रांची/ बिहार व झारखंड के ग्रामीण बैंकों को निजी हाथों में सौंप दिए जाएंगे। इस संदर्भ में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय ने दोनों प्रांतों के संबंधित आला अधिकारियों को पत्र भेज दिया है। भारत सरकार, झारखंड व बिहार के ग्रामीण बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के निदेशक प्रशांत गोयल ने झारखंड ग्रामीण बैंक के चेयरमैन को इस आशय का पत्र भेजा है। इसी प्रकार का एक पत्र बिहार के ग्रामीण बैंकों के आला अधिकारियों को भी भेजा गया है। वित्त मंत्रालय के द्वारा जारी पत्र में भारत सरकार की ओर से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का आईपीओ लाने की जानकारी दी गई है।
जानकारी के अनुसार भारत सरकार झारखंड ग्रामीण बैंक में अपने 50 फीसदी शेयर में से 34 प्रतिशत शेयर निकाल लेगी। बिहार के दो ग्रामीण बैंकों के साथ भी केन्द्र सरकार यही करने जा रही है। इन बैंकों में केन्द्र सरकार के केवल 16 प्रतिशत शेयर ही रह जाएंगे। 34 फीसदी शेयर भारत सरकार आईपीओ के माध्यम से बेचेगी। बैंक में बाकी 35 प्रतिशत शेयर भारतीय स्टेट बैंक और 15 प्रतिशत शेयर स्थानीय सरकारों की रहेगी।
झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक की वर्तमान में 443 शाखाएं हैं। लगभग 1200 कर्मचारी कार्यरत हैं। झारखंड में पहले दो ग्रामीण बैंक झारखंड क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और वनांचल ग्रामीण बैंक थे। बाद में दोनों बैंकों को एकीकृत कर झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक बना दिया गया था। वर्तमान में बैंक के पास कुल जमा राशि 8,617 करोड़ है। बैंक ने 6,010 करोड़ रुपए के ऋण वितरित कर रखे हैं।
जानकारों का मानना है कि झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक के निजी प्रबंधन के हाथों में जाने के बाद सुदूर इलाकों में बैंकिंग सुविधा को विकसित करने में दिक्कत आ सकती है। निजी प्रबंधन वित्तीय समावेशन के नाम पर गैर लाभकारी शाखाओं का संचालन जारी रखने पर विचार कर सकता है। इसका सीधा असर खेती-किसानी को मिलने वाले ऋण पर पड़ेगा।
भारत सरकार की ओर से पत्र आने के बाद झारखंड सरकार के रुख पर सबकी नजर टिकी है। झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक में राज्य सरकार का भी 15 प्रतिशत शेयर है। ऐसे में राज्य सरकार केंद्र को इस संदर्भ में विचार करने का आग्रह कर सकती है।
इस संदर्भ में झारखंड ग्रामीण बैंक कर्मचारी संघ के नेता एनके वर्मा ने कहा कि ग्रामीण बैंक के निजीकरण से ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सुविधा के विस्तार को धक्का पहुंचेगा। इससे गरीब ग्रामीण जनता और बैंककर्मियों का शोषण बढ़ेगा। सीमांत किसानों और ग्रामीण बेरोजगारों को वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया से जोड़ने की गति धीमी पड़ेगी।