पूजा श्रीवास्तव
सरसों के तेल का हमारे देश में खाद्य तेल के रूप में सेवन बहुत ज्यादा किया जाता है। खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में सब्जी पकाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। दरअसल सरसों का तेल बेहद उच्च-कोटि का खाद्य-परिरक्षक है। यही कारण है कि सरसों के तेल में डाला गया अचार कई वर्षो तक खराब नहीं होता।
सरसों मुख्यतः दो प्रकार की होती है-पीली और लाल। औषधीय गुणों मंे पीली सरसों बेहतर मानी जाती है। चिकित्सा कार्यो में मुख्य रूप से सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इस तेल की तासीर गर्म होती है। यह तेल अग्निदीपक या भूख बढ़ाने वाला होता है।
सर्दियों मंे त्वचा रूखी एवं खुरदरी हो जाती है इसलिए ठंड के मौसम में त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए रोज स्नान के पूर्व सरसों के तेल से पूरे शरीर की मालिश अवश्य करनी चाहिए। सरसों का तेल लगाकर स्नान करने से ठंड कम लगती है और ठंड का असर कम होता है। सरसों की मालिश करने से त्वचा का रंग निखरता है। झाइयां यानी चेहरे पर पड़े काला धब्बे कम होते हैं।
हड्डियों में दर्द होने पर सरसों के तेल को थोड़ा गर्म करके शरीर की मालिश करें और दो घंटे बाद स्नान कर लें। ऐसा करने से दर्द में राहत मिलती है।
सरसों के तेल में लहसुन गर्म करके बच्चों के शरीर पर मालिश करने से उन्हें फायदा होता है। सरसों के तेल से पेट की मालिश करने से कब्ज दूर हो जाता है।
जो लोग प्रतिदिन अपने कानों में सिर्फ दो बूंद सरसों का तेल डालते हैं, उनकी सुनने की शक्ति ठीक बनी रहती है। इस प्रयोग से कान का मैल भी फूलकर ऊपर आ जाता है जिसे बगैर किसी खतरे के आसानी से निकालकर कान को साफ रखा जा सकता है। इस प्रयोग से श्वास रोग की शिकायत दूर होती है और कफ व खांसी में आराम मिलता है।
यदि पेट में कीड़े पड़ गए है तो तीन ग्राम सरसों का पाउडर दिन में दो बार गर्म पानी के साथ सेवन करें। तीन से पांच दिनों तक इस प्रयोग को करने से पेट के कीडे नष्ट हो जाते हैं।
सिर के आधे भाग में दर्द होने पर व्यक्ति बेहाल सा हो जाता है। ऐसे में नाक के उस ओर के छिद्र में दो-तीन बूंद सरसों का तेल डालकर जोर से सांस लेने पर सिर के उस भाग का दर्द ठीक हो जाता है। इस प्रयोग को लगातार चार-पांच दिनों तक करने से ही लाभ मिलेगा।
जले हुए अंग पर सरसों का तेल लगाने से छाले नहीं पड़ते। सोने से पहले नाभि पर सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते।