गौतम चौधरी
अभी भारत के कुछ उत्साही हिन्दू राष्ट्रवादी, नेपाल के ‘जेन जी रेवॉल्यूशन’ का जश्न मना कर आराम ही कर रहे थे कि लद्दाख से एक बड़ी खबर सामने आयी। खबर यह है कि केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख में कुछ उत्साही युवाओं ने देश के सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय को आग के हवाले कर दिया। आन्दोलन अभी भी जारी है और केन्द्र सरकार ने यह तय कर लिया है कि वहां के आन्दोलन को शांत करने के लिए अब केन्द्रीय सुरक्षा बल एवं भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की टुकड़ियों को तैनात किया जाएगा। मतलब साफ है कि अब भारत का एक और शांत राज्य अशांति का दंश झेलने को अभिशप्त है। ऐसा क्यों हुआ, इसके लिए जिम्मेदार कौन है और इस अशांति का हेतु क्या है? ऐसे कई प्रश्न है, जो कूटनीतिक क्षितिज पर तैर रहे हैं और लगातार जवाब ढूँढ रहे हैं।
पहले तो लद्दाख की हालिया स्थिति क्या है, उस पर चर्चा करना ठीक रहेगा। मसलन, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने की मांग को लेकर बुधवार को हुआ विरोध प्रदर्शन एकाएक हिंसक हो गया और भीड़ ने लेह में प्रदेश भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में आग लगा दी। बता दें, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक बीते 15 दिनों से भूख हड़ताल पर थे और उन्हीं मुद्दों को लेकर यह प्रदर्शन था। उन्होंने समाचार माध्यमों को बताया कि लेह में आज हुई हिंसा के बाद उन्होंने अपना अनशन समाप्त कर दिया है। उन्होंने लोगों से शांति की अपील भी की है। मिल रही जानकारी में बताया गया है कि पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया। कुछ वीडियो में कई वाहन जलते हुए दिख रहे हैं और कुछ झड़पें भी हुई हैं। स्थानीय समाचार के अनुसार फिलहाल लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया है। इस मामले में केन्द्र सरकार ने सोनम वांगचुक पर हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है। हिंसा के बाद ही सोनम वांगचुक ने एक्स पर एक वीडियो संदेश जारी कर शांति की अपील की। उन्होंने कहा, ‘‘आज, हमारे भूख हड़ताल का 15वां दिन था। लेह सिटी में व्यापक हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाओं से मैं दुखी हूं। कई कार्यालयों और पुलिस की गाड़ियों को आग लगा दी गई। पांच सालों से (युवा) बेरोज़गार हैं। एक के बाद एक बहाना करके उन्हें नौकरियों से बाहर रखा जा रहा है और लद्दाख को भी संरक्षण नहीं दिया जा रहा है। इस हिंसा में तीन से पांच युवाओं की जान जाना दुखद है और हम उनके परिवारों के साथ शोक जताते हैं।’’ इसका मतलब साफ है कि इस हिंसक आन्दोलन में कुछ लोगों की जान भी गयी है। हालांकि प्रदर्शन के दौरान लोगों के मारे जाने के बारे में पुलिस प्रशासन ने कोई बयान जारी नहीं किया है।
इस क्षेत्र के लोगों की थोड़ी पीड़ा भी समझनी होगी। केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहले लद्दाख के लोग जम्मू-कश्मीर पब्लिक सर्विस कमीशन में गैज़ेटेड पदों के लिए अप्लाई कर सकते थे लेकिन अब ये सिलसिला बंद हो गया है। वर्ष 2019 से पहले नॉन गैज़ेटेड नौकरियों के लिए जम्मू-कश्मीर सर्विस सेलेक्शन बोर्ड भर्ती करता था और उस में लद्दाख के उम्मीदवार भी होते थे लेकिन अब ये नियुक्तियां कर्मचारी चयन आयोग की ओर से की जा रही हैं। यह आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो केंद्र सरकार के लिए भर्तियां करता है। अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने से लेकर आजतक लद्दाख में बड़े स्तर पर नौकरियों के लिए नॉन-गैज़ेटेड भर्ती अभियान नहीं चलाया गया है, जिसको लेकर लद्दाख के युवाओं में गुसा है। लद्दाख के लोग ये उम्मीद कर रहे थे कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ-साथ लद्दाख को विधानमंडल भी दिया जाएगा और छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा दी जाएगी। ऐसा भी संभव नहीं हो पाया है। लोगों का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी इन वादों से मुकर रही है और इस असंतोष ने प्रदर्शन का रूप ले लिया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों में स्वायत्त जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है, जिनके पास एक राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वतंत्रता होती है।
लद्दाख की घटना से केवल लेह-लद्दाख वाले क्षेत्र पर ही असर नहीं होगा। इसका असर पूरे पश्चिमोत्तर पहाड़ी राज्यों पर पड़ने की संभावना है। सोनम वांगचुक को उत्तराखंड में भी बड़ी स्वीकार्यता मिल रही है। लगभग एक वर्ष पहले उत्तराखंड एकता मंच के कुछ प्रतिनिधियों ने सोनम से जाकर मुलाकात की थी। इसी वर्ष यानी 2025 में बीते 21 मई को वांगचुक उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून आए थे। उस दौरान उन्होंने जो बातें कही वह अहम है और इससे केन्द्र सरकार को सतर्क हो जाना चाहिए। देहरादून के अपने भाषण में वांगचुक ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार ने जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाई थी और लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाया था, तब लोगों को लगा कि लद्दाख का विकास होगा। इस उम्मीद के साथ उन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया। लेकिन जब केंद्र शासित राज्य बनाने का जश्न खत्म हुआ, तब पता चला कि यह तो लद्दाख के लोगों के साथ धोखा है, क्योंकि अब इस क्षेत्र का कोई प्रतिनिधि लोकसभा या विधानसभा में नहीं होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह व्यवस्था संभवत इसलिए की गई ताकि कॉरपोरेट द्वारा संचालित परियोजनाएं बिना स्थानीय लोगों की सहमति के बनाई जा सकें। उनका कहना था कि उत्तराखंड सहित सभी पहाड़ी राज्यों में विकास कॉरपोरेट के दबाव में किया जा रहा है। लद्दाख की जनता छठी अनसूची की मांग कर रही है, ताकि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना कोई परियोजना लद्दाख में न बने।’’ इधर उत्तराखंड में भी हिमाचल प्रदेश की तरह पांचवी अनुसूची की मांग हो रही है। जिसके तहत पेसा कानून लागू होता है। यहां यह भी बता दें कि आज से लगभग 30 वर्ष पहले भाजपा के नेता पंडित मनोहर कांत ध्यानी पहाड़ी राज्यों का एक परिसंघ बनाने की योजना पर काम कर रहे थे। यहा योजना पंडित जी की खुद की नहीं थी। इस योजना के पीछे कई बड़ी शक्तियां काम कर रही थी। यहां भाजपा के रणनीतिकारों को भी पता होगा। खैर राज्य बनने के बाद यह मुद्दा गौन पड़ गया लेकिन याद रहे उत्तराखंड में फिलहाल बहुत कुछ हो रहा है। उन तमाम जानकारियों को सार्वजनिक करना उचित नहीं होगा लेकिन सतर्कता बेहद जरूरी है।
वांगचूक का संदेश साफ है कि हम कॉरपोरेट की लूट को अपने यहां खुली छूट नहीं देंगे। दूसरा वे अन्य पहाड़ी राज्यों को भी अपने आन्दोलन के साथ जोड़ने की योजना बना रहे हैं। उत्तराखंड ही नहीं हिमाचल प्रदेश में भी इस प्रकार की भावना बड़ी तेजी से बढ़ रही है। अगर पश्चिमोत्तर भारत के ये पहाड़ी राज्य अशांत हो गए तो यह भारत की उत्तरी सीमा के लिए खतरनाक साबित होगा। इधर नेपाल में लगातार उपद्रव जारी है। नेपाल के उपद्रव में किन शक्तियों का हाथ है यह तो बताना थोड़ा कठित है लेकिन नेपाल का अशांत होना भारत के हित में कतई नहीं है। भूटान को लेकर भी भारत पूर्ण रूप से आस्वस्थ नहीं हो सकता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में अस्थाई शांति है। कब यह क्षेत्र अशांत हो जाएगा कहा नहीं जा सकता है। इसलिए वांगचूक के कुछ जायज मांगों पर केन्द्र सरकरा को गंभीरता दिखानी होगी। साथ ही पहाड़ी राज्यों में उठ रहे असंतोष को यथाशीघ्र समाधान की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय राष्ट्रवाद के लिए यह खतरा पैदा कर सकता है।