना करना पड़ सकता है, जिससे व्यापार, पर्यटन और दैनिक आवागमन प्रभावित हो सकता है। मानसून की बारिश के कारण बचा हुआ स्थिर पानी मच्छरों के प्रजनन और मलेरिया, डेंगू बुखार और हैजा जैसी जलजनित बीमारियों के फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाता है।अत्यधिक वर्षा या असामयिक वितरण से फसल को नुकसान हो सकता है । लंबे समय तक भारी बारिश, जलभराव या धूप की कमी फसल की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है जिससे किसानों की आय और खाद्य उत्पादनप्रभावित हो सकता है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इसके लिए जनलेख प्रबंधन जिम्मेबार नहीं है।)
(युवराज)