प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक महिला आरक्षण विधेयक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक महिला आरक्षण विधेयक

राम निवास कुमार

“नारी तू नारायणी,
चलता तुझसे ही संसार है,
है नाजुक और सुंदर तू कितनी,
तुझमें ओजस्विता और सहजता का श्रृंगार है…!”

दरअसल, उक्त कविता के पद नारी के स्वरूप की व्याख्या नहीं, यह भारतीय पारंपरिक एवं सांस्कृतिक सोच की अभिव्यक्ति है। हमारे समाज और राष्ट्र के विकास की धुरी नारी है। हमारे संस्कृति की जननी नारी है। महिलाओं के विकास के बिना देश का विकास असंभव है। इसीलिए हमारे धार्मिक शास्त्रों में नारी को जगत जननी कहा गया है। नारी ही माता के रूप में अपने बच्चों को जन्म देती है, पालन करती हैं, पत्नी के रूप मे संगिनी का कार्य करती हैं और देश की आन-बान शान के लिए वह वीरांगना के रूप में हर मोर्चे पर हमारी रक्षा भी करती है।

भारतीय महिला को सशक्त करने के लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के एक विशेष सत्र में नारीशक्ति वंदन अधिनियम (128वां संवैधानिक संशोधन विधेयक 2023) पेश किया और 27 वर्षों के अंतराल के बाद, महिला आरक्षण विधेयक पारित हुआ। नारीशक्ति वंदन अधिनियम लोकसभा और सभी विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33ः आरक्षण देता है और एससी/एसटी महिलाओं के लिए भी उनके आरक्षित सीट में जगह देता है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान 2010 में सपा, राजद जैसी कई क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा बनाई गई नकारात्मक योजना के कारण ये बिल पारित नहीं हुआ था। लेकिन अब ये क्षेत्रीय पार्टियां जो इंडिया ब्लॉक की सहयोगी हैं, वो भी नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए बिल का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया। नरेन्द्र मोदी की महिलाओं को सशक्तिकरण करने की प्रतिबद्धता के कारण 50 प्रतिशत आबादी को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने में उनका ये निर्णय इतिहास में दर्ज किया जाएगा।

महिला आरक्षण पर चर्चा स्वतंत्रता-पूर्व युग से चली आ रही है, जहां विभिन्न महिला संगठनों ने महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की वकालत की थी। कई सिफारिशों और रिपोर्टों, जैसे कि 1955 की समिति के लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 10ः आरक्षण के प्रस्ताव ने मंच तैयार किया, लेकिन किसी ने भी विधेयक को पारित करने की इच्छा और हिम्मत नहीं दिखाई।

1988 में महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना में सभी निर्वाचित निकायों में 30 प्रतिशत आरक्षण का आह्वान किया गया। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा भारत में महिलाओं की स्थिति पर 2015 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निराशाजनक था, खासकर वरिष्ठ निर्णय लेने वाले पदों पर। नारीशक्ति वंदन अधिनियम, जो 2029 तक महिला सांसदों की संख्या के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्य बनाता है, सभी राजनीतिक दलों को समावेशी होने और अधिक महिलाओं को नेतृत्व पदों पर नियुक्त करने के लिए प्रोत्साहन देगा।

विधेयक में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सहित महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है। 2010 के पिछले विधेयक के समान, यह विधेयक भी इन परिवर्तनों को प्रभावी करने के लिए संविधान में नए अनुच्छेद (330ए और 332ए) शामिल किया गया है। विधेयक में एक निर्णायक खंड शामिल है, जिसमें कहा गया है कि आरक्षण अधिनियम के प्रारंभ से 15 वर्षों तक लागू होगा।

विधेयक महिलाओं के आरक्षण के कार्यान्वयन को परिसीमन प्रक्रिया से जोड़ता है। जनगणना परिणामों के प्रकाशन के बाद परिसीमन होगा, कोरोना के कारण 2021 की जनगणना में देरी संभावित रूप से समयरेखा को प्रभावित करेगी। यह मानते हुए कि जनगणना के परिणाम 2026 के बाद प्रकाशित होंगे, यह निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के आधार के रूप में काम कर सकता है।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, लोकसभा में महिला आरक्षण वर्ष 2029 से प्रभावी होगा। परिसीमन अधिनियम, 2002, जनसंख्या वितरण के आधार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करने के सिद्धांत निर्धारित करता है। महिला आरक्षण के लिए भी ऐसे ही सिद्धांत तय किये जायेंगे।

आरक्षण कम प्रतिनिधित्व को संबोधित करते हुए, निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं की उपस्थिति की गारंटी देता है। आरक्षण महिलाओं को राजनीति में प्रवेश करने, चुनाव लड़ने और राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगा। आरक्षण राजनीति में महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को बदलेगा, रूढ़िवादिता को चुनौती देगा और भागीदारी को बढ़ावा देगा।

महिला आरक्षण विधेयक लंबे समय से लंबित था, महिलाएं शासन और राष्ट्र निर्माण में अपने उचित स्थान की प्रतीक्षा कर रही थीं। महिलाओं के नेतृत्व गुण निर्विवाद हैं और भारत की प्रगति के लिए उनकी भागीदारी आवश्यक है। जैसा कि भारत एक वैश्विक नेता बनने की आकांक्षा रखता है, उसे महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण को प्राथमिकता बहुत पहले देना चाहिए था। लेकिन जैसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि कुछ पुण्य काम उनके भाग्य में लिखा हुआ और उन्होंने संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिलाओं को सबल और सशक्त बनाने के में बिना किसी देरी के महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवा दिया।

अगर देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी का पिछला साढ़े नौ वर्ष महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विशेष रूप से जाना जाएगा। अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना, जन धन योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सुकन्या समृद्धि योजना आदि कई कार्यक्रम केवल महिलाओं के विकास के लिए चलाया। इसके अलावा प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने सभी स्तरों पर महिलाओं को वित्तीय सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करके महिलाओं का उत्थान किया है। 2015 में योजना की शुरुआत के बाद से 40.82 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण एप्लीकेशन मंजूर किये गए और 23.20 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए जिसमें मुद्रा योजना का लाभ उठाने वाले 68ः लोग महिला उद्यमी हैं। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को उनकी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। योजना की शुरुआत के बाद से अब तक 2.79 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को 12,241 करोड़ रुपये से अधिक का मातृत्व लाभ वितरित किया जा चुका है।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई देनादेना नहीं है। लेखक बिहार प्रदेश भारतीय जनता पार्टी बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के सह संयोजक हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »