रांची/ आज इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची एवं लिओनल एडवार्ड्स बंगाली बॉयज हाई स्कूल, रांची के संयुक्त तत्वाधान में पद्म भूषण फादर कामिल बुल्के पर आधारित एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम लिओनल एडवार्ड्स बंगाली बॉयज हाई स्कूल, रांची के प्रांगण में किया गया। भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में फादर कामिल बुल्के की साधना पर कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे। इस कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि संत जेवियर काॅलेज, हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. कमल कुमार बोस ने बुल्के के चरित्र पर प्रकाश डाला।
अतिथियों का स्वागत करते हुए विशिष्ट अतिथि संत जेवियर्स महाविद्यालय के डॉ. कमल कुमार बोस ने परिचर्चा की सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि फादर कामिल बुल्के ने बेल्जियम छोड़ रांची के परिवेश को अपना लिया और इसके रग रग में बस गये। उनका मानना था कि अपनी भाषा को महत्त्व दिए बगैर अन्य भाषाओं का सम्मान मुमकिन नहीं है। आज हमें एक ऐसे व्यक्तित्व को स्मरण करने का सौभाग्य मिला है, जिसने विदेशी भाषा भाषी होते हुए भी हिंदी भाषा की पीएचडी हिंदी भाषा में ही की थी।
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए वक्ता रांची के साहित्यकार दिलीप तेतरवे ने फादर के शोध पर आधारित पुस्तक रामकथा का विस्तृत व्याख्या की। उन्होंने बताया कि फादर के अनुसार किसी भी धर्म का मूल केवल प्रेम एवं मुस्कान पर निर्भर है। उनकी पुस्तक रामकथा ने वैश्विक स्तर पर प्रसिद्धि पाई थी। जब कोई संस्कृति किसी अन्य संस्कृति से मिलती है, तब इनमें प्रथाओं का विनिमय होता है, जिससे संस्कृतियों के विकृत होने की संभावना होती है। राम की शक्ति सीता है, वैसे ही शिव कि शक्ति शिवा (पार्वती) हैं। राम ने सबको समग्र की दृष्टि से ही देखा। जब हम कथा को किसी धर्म से जोड़ देते है, तब लोगों में दीवारें बनने लगती हैं। राम का विरोध हिंसात्मक नहीं अपितु शिक्षात्मक है। महा पंडित रावन के पतन का मूल कारण यही था कि उसने प्रेम का त्याग करके घमंड पाल लिया था। रामकथा प्रेम की कथा है, यही बाँटना चाहिए। राम यानि सद्गुण, सत्य और प्रेम सदैव जीवन में बसा रहे, यही फादर की कामना रहती थी।
रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जितेन्द्र कुमार सिंह ने फादर के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र के लिए गुमला जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्र के वंचित एवं विलुप्तप्राय लोगों को चुना एवं उनके उत्थान के लिए अपने जीवन का एक बहुत बड़ा भाग समर्पित कर दिया।
रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कुमुद कला मेहता ने कहा कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी मैकाले की अंग्रेजी भाषा व्यावहारिक तौर पर हम पर हावी है। जब फादर भारत आये तब उन्होंने यहाँ भी वही परिस्थिति देखी जो बेल्जियम में थी। यानि यहाँ भी हिंदी भाषा को नजरंदाज करके किसी विदेशी भाषा को थोपा जा रहा था। उन्होंने अपने शोध से यह साबित किया था कि रामायण की कथा केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी समान रूप से महत्त्व रखती थी। उनका मानना था कि रामायण में धर्म एवं मानव मूल्यों के बीच सर्वोत्तम समन्वय है। न केवल फादर बल्कि मारखम भी विदेश होते हुए भी भारतीय भाषा हिंदी के परम हिमायती थे एवं उनके हिसाब से रामकथा सत्य के प्रवाह में एकाकी जैसा था।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी संकायाध्यक्ष डॉ. बी.पी. सिन्हा ने कहा कि राम कथा की पहली व्याख्या बौधों के जातक कथा में हुआ है एवं जैन रामायण में भी इसकी व्याख्या है। आज रामायण को विदेशी भाषा में लोगों तक पहुँचाने में फादर का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है।
डॉ. कुमार संजय झा, क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची ने अतिथियों का अभिनंदन करते हुए परिचर्चा का विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि गाँधी एवं टैगोर के बीच जो सहमति एवं असहमति है उसकी चर्चा होनी चाहिए, और इसकी शुरुआत के लिए इस महाविद्यालय से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता है। महात्मा गाँधी कई बार झारखण्ड आये और हमेशा कुछ सीख के गये। यहाँ कि जनता पर उनके विचारों के प्रभाव का परिणाम ही आज की टाना भगत समुदाय के रूप में उभरा है। 1920 के असहयोग आन्दोलन के दौरान गांधीजी के द्वारा उठाये गये कुछ कदमों के प्रति गुरुदेव टैगोर एवं महात्मा गाँधी के बीच असहमति थी।
कार्यक्रम की समन्वय इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. सपम रणबीर सिंह ने किया। कार्यक्रम का सफल संचालन एवं धन्यवाद इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र की सुमेधा सेनगुप्ता ने किया। सांकृतिक कार्यक्रम के लिए माही कुमारी, खुसी पाल, अनुरिमा लिंडा, पिहू कर्मकार आदि की टीम मौजूद थी। मौके पर इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के ए.के. सिन्हा, बोलो कुमारी उरांव, सुमित कुमार, विकास एवं विद्यालय की अध्यक्ष रेबा चक्रवर्ती, प्राचार्य संजय कुमार महतो, सुपर्णा चटर्जी, बितास्ता साहा, केशव प्रकाश, उमा मजुमदार, अनन्या देय, अर्चना भूषण, मोनिका घोष सहित अन्य शिक्षक एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थीं।