गौतम चौधरी
अभी हाल ही में हेट स्पीच मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की और उस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों वाली एक पीठ ने तीन प्रदेश के पुलिस को नोटिस जारी कर दिया। इस मामले में कोर्ट का रुख बेहद चैकाने वाला है। सामान्य तौर पर इस प्रकार के मामले राजनीतिक होते हैं लेकिन माननीय न्यायालय को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा यह हमारे देश के लोकतंत्र के लिए बुरी खबर है।
पहले तो हम यह समझें कि आखिर कोर्ट ने क्या कहा? मसलन, न्यायमूर्ति केएम जोसफ ने कहा-‘‘यह 21वीं सदी है। हम धर्म के नाम पर कहां आ पहुंच गए हैं? हमें एक धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु समाज होना चाहिए, लेकिन आज घृणा का माहौल है। सामाजिक ताना बाना बिखरा जा रहा है। हमने ईश्वर को कितना छोटा कर दिया है। उसके नाम पर विवाद हो रहे हैं।’’ इस मामले में माननीय न्यायालय ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस को नोटिस जारी करते हुए पूछा, ‘‘हेट स्पीच में शामिल लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। जिम्मेदार ऐसे बयान देने वालों पर फौरन सख्त कार्रवाई करें, नहीं तो अवमानना के लिए तैयार रहें।’’ जस्टिस केएम जोसफ और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करे।
दरअसल, शाहीन अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने कोर्ट से मांग की कि वह देशभर में हुई हेट स्पीच की घटनाओं की निष्पक्ष, विश्वसनीय और स्वतंत्र जांच के लिए केंद्र सरकार को निर्देशित करें। भारत में मुस्लिमों को डराने-धमकाने के चलन को तुरंत रोका जाए। याचिकाकर्ता ने अदालत से तुरंत सुनवाई की मांग की थी। इसी याचिका के आलोक में कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की और आनन-फानन में तीन प्रदेश की पुलिस को नोटिस जारी कर दिया। यदि कोर्ट की बात करें तो यह बेहद सकारात्मक पहल है और किसी भी धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र के लिए यह जरूरी है। भारत के लोकतंत्र में विश्वास करने वाले हर नागरिक को इस निर्णय पर गर्व होना चाहिए लेकिन कोर्ट के इस निर्णय से देश के वैसे नागरिकों में डर भी पैदा हो गया है जो देश में कानून के राज समर्थक हैं और अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं।
इस मामले में यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर हेट स्पीच क्यों दिए जा रहे हैं? इस प्रकार के हेट स्पीच से फायदा किसको हो रहा है? इसके लिए इधर के दिनों कुछ बड़ी घटनाओं का जिक्र यहां जरूरी हो जाता है। एक तो उदयपुर में एक खास धर्म विशेष के दो युवकों ने कन्हैया लाल की बेरहमी से हत्या कर दी। पुलिस वहां भी थी और प्रदेश की सरकार सीना ठीक के कहती रही कि यहां कानून का राज है। दूसरी घटना अभी हाल ही में मुंबई की है। यहां भी एक खास धर्म के नौजवान ने अपनी ही प्रेमिका, जो उसके साथ लीवइन थी, उसके कई टुकड़े किए और फ्रीज में डाल दिया। डारखंड की लड़की को जिंदा जला दिया गया। साल भर के अंदर कम से कम 10 ऐसी घटनएं घटी है, जिसमें एक खास धर्म विशेष के युवकों ने भारत के बहुसंख्यक समाज पर विभत्स और क्रूर आक्रमण किए हैं। इस प्रकार के आक्रमणों से भारत का बहुसंख्यक समाज विगत लगभग 1000 वर्षों से प्रभावित होता रहा है। कोर्ट में याचिकाकर्ता ने यह जरूर कहा कि एक खास वर्ग विशेष के लोगों को सत्ता और शासन द्वारा धमकाया व डराया जा रहा है लेकिन उन्होंने यह कबूल नहीं किया कि बहुसंख्यक समाज में जो एक खास समुदाय द्वारा लगातार डर पैदा किया जा रहा है उसका क्या होगा?
माननीय न्यायालय का निर्णय शिरोधार्य लेकिन समाज में जो इस प्रकार की घृणा पैदा की जा रही है उसका भी समाधान ढूंढना होगा। इसका समाधान न तो न्यायालय के पास है और ही सत्ता-शासन के पास। घृणास्पद बयान देने वाले राजनेता तो घृणित राजनीति की उपज हैं लेकिन समाज को यहीं रहना है। पड़ोस में रहने वाले राम को रहमान चाहिए और जगतलाल को मशीह। हेट स्पीच का कारण बहुसंख्यक समाज में एक खास सुमाय के प्रति बैठा हुआ वह डर है जो उन्हें शदियों से डराता रहा है। यही नहीं भारत का बहुसंख्यक समाज अपने पड़ोस के देशों से आई खबरों को भी देखता, सुनता है। हेट स्पीच के पीछे का कारण यह भी है। जब तक वह डर जिंदा है घृणा की राजनीति करने वाले हेट स्पीच देते रहेंगे। इसलिए समाज को, देश के हुक्मरानों को और माननीय न्यायालय को इस डर का भी समाधान ढूंढना होगा।