तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम प्रदात्री ब्रह्मचारिणी

तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम प्रदात्री ब्रह्मचारिणी

(16 अक्टूबर 2023 को नवरात्र द्वितीया-ब्रह्मचारिणी पूजन दिवस पर विशेष)

अशोक प्रवृद्ध

शक्ति पूजन के लिए प्रख्यात नवरात्रिका दूसरा दिन देवी ब्रह्मचारिणी के पूजन के लिए समर्पित है। नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा करने के बादभक्त दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी पूजा करते हैं, जो देवी पार्वती के यौवन रूप को प्रतिष्ठित करती हैं।इस वर्ष 2023 में 16 अक्टूबर दिन सोमवारको शारदीय नवरात्रि का द्वितीय दिन है। देवी ब्रह्मचारिणी के दुर्गा के नौ रूपों में से दूसरा स्वरूप होने के कारण नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा व अर्चना की जाती है।नवरात्र के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रातरू काल का समय ब्रह्मचारिणी पूजन हेतु उत्तम बताया गया है।

ब्रह्मचारिणी शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है-ब्रह्म और चारिणी। इसमें ब्रह्म का अर्थ है -तपस्या, एक स्वअस्तित्व वाली आत्मा, पूर्ण वास्तविक व पवित्र ज्ञान,और चारिणीका अर्थ है -आचरण करना, अनुसरण करना, व्यवहार करना। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए सहस्त्रों वर्ष तक सिर्फ बेल-पत्र और फिर निर्जल व निराहार रहकर घोर तपस्या की थी। जिसके कारण माता को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। देवी पुराण के अनुसार ब्रह्मचारिणी माता हमेशा तप में लीन रहती हैं। इस कारण इनका तेज बढ़ गया। इसलिए इनका रंग सफेद अर्थात गौर वर्ण बताया गया है।नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप तप का आचरण करने वाली अर्थात तप की चारिणी,देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल है।

भक्तगण नवरात्रि के दूसरे दिन अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए साधना करते हैं जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। माता ब्रह्मचारिणी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। नवरात्र के दूसरे दिन अन्य दिनों की भांति ही भगवती की उपासना करते हुए विधि- विधान से देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है, जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।ब्रह्मचारिणी का ध्यान मंत्र है- ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमरू।।

ब्रह्मचारिणी की प्रार्थना मंत्र है-

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मान्यतानुसार सम्पूर्ण जड़ पदार्थ अथवा अपरा प्रकृति से उत्पन्न शैलपुत्री भगवती का पहला स्वरूप हैं। अर्थात मिट्टी(पत्थर), जल, वायु, अग्नि व आकाश इन पंच तत्वों पर ही निर्भर रहने वाले जीव शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ अर्थात कण-कण में परमात्मा के प्रकटीकरण का अनुभव करना। योनि चक्र के तहत घास, शैवाल, काई, पौधे इत्यादि शैलपुत्री हैं। इसी प्रकार ब्रह्मचारिणी, जड़(अपरा) में ज्ञान(परा) का प्रस्फुरण के पश्चात चेतना का वृहत संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। यह जड़ चेतन का जटिल संयोग है। प्रत्येक वृक्ष में इसे देख सकते हैं। सैंकड़ों वर्षों तक पीपल और बरगद जैसे अनेक बड़े वृक्ष ब्रह्मचर्य धारण करने के स्वरूप में ही स्थित होते है।

शिव पुराण के अनुसार देवी पार्वती के राजा हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने पर उन्हें भगवान शिव के साथ अपने संबंध का अहसास हुआ। किशोरावस्था से ही देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने और उनकी पत्नी बनने की कामना की। अपनी इच्छा को पूर्ण करने के लिए नारद के उपदेश से उन्होंने एक विशाल तपस्या की। देवी पार्वती ने बिल्व के पत्तों के सेवन पर ही जीवन जीना शुरू कर दिया और बाद में उन्होंने उन पत्तों को खाना भी बंद कर दिया। पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका नाम अपर्णा भी पड़ा। उन्होनें अन्न- जल का सेवन पूरी तरह से त्याग दिया, ताकि वह अपने देवता की पूजा करते समय दृढ़ समर्पण कर सके। इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना देवी अत्यन्त दुखी हो गयीं। उन्होंने उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए उन्हें आवाज दी- उमा, अरे नहीं। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्व जन्म का एक नाम उमा पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था।

देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्मा ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- हे देवी! आज तक किसी ने इस प्रकार की कठोर तपस्या नहीं की थी। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन पूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि शिव तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। हजारों वर्षों तक देवी पार्वती की तपस्या और सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी की इच्छा को मानते हुए उनसे विवाह किया।

देवी दुर्गा का दूसरा रूपदेवी ब्रह्मचारिणी भगवान महादेव से विवाह करने की दृढ़ इच्छा रखती हैं। उन्हें देवी पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। हजारों वर्षों की लंबी तपस्या के बादभगवान शिव की पत्नी बनने की उनकी इच्छा पूरी हुई। देवी ब्रह्मचारिणी अपार शक्ति और सच्चे प्रेम का प्रतीक हैं।देवी ब्रह्मचारिणी को भगवान शिव की पत्नी बनने के लिए उनकी कठोर तपस्या और दृढ़ समर्पण के लिए जाना जाता है। ब्रह्म शब्द पवित्र ज्ञान, पूर्ण वास्तविकता और आत्म-विद्यमान आत्मा के साथ निरूपित करता है और चारिणी शब्द आचार और व्यवहार को दर्शाता है। देवी ब्रह्मचारिणी को उमा, अपर्णा, और तपचारिणी के नामों से भी जाना जाता है। माता ब्रह्मचारिणी दृढ़ ध्यान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। देवी दुर्गा के इस रूप को एक समर्पित योगिनी के रूप में दर्शाया गया है, जो नारंगी रंग की किनारी के साथ सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं। वे हमेशा नंगे रहती हैं।

देवी ब्रह्मचारिणी दृढ़ निश्चय और अपार सहनशीलता की परिचायक हैं। वह अपने भक्तों को दृढ़ प्रेरणा और अटूट धैर्य के साथ का आशीर्वाद देती है। ब्रह्मचारिणी द्वारा भगवान मंगल को नियंत्रित किया जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा और मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति भगवान मंगल के किसी भी प्रकार के बुरे प्रभाव से छुटकारा पा सकते हैं। ब्रह्मचारिणी देवी के व्रत का पालन करने वाले भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्राप्त होने की मान्यता होने के कारण नवरात्र के द्वितीय दिवस इनकी पूजा- अर्चना कर प्रार्थना करते हुए सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी रूपिणी माता अम्बे को बारम्बार प्रणाम करते नहीं थकते।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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