पटना/ इन दिनों जहां एक ओर पूरी दुनिया कोविड महामारी से जंग लड़ रही है वहीं पटना का राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज जोंक जमा करने में लगा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस जोंक को आप खूंन चूसने वाला महज एक कीड़ा मानते हैं, वह कोई साधारण जीव नहीं है। भारतीय आयर्वेदिक पद्धति में इसकी जबरदस्त भूमिका है। पटना राजकीय आयुर्वेदिक काॅलेज प्रबंधन ने दावा किया है कि जोंक के माध्यम से वह लाइलाज बीमारी, काला फंगस को खत्म कर सकता है।
कोरोना महामारी से ठीक होने के बाद मरीजों को जानलेवा ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ले रहा है। इस फंगस से पूरी दुनिया लड़ रही है। इस बीच बिहार के डॉक्टरों ने ब्लैक फंगस को मात देने का आयुर्वेदिक इलाज खोजने का दावा किया है। बिहार में भी ब्लैक फंगस के 40 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, हालांकि अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
बिहार के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के डॉक्टर जोंक के जरिए इस फंगस के इलाज का दावा कर रहे हैं। जोंक की खासियत है कि यह शरीर से गंदा खून चूसकर डेड सेल को नष्ट कर देती है। शरीर में कहीं भी स्किन खराब होने और रक्त संचार बंद होने की स्थिति में वहां डेड सेल को एक्टिव करने में जोंक काफी मददगार होती है। डॉक्टर इस इलाज की विधि को जलौका कहते हैं।
राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि गंभीर फंगस के लिए जलौका पद्धति सदियों से कारगर रही है। नए मामले आते हैं तो इसका इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि, आयुर्वेदिक कॉलेज के पास अब तक ब्लैक फंगस का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन डॉक्टर इस इलाज को आगे बढ़ाने के लिए जोंक की तलाश में जुट गए हैं।
डॉ. प्रसाद बताते हैं कि जलौका पद्धति में जोंक का इस्तेमाल किया जाता है। इस पद्धति को ग्लूकोमा के मरीजों के लिए लाइन ऑफ ट्रीटमेंट कहा जाता है। यह काफी प्राचीन और प्रचलित है। इस पद्धति से ग्लूकोमा के साथ फंगस का उपचार किया जाता है।
डॉ. प्रसाद का कहना है कि पोस्ट कोविड के मामले बहुत आ रहे हैं। इसमें फंगस के भी मामले हैं। ऐसे मामलों को को लेकर हम विशेष रूप से तैयारी कर रहे हैं। इसमें अन्य चिकित्सा विधि के साथ जलौका को लेकर भी तैयारी है।
डॉ प्रसाद बताते हैं कि पंचकर्म के साथ आयुर्वेद की अन्य कई क्रियाएं होती हैं। पोस्ट कोविड के अधिकतर मामलों में किडनी लीवर और फंगस के साथ अन्य बीमारी सामने आ रही है। ऐसे में पंचकर्म काफी सहायक होता है।
डॉ दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि आंखों में सूजन और शरीर में कहीं भी एबनॉर्मल ग्रोथ में जोंक का उपचार अच्छा काम कर रहा है। आंख के ऊपर अगर खून जमा होने से जोंक को आंख पर रखा जाता है जो गंदा खून को चूसने का काम करता है। गंदा खून चूसने के बाद स्किन नॉर्मल हो जाती है। आंख के मामलों में यह पद्धति काफी लाभदायक है।
डॉ. प्रसाद का कहना है कि जकौला पद्धति से इलाज के लिए जोंक का होना जरूरी है। इसके लिए जोंक की तलाश की जा रही है। जोंक ग्रामीण इलाकों में बहुत मिलती है। जहां भैंस रहती हैं पानी में जानवर होते हैं और पानी का बहाव कम होता है ऐसे जगह पर जोंक मिलते हैं। राजकीय आयुर्वेद कॉलेज में पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स के साथ मरीजों से भी जोंक के लिए बोला जा रहा है। जोंक की व्यवस्था होने के बाद जलौका का इलाज होने लगेगा। इसमें बालों के उड़ जाने के साथ अन्य कई गंभीर मामलों में इस विधि से इलाज किया जाएगा।