अमरपाल सिंह वर्मा
अपने किन्नू के बागों के लिए विदेशों तक मशहूर राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले के किसान निराश हैं। पिछले दो-तीन सालों में प्रतिकूल मौसम के कारण किन्नू का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। इस बार किन्नू का बम्पर उत्पादन हुआ है लेकिन किसानों को उचित भाव नहीं मिल पा रहे हैं।
श्रीगंगानगर जिले में पिछले साल जहां 95 मीट्रिक टन किन्नू का उत्पादन हुआ था, वहीं इस साल यह बढ़कर अनुमानतरू तीन लाख 80 हजार मीट्रिक टन हो गया है। लेकिन इसके बावजूद किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। एक ओर जहां चालीस फीसदी किन्नू बागों में टूट कर गिर गया, वहीं किसानों को इस बार पूरे भाव भी नहीं मिल पाए। बांग्लादेश में किन्नू का निर्यात नहीं होना भी किसानों के लिए घाटे का सौदा रहा है। बांग्लादेश सरकार ने किन्नू के आयात पर शुल्क बढ़ा दिया जिस कारण किन्नू वहां नहीं भेजा जा रहा। ऐसे में स्थानीय व्यापारी ही किन्नू की खरीद कर रहे हैं। इस कारण इस बार किसानों को आठ से दस रुपये ही प्रति किलो मिल पा रहे हैं। जबकि पिछले साल किसानों को प्रति किलो 25 से 28 रुपए तक भाव मिले थे। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में और पड़ोसी पंजाब के फाजिल्का जिले में भी इसी प्रकार की स्थिति है।
पंजाब सरकार ने राज्य के स्कूलों में मिड डे मील में इस बार इसी महीने से बच्चों को किन्नू देना शुरू किया है। फरवरी के प्रथम सप्ताह में मुख्यमंत्री भगवंत मान के आदेशों पर बागबानी विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से इसकी संभावनाओं का पता लगाने को कहा गया और चंद दिनों बाद ही मिड-डे मील में किन्नू देना शुरू कर दिया गया।
पंजाब में मिड-डे मील में किन्नू देने की बात कैसे आई, इसकी भी एक कहानी है। पिछले दिनों पंजाब शिक्षा विभाग ने शीतकालीन अवकाश के बाद मिड डे मील में बच्चों को हर सोमवार को एक केला देने का फैसला किया। इस पर पंजाब के किसानों ने मांग उठाई कि जब पंजाब के किसानों के खेतों में उपजा किन्नू उपलब्ध है तो महाराष्ट्र से लाकर केला क्यों दिया जाए। केले की जगह बच्चों को किन्नू दिया जाए तो किसानों को राहत मिलेगी क्योंकि अधिक उत्पादन के कारण किसानों को किन्नू का उचित भाव नहीं मिल पा रहा है।
मुख्यमंत्री भगवंत मान गत दिनों जब पंजाब के जिलाधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे तो वहां यह मामला उठा। मान ने केले के बजाय किन्नू को विकल्प के रूप में देखने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसका सुखद परिणाम सामने आया और स्कूलों में मिड-डे मील में किन्नू का वितरण शुरू कर दिया गया है। पंजाब सरकार प्रति बच्चे के हिसाब से मिड-डे मील में पांच रुपये अलग से देगी, जिससे सप्ताह में एक दिन फल यानी किन्नू दिया जाएगा। यह पैसा किसानों की जेब में जाएगा।
सरकार के इस फैसले से पंजाब के किन्नू उत्पादक किसानों को तो लाभ मिलेगा ही, इससे बच्चों की सेहत भी सुधरेगी क्योंकि किन्नू में पाया जाने वाला विटामिन सी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और इसे खाने से बच्चे कम बीमार पड़ेंगे।
फाजिल्का समेत पंजाब के अन्य जिलों के किन्नू उत्पादन किसानों के हित में पंजाब सरकार का यह फैसला महत्वपूर्ण है हालांकि यह बहुत देर से लिया गया फैसला है, क्योंकि इन दिनों किन्नू का सीजन अंतिम चरण में है। मार्च में दूसरे सप्ताह तक तो किन्नू उपलब्ध ही नहीं हो पाएगा। इसका ज्यादा लाभ इस साल तो किसानों को मिलने वाला नहीं है लेकिन अगले साल से यह फैसला वहां के किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। इस फैसले से फाजिल्का के किसान सर्वाधिक लाभान्वित होंगे क्यों कि फाजिल्का जिले में ही पंजाब में सबसे ज्यादा किन्नू का उत्पादन होता है। मिड-डे मील में किन्नू देने की शुरुआत की वजह पंजाब में किन्नू की मांग बढना तय है।
पंजाब सरकार का यह फैसला किन्न उत्पादक किसानों के लिए किस हद तक फायदेमंद होगा, यह आने वाला वक्त बताएगा लेकिन यकीनन, किसानों के हित में यह अच्छा फैसला है। अगर इसी प्रकार का फैसला राजस्थान सरकार करे तो यह श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के किसानों के हित में बड़ा निर्णय होगा। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में मिड-डे मील में किन्नू के साथ-साथ गाजर के जूस को भी विकल्प के तौर पर देखा जा सकता है क्योंकि किन्नू और गाजर का यहां भरपूर उत्पादन होता है। जिस प्रकार पंजाब में मिड-डे मील में किन्नू देने का फैसला किया गया है, उसी तर्ज पर अन्य स्थानीय फसलों के उपयोग के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। कौनसी फसल कहां और किस रूप में काम में ली जा सकती है, इस पर विचार किया जाए। हो सकता है, ऐसे विचार-मंथन से किसानों के हित की कोई नई राह निकल आए।
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