डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो
मोराबादी स्थित रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी सरहुल पूजा मनाया गया। सादे समारोह में विधि विधान के साथ सरहुल पूजा सम्पन्न हुआ। इस दौरान पाहन शिबलाल हेम्ब्रम ने पवित्र पेय एवं जल अर्पित करते हुए सरना देवी से सम्पूर्ण घर, परिवार, विश्वविद्यालय एवं झारखंड सहित संपूर्ण विश्व के मानव समुदाय को कोरोना जैसे भयंकर महामारी से बचाने की कामना की। संपूर्ण विश्व में लोगों में इस महामारी से लड़ने के लिए हिम्मत प्रदान करने की विनती की इसके अलावा चारों ओर अच्छी वर्षा, अच्छी फसल होने की कामना की एवं लोगों को किसी भी तरह की रोग बीमारी से बचाने के लिए हिम्मत प्रदान करने की कामना की। सरहुल पूजा का आरंभ अखड़ा में सरहुल की डाली एवं जल कलश स्थापित कर किया गया।
गौरतलब हो कि इस बार सरहुल पूजा के अवसर पर किसी प्रकार का कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं रखा गया और न ही किसी सम्मानित व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गयागया और न ही कोई छात्राएँ व शोधार्थी मोजूद थे। सरहुल पूजा बिल्कुल सादा समारोह में सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन करते हुये संपन्न किया गया।
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा कि कोरोना वाइरस के बढ़ते खतरे की वजह से सादगीपूर्ण तरीके से सरहुल पूजा मनाया गया. यह मात्र परंपरा के निर्वहन के लिए सादगी पूर्ण पूजा है. प्रकृति से संबंधित पर्व त्यौहारों के चलते ही आज हम और हमारी प्रकृति बची हुई है। उन्होंने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ का ही दुष्परिणाम है कि ग्लोबल वार्मिंग का खतरा पूरी दुनिया में बढ़ गया है। ऐसी विकट परिस्थिति में सरहुल पर्व पूरी दुनिया के लोगों को एक नया जीवन दे सकता है।
कुलपति प्रो डॉ कामिनी कुमार ने कहा कि आज पूरी दुनिया के समक्ष जो कोरोना वाइरस नामक विपदा आ पड़ी है उस विपदा से निपटने के लिये हमें प्रकृति के निकट आने की जरूरत होगी। हम अपने घरों में संयमित रहकर इससे निजात पा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह दूसरा मौका होगा कि विभाग के द्वारा इस सरहुल पूजा महोत्सव में बगैर किसी अतिथि, छात्राओं व शोधकर्ताओं की अनुपस्थिति में यह पर्व मनाया गया।
पूर्व कुलपति प्रो डॉ रमेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि सरहुल केवल एक पर्व नहीं बल्कि झारखंड की गौरवशाली प्राकृतिक धरोहर का नाम है. यही धरोहर मानव-सभ्यता, संस्कृति व पर्यावरण की रीढ़ भी है।
प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि प्राकृतिक संतुलन को बिगड़ने से बचाने के लिए हम सबों को अपनी पूर्वजों की संस्कृति को आत्मसात कर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना होगा। तभी सरहुल पर्व मनाने का हम सबों का मकसद पूरा होगा।
इस मौके पर जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, किशोर सुरिन, चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी प्रभा मुंडा, बसंती देवी व धरमा की उपस्थिति में, जो शोसल डिस्टेंसिंग बना कर विभागीय अखाडा में शामिल हुये।