सावन विशेष : शिवमय हो जाता है वैद्यनाथ धाम

सावन विशेष : शिवमय हो जाता है वैद्यनाथ धाम

आनंद कुमार अनंत

शिव‘ का अर्थ है मंगल और कल्याण। शिव विश्राम के विग्रह हैं, जिनकी शरण में अनेक पाप-ताप एवं मानसिक तनाव से उद्विग्न खिन्न प्राणी शांति और विश्राम को पाता है। इसी परिप्रेक्ष्य में लगता है सुप्रसिद्ध वैद्यनाथ धाम का श्रावणी मेला। श्रावण माह के शुभारंभ के साथ ही यहां कांवरियों का तांता लग जाता है जो माह के अन्त तक चलता रहता है।

’सावन‘ आते ही पूरा जगत शिवमय हो जाता है और द्वादश ज्योतिर्लिंग में शिव भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। बाल-वृद्ध, नर-नारी, सभी शिवपूजन में लीन देखे जाते हैं। सामर्थ्य के अनुसार भक्तजन भगवान को सब कुछ अर्पण कर देना चाहते हैं क्योंकि शिव ही तो अध्यात्म के मूलाधार हैं।

वैद्यनाथ धाम स्थित रावणेश्वर महादेव मन्दिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में सर्वाधिक महिमामंडित है। इस कथन की सत्यता इस तथ्य से होती है कि मात्रा एक श्रावण माह में यहां तीस-चालीस लाख तीर्थयात्रियों का शुभागमन होता है जबकि पूरे वर्ष में पहुंचने वाले भक्तों की संख्या लगभग एक करोड़ से अधिक होती है।

सुल्तानगंज (बिहार) से जल भरकर वैद्यनाथ धाम (झारखंड) तक की लगभग एक सौ दस किलोमीटर की पहाड़ी, पथरीली भूमि भगवावस्त्रा धारी नर-नारी व बच्चों की टोलियों से सराबोर हो जाती है। उत्तरवाहिनी गंगा जल को लेकर सुल्तान गंज से जब भक्तों की टोली ’बम-बम‘ का नारा लगाते हुए आगे बढ़ती है तो सम्पूर्ण वातावरण शिवमय हो जाता है।

इस अवसर पर सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ मंदिर का भी महत्व बढ़ जाता है। यह मंदिर सुल्तानगंज में गंगा के बीचों-बीच एक पहाड़ी टीले पर स्थित है। इस मंदिर के पास ही जुहनु ऋषि का आश्रम है। अजगैबी नाथ मंदिर में ’अजगैबी‘ शिव की पूजा होती है यानी यह शिव जो छिपे हुए हैं। कहा जाता है कि लगभग पाँच सौ वर्ष पहले महानसाधक योगी हरनाथ भारती ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। इस स्थान पर नाव से जाया जाता है।

भारत में तीर्थों की पुनीत परम्परा है। उसी तीर्थ परम्परा से जुड़ा हुआ है देवघर का ’रावणेश्वर‘ वैद्यनाथ धाम मंदिर। इस मंदिर की चर्चा ’अग्निपुराण‘ में है। कहा जाता है कि सती का हृदय प्रदेश श्री विष्णु के सुदर्शन चक्र से कटकर वहीं गिरा था। शिव पुराण में भी वैद्यनाथ धाम की चर्चा है। शिवपुराण में इस भूमि को ’चिता भूमि‘ कहा गया है। श्री हरि के चक्र से कटकर जब सती का हृदयप्रदेश (हृत्पिंड) यहां गिरा था तो भगवान शिव ने यहीं उनका दाह संस्कार कर दिया था। मान्यता है कि वैद्यनाथ धाम की भूमि के अन्दर आज भी जगह-जगह पर राख मिलती है।

वैद्यनाथ धाम को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं। इस धाम से जुड़ी कथाओं के प्रति आस्था की जड़ें गहरे तक फैली हुई हैं। कहा जाता है कि लंकेश्वर रावण शिव रूपी कामना लिंग को अपने साथ लंका ले जा रहा था। शिव ने लंकेश्वर के साथ यह शर्त रखी थी कि बीच में जहां कहीं भी इस लिंग को रख दिया जाएगा, वह वहीं स्थापित हो जाएगा। जहां पर अभी शिवलिंग विद्यमान है, वहां आकर रावण को लघुशंका लगी। वह शिवलिंग को धारण किये था तो लघुशंका कैसे करता?

पास में ही एक चरवाहा खड़ा था जिसका नाम वैद्यनाथ था। रावण कामना लिंग को उस चरवाहा को थमाकर लघुशंका हेतु चला गया। थोड़ी देर जब रावण निवृत्त होकर आया तो उसने देखा कि चरवाहा वैद्यनाथ गायब है और शिवलिंग वहीं जमीन पर हैं। शर्त के अनुसार रावण अब उस लिंग को नहीं ले जा सकता था। उसने क्रोध में आकर लिंग के ऊपरी भाग पर मुक्के का प्रहार कर दिया। आज भी कामना लिंग रावणेश्वर का ऊपरी भाग चपटा है। जनश्रुति है कि रावण प्रति दिन लंका से यहां पूजा करने हेतु आया करता था।

इस स्थान पर शिवगंगा नामक एक सरोवर है। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के पूजन के पूर्व भक्त इसमें स्नान करते हैं। शिव गंगा के संबंध में दो दंतकथाएं प्रचलित हैं’-पहली कथा के अनुसार रावण ने जब ज्योतिर्लिंग विग्रह को लघुशंका के कारण चरवाहा वैद्यनाथ के हाथों सौंप दिया, उसके बाद रावण को लघुशंका के लिए जल की आवश्यकता हुई। जल की पूर्ति के लिए रावण ने शिवगंगा को पदाघात (लात के प्रहार) से उत्पन्न किया।

दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन काल में अश्विनी कुमारों को उदर रोग हो गया था। उस समय उन्हें ब्रह्मा जी का आदेश हुआ कि ’हर तीर्थ‘ (वैद्यनाथ धाम) में एक कुंड खोदकर उसका जल पीने से उदर रोग ठीक हो जाएगा। पद्मपुराण एवं शिवपुराण के उत्तराखंड में रावण से संबंधित तथा ब्रह्मधर्म पुराण एवं भविष्य पुराण में अश्विनी कुमारों से संबंधित कथा की चर्चा है।

वैद्यनाथ धाम मंदिर को लेकर भी कई बातें प्रचलित हैं। किंवदन्ती है कि इसका निर्माण देव शिल्पी विश्वकर्मा ने स्वयं किया था। कहा जाता है कि वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण एक ही शिलाखण्ड से है। शिवलिंग पर आज भी रात में मंदिर के ऊपरी भाग से कोई तरल पदार्थ स्वतः ही टपकता रहता है।

श्रावण का महीना शिवभक्तों के लिए अश्वमेध यज्ञ के समान अत्यंत महत्वपूर्ण है। देश-विदेश से अपार कष्ट झेलकर भक्त वहां पहुंचते हैं। इस तीर्थ स्थान पर पहुचंकर भक्त शिवमय हो जाते हैं।

(युवराज)

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