परमानन्द परम
यह संसार विचित्रा है, इसकी रचना विचित्रा है तथा इसके रचनाकार भी विचित्रा हैं। इसी तरह इस संसार की परंपराएं भी अत्यंत विचित्रा, रोचक एवं अद्भुत हैं। अनेक परंपराओं का संबंध ’स्त्राी जाति‘ से जुड़ा होता है। लगता है, पुरूष प्रधान समाज ने अपनी तुष्टि के लिए ही इन विचित्रा परंपराओं को बनाया होगा। ये परंपराएं आज भी संसार के अनेक भागों में जीवन्त हैं। ऐसी ही कुछ रोचक परंपराओं की जानकारी प्रस्तुत हैं।
अफ्रीका के कोलिया समुदाय की बच्ची जब युवती हो जाती है और उसकी शादी तय कर दी जाती है, तो उस युवती का भावी (होने वाला) पति ’कोंडुक‘ पूजा का आयोजन करता है। इस पूजा में उस युवक की होने वाली पत्नी, उसका होने वाला ससुर तथा उसके भावी साले को सम्मिलित होना पड़ता है। पूजा के बाद वह युवक अपनी होने वाली पत्नी को उसी के पिता या भाई जिसे भी वह उचित समझता है, को सौंप देता है तथा यह जिम्मेवारी देता है कि उसे एक माह के अन्दर गर्भवती बना देना है।
अपनी पुत्राी या बहन के साथ युवती के भाई को उसी युवक के घर पर रहना होता है। दोनों को सारी सुविधाओं के साथ एक घर में कैद करके रखा जाता है। पिता या भाई के साथ वह युवती बड़े ही मनोयोग से केलिक्रीड़ा करती है। अगर वह इस अवधि के दौरान गर्भवती हो जाती है, तो उसकी शादी बड़े ही धूमधाम से उस युवक से कर दी जाती है। ससुराल में उस बहू का काफी सम्मान होता है। गर्भवती न होने वाली लड़की को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता।
बिहार प्रांत के पलामू, रोहतास, भोजपुर आदि जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों की कुछ जातियों में यह रिवाज है कि अगर कोई औरत बच्चे को जन्म देने के बाद गर्भावस्था में ही मर जाती है तो उस मृतका के दोनों पैरों को आपस में मिलाकर उसमें पांच लम्बी-लम्बी कीलें ठोंक दी जाती हैं। इसके बाद अंतिम संस्कार किया जाता है। इसके पीछे यह धारणा है कि ऐसा करने से वह चुड़ैल बनकर वापस उस घर में नहीं आ सकती। बेड़ियां लगी होने के कारण उसकी आत्मा परिवार को डराने नहीं आ सकती। शवयात्रा के दौरान घर से लेकर श्मशान तक के बीच लगभग दो किलो सरसों के दाने भी छींटे जाते हैं जिससे वह घर तक आने की कोशिश भी करे तो उन दानों को चुनने के बाद ही आ सके जो संभव नहीं है।
अमेरिका के टेक्सास शहर के निकट एक गांव है जिसका नाम है-जोमन। इस गांव में ’मनीड़ा‘ जाति के आदिवासी रहते हैं। इस जनजाति की एक देवी हैं-’पामरो।‘ मान्यता है कि ’पामरो‘ देवी छोटे स्तन वाली महिलाओं की जान ले लेती हैं। इस धारणा के अनुरूप जब वहां की बच्ची वयस्क होने लगती है तो पामरो देवी की पूजा करती है और अपने स्तनों को विकसित करने का जिम्मा अपने परिवार के ही किसी पुरूष को सौंपती है। पूजादि सम्पन्न कर वह घर आती है। विविध प्रकार के मर्दन और मसाज से उस लड़की के स्तनों को विकसित करने का काम वह व्यक्ति करता रहता है। विकसित स्तनों वाली युवती भाग्यशाली मानी जाती है।
दक्षिण अमेरिका के अमोन प्रदेश के टपरी कबीलों में रिवाज है कि विवाह के बाद वे अपनी पुत्राी या बहू को ’उर्बरी‘ देवी के मन्दिर के पुजारी के पास एक सप्ताह तक छोड़ देते हैं ताकि उसे देवी की कृपा पात्रा हो सकंे। इस दौरान वह नववधू उस मन्दिर की पुजारी के साथ रहती है और पुजारी के साथ रात गुजारती है। एक सप्ताह बाद लड़की के घर वाले तथा ससुराल वाले उस मंदिर में पहुंचते हैं और भरपूर चढ़ावा चढ़ाने के बाद उस विवाहिता को लेकर घर पहुंचते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो वह विवाहिता अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह पाती। इस प्रकार के रोचक एवं सत्य अनेक रिवाज हैं। उन सभी की जानकारियां पाठकों तक क्रमश: दी जाती रहेगी ताकि वे अद्भुत रिवाजों से परिचित हो सकें।
(अदिति)