तो क्या मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश है हमास हमला?

तो क्या मुस्लिम समुदाय के खिलाफ साजिश है हमास हमला?

राजेश कुमार पासी

इजराइल पर हमास ने बेहद क्रूर हमला किया है। हमास एक फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन है लेकिन उसने फिलिस्तीनियों की लड़ाई को कमजोर कर दिया है। हमास हमले से मुस्लिम समुदाय में यह धारणा पैदा हो रही है कि हमास के हमले के बाद फिलिस्तीनियों का संघर्ष फिर मुद्दा बन गया है लेकिन सच्चाई इससे बहुत दूर है। इस हमले ने पूरी दुनिया के सामने उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया है। इस हमले ने न केवल फिलिस्तीनी मुस्लिम समुदाय को आतंकवादी घोषित किया है बल्कि पूरी दुनिया के मुसलमान इससे सवालों के घेरे में आ गये हैं। हमास का हमला पूरी मानवता के लिये कलंक है। उसने वही वहशीपन, क्रूरता और बर्बरता प्रदर्शित की है जो कुछ साल पहले आईएसआईएस ने दिखाई थी। हमास का हमला आईएस के हमले से भी ज्यादा मुसलमानों के लिए घातक साबित होने वाला है। इसकी वजह यह है कि आईएस के साथ मुस्लिम समुदाय खड़ा नहीं हुआ था और उसके समर्थन में मुस्लिमों ने ऐसे प्रदर्शन नहीं किये थे जैसे हमास के समर्थन में किए जा रहे हैं। छोटी-छोटी बच्चियों से रेप, छोटे-छोटे बच्चों की हत्या, महिलाओं के साथ सामूहिक बर्बरता और उनके शवों के साथ भी दुष्कर्म, यह किसी इंसान का काम नहीं हो सकता लेकिन इस्लाम के नाम पर धार्मिक नारों के साथ यह सब किया गया है।

हमास एक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहा है लेकिन उसने इस्लामिक धार्मिक नारों का इस्तेमाल करके अपने कुकर्मों में इस्लाम को शामिल कर लिया है। पूरी दुनिया के मुसलमान यह समझ नहीं पाये कि राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे एक आतंकवादी संगठन ने अपनी घिनौनी कार्यवाही को धर्म की आड़ लेकर अंजाम दिया है। उसने बड़ी सफाई से अपनी घिनौनी कार्यवाही में इस्लाम को घसीट लिया है। जो काम आईएस अपनी क्रूरता और बर्बरता पूर्ण लम्बी कार्यवाहियों से नहीं कर पाया था, वो काम हमास ने एक झटके में कर दिया है। अभी यह बात मुस्लिमों को समझ नहीं आ रही है लेकिन इसके परिणाम तो उन्हें भुगतने ही होंगे।

इजराइल कितना ताकतवर देश है, यह बात पूरी दुनिया अच्छी तरह से जानती है लेकिन फिर भी हमास ने इतना भयानक हमला इजराइल पर कर दिया। दूसरी बात यह भी है कि हमास अच्छी तरह से जानता है कि इजराइल उसके हमले का भयानक बदला लेगा। यह सवाल उठता है कि सब कुछ जानते हुए भी हमास ने ऐसा भयानक हमला क्यों किया? हमास और इजराइल के सम्बन्ध सुधर रहे थे। इजराइल को यह विश्वास दिला दिया गया था कि अब फिलिस्तीनी लड़-लड़ कर थक गये हैं और वो शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं। इसलिये इजराइल ने गाजा निवासियों को अपने यहां काम करने की इजाजत दे रखी थी। वो इजराइल में कई गुना ज्यादा पैसे कमा रहे थे। इजराइल को यह विश्वास दिला दिया गया था कि अब गाजा निवासी अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य चाहते हैं, अपनी आर्थिक हालत सुधारना चाहते हैं। फिलिस्तीनियों और इजराइल के बीच शांति को देखते हुए ही अरब देश इजराइल के नजदीक आना शुरू हो गये थे। भारत से अरब देशों और इजराइल से होते हुए यूरोप तक जाने वाले कॉरिडोर को बनाने की सहमति जी-20 की बैठक में बनी थी। देखा जाए तो इजराइल और अरब देशों के सम्बन्ध सामान्य होते जा रहे थे। इसका फायदा सबसे ज्यादा अरब देशों को ही होने वाला था, अर्थात मुस्लिम देश ही फायदे में रहने वाले थे। अब सवाल उठता है कि वो कौन सी शक्तियां हैं, जिन्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा था? अगर इस सवाल का जवाब मुस्लिम ढूंढते तो वो इस मामले से सही तरह से निपट सकते थे लेकिन वो कुछ समझने को तैयार नहीं है । इसके लिए वो भी पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि हालात इतनी तेजी से बिगड़ गये हैं कि किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा है।

सबसे पहले तो यह विचार करने की जरूरत है कि हमास के पास अचानक पांच हजार रॉकेट कहां से आ गये, किसने दिये और इसके लिये पैसा कहां से आया? इजराइल पर हमले का अंजाम जानते हुए भी किसके उकसाने पर हमास ने यह बेवकूफी की? मैं यह नहीं जानता कि हमास को इसका अंदाजा था या नहीं लेकिन यह सच है कि अब हमास का सर्वनाश होने वाला है। वो हिजबुल्लाह और आईएस की तरह हो जायेगा, पूरी तरह से खत्म नहीं होगा लेकिन छुटपुट कार्यवाहियों से अपने अस्तित्व का एहसास कराता रहेगा। इजराइल हवाई हमलों के बाद जमीनी कार्यवाही जरूर करेगा क्योंकि इजराइली सरकार पर दबाव बहुत ज्यादा है, फिर धोखे से किये गये हमले का जवाब तो उसे देना ही होगा। हमास ने ऐसी कार्यवाही की है कि इजराइल हमास को खत्म किये बिना नहीं रुकने वाला है। तुर्की, ईरान, पाकिस्तान को छोड़कर कोई भी देश हमास के समर्थन में नहीं आया है। बेशक मुस्लिम देशों की जनता हमास का समर्थन कर रही हो लेकिन मुस्लिम देश बयान देने से ज्यादा आगे बढ़ने वाले नहीं हैं। वो इसका अंजाम अच्छी तरह से जानते हैं। अमेरिका, यूरोप और दूसरे विकसित देश पूरी तरह से इजराइल के समर्थन में आ गये हैं। इजराइल की कार्यवाही को रोकने की कोशिश कोई देश नहीं करने वाला है। इजराइल को रोकने की जगह मदद देने की होड़ शुरू हो गई है। हमास के हमले से पहले ज्यादातर देश फिलिस्तीनियों के समर्थन में खड़े रहते थे। बेशक वो कुछ न करें लेकिन एक दबाव हमेशा इजराइल पर बना रहता था। हमास के नाम पर हजारों गाजावासी मौत की नींद सुलाये जा सकते हैं।

गाजा को समतल करने की घोषणा इजराइल द्वारा की जा चुकी है, वो उसकी कार्यवाही में दिखाई दे रही है। जो हमास की कार्यवाही पर जश्न मना रहे थे, वो भूल गये थे कि वो गाजावासियों की मौत का जश्न मना रहे हैं। गाजा को बिजली-पानी, राशन की सप्लाई रोक दी गई है और उसकी पूरी तरह से नाकाबन्दी कर दी गई है। जब सब कुछ इजराइल से ही गाजा में जाता है तो कब तक इन हालात में गाजा निवासी जिंदा रह सकते हैं। हो सकता है कि हमास ने अपने लिये कई महीनों का इंतजाम किया हो लेकिन आम नागरिकों ने तो ऐसा नहीं किया होगा। वो जब हमास के लोगों से भोजन-पानी मांगेंगे तो हमास क्या करेगा। दूसरी बात यह भी है कि क्या इजराइल इतना इंतजार करेगा, वो इससे पहले भी तो गाजा में घुसकर कहर बरपा सकता है।

वास्तव में अरब और इजराइल की दोस्ती रूस, ईरान, चीन और तुर्की की आंखों में बहुत चुभ रही थी। रूस की समस्या तो यह है कि वो दुनिया का ध्यान यूक्रेन से हटाना चाहता है। इस समस्या का सबसे बड़ा फायदा रूस को तत्काल हो गया है कि दुनिया का ध्यान अब इजराइल पर लग गया है और यूक्रेन की तरह से ध्यान हट गया है। चीन भारत से यूरोप तक बनने वाले कॉरिडोर से डरा हुआ है क्योंकि इससे उसका बीआरआई प्रोजेक्ट बेकार हो जायेगा। अरब-इजराइल सम्बन्ध बिगड़ने से उसको फायदा होने वाला है। हमास के हमले के बाद इजराइल की कार्यवाही पर अरब देश चुप रहते हैं तो ईरान खुद को मुस्लिम जगत का रहनुमा घोषित कर सकता है। तुर्की भी इसी राह पर है कि इजराइल के खिलाफ जाकर सऊदी अरब को चुनौती दे सके। हमास की मदद किसने की है, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन यह सच है कि जिन देशों को इससे फायदा होने की उम्मीद है, उन्हीं देशों में से किसी देश का हाथ इसमें हो सकता है। फिलिस्तीन की वेस्ट बैंक की सरकार भी इसके पीछे हो सकती है क्योंकि हमास के कारण अपने ही लोगों की नाराजगी झेल रही है। फिलिस्तीनियों को लगता है कि वेस्ट बैंक की सरकार इजराइल के खिलाफ कुछ नहीं कर रही है, इसलिए उसको निपटाने की कोशिश की गई हो ।

हमास ने किसकी मदद पर उकसाने की यह कार्यवाही की है, कहा नहीं जा सकता लेकिन गाजा वासी बर्बाद होने वाले हैं, यह एक बड़ा सच है। इजराइल से ही उन्हें पैसा मिलता है क्योंकि गाजा में रोजगार नहीं है। इसके अलावा गाजा वालों को यूरोप और दूसरे देशों की मदद मिलती है। उनके जीवन का यही सहारा है और अब दोनों सहारे खत्म हो गये हैं। जो लोग हमास के समर्थन में खड़े हो रहे हैं, वो नहीं जानते हैं कि हमास ने गाजा निवासियों के लिये कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है। जिस हमले को वो इस्लाम की जीत मान रहे हैं, उसमें ही इस्लाम की हार छुपी हुई है लेकिन दिखाई नहीं दे रही है। इस हमले ने मुसलमानों की छवि इतनी खराब कर दी है कि उन्हें भविष्य में कहीं भी शरण मिलने वाली नहीं है। मुस्लिम देशों की कानून व्यवस्था के कारण जो देश मुस्लिमों को शरण देते थे, वो अब ऐसा करने से हिचकेंगे। मुस्लिमों पर यह इल्जाम लगाया जाता है कि वो हमेशा धर्म को देश से ऊपर रखते हैं, यह बात एक बार फिर साबित हो गई है। भारत इजराइल के साथ है और देश के ज्यादातर मुस्लिम हमास के साथ हैं। हमास ने दुनिया भर के मुस्लिमों को अपने राजनीतिक एजेंडे में शामिल करके उनका कितना नुकसान किया है, एक बार मुस्लिम समाज को इस पर विचार जरूर करना चाहिए।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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