गौतम चौधरी
विगत दिनों मैं बेगूसराय के प्रवास पर था। बेगूसराय, खगड़िया, नौगछिया, सहरसा, सुपौल आदि जिलों में ऐसी-ऐसी लोकथाएं प्रचलित है कि सुनकर आनंद की अनुभूति तो होती ही है, साथ ही इस क्षेत्र के प्रभावशाली इतिहास, वैभवशाली अतीत और समृद्ध सांस्कृतिक परंपना का पता चलता है। प्रवास के क्रम में मैं खगड़िया गया था। कोशी क्षेत्र में कई ऐसी लोक कथिाएं प्रचलित है, जो रोचक और रोमांचकारी तो है ही इन कथाओं के से बिहार के लोक इतिहास के बारे में भी पता चलता है। ऐसी ही एक लोक कथा बहुरा गोड़िन की कथा है।
विगत दिनों उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र इलाहाबाद ने इस लोक कथा पर आधारित एक नाटक का भी मं
चन करवाया था। कथा बेहद रोचक है। तसल्ली से पढ़िएगा तो आनंद आएगा। साथ ही बहुत ऐसी जानकारियां भी प्राप्त होगी जो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी प्रचलित है। ‘बहुरा गोडिन’ बिहार की 450 वर्ष पुरानी लोककथा है। यह दो परिवार के घनिष्ठ मित्रता और पारिवारिक समझौते की कहानी है। लोक जीवन में अपनी बात को मनवाने के लिए और उसपर अमल न होने पर ईष्यावश जादू का प्रयोग इस कथा का मूल आधार है। कथानक कुछ इस तरह आगे की ओर बढ़ती है; –
‘‘बखरी गांव के विशम्भर वनकरी राम और राजभेरा गांव के दुखहरन साहनी दोनों व्यापारी थे। दोनों में घनिष्ट मित्रता थी। दोनों इस मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय करते हैं। दोनों ने अपने बच्चे की शादी एक-दूसरे के यहां तय कर ली। आपस में शादी तय होने के बाद शादी की तैयारी भी होने लगी। उन दिनों न तो कैटरिंग था और न ही टेंट वाले व्यवसायी। शादी की तैयारी में समय लगता था। सो यहां भी समय लगने लगा। दोनों के बच्चे के बड़े होते-होते दोनों मित्रों की मृत्यु हो चुकी होती है। विशम्भर का भाई भीममल अपने भतीजे दयाल की शादी का प्रस्ताव लेकर दुखहरन की विधवा बहुरा के पास जाते हैं। बहुरा प्रस्ताव स्वीकार करते हुए एक शर्त रखती है कि कमला नदी का पानी जो राजभोरा से होकर बहता है उसे बखरा में भी बहने दिया जाय। भीममल शर्त मान लेता है पर इस विषय पर कुछ नहीं करता है। परिणाम यह होता है कि जब भीममल अपने भतीजे दयाल की बारात लेकर राजभोरा पहुंचता है। तब बहुरा शादी रोक कर शर्त की बात याद दिलाती है। गांव वाले को समझाने के बाद बहुरा शादी के लिए तैयार हो जाती है। शादी होती है परंतु काले जादू में निपुण बहुरा, सभी बारातियों को जादू से पशु- पक्षी बना देती है। किसी तरह से दयाल और भीममल वहां से निकल पाते हैं। दयाल कामकाज और व्यापार के लिए बंगाल चला जाता है। वहां पर वह जादू सीखता है। वापस लौटकर दयाल अपनी ससुराल राजभोरा जाता है। जैसे ही वह ससुराल पहुंचता है बहुरा, उसे पुनः शर्त याद दिलाती है। दयाल फरियाद लेकर राजा के दरवार में जाता है। राज दोनों को सुलह करता है। दयाल सीखे हुए जादू से सभी बरातियों को वापस जीवित करता है और वापस अपने गांव दुल्हन और बारातियों के साथ आ जाता है।’’