नागरिकता अधिनियम (CAA) भारतीय मुसलमानों के प्रति भेदभाव नहीं रखता

नागरिकता अधिनियम (CAA) भारतीय मुसलमानों के प्रति भेदभाव नहीं रखता

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (CAA) 1955 में बने नागरिकता अधिनयम का संशोधित रूप है, जो तीन पड़ोसी देशों-अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में रहने वाले प्रताड़ित धार्मिक अल्पयंख्यक जैसे हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, पारसी और बौद्ध के लिए बना है। इसके अनुसार उपरोक्त किसी भी समुदाय से संबंध रखने वाला व्यक्ति जो 31 दिसंबर 2014 को या इससे पहले भारत में दाखिल हुआ और उसी समय से यहां निवास कर रहा है, उसे अवैध-प्रवासी नहीं माना जाएगा। यह नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (CAA) किसी भी तरह से भारत में मौजूद 18 करोड़ मुसलमानों को प्रभावित नहीं करेगा, जिन्हें अपने हिन्दू भाइयों की तरह बराबर के अधिकार मिले हुए हैं। इस अधिनियम के लागू होने के बाद किसी भी भारतीय नागरिक को अपनी पहचान साबित करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा जाएगा। 

इसके अलावा, यह अधिनियम स्वाभाविक नागरिक कानून न्यूटिलाइजेशन लाॅज को भी चुनौती नहीं देता। अतः मुसलमानों समेत किसी भी देश का अप्रवासी नागरिक भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहता है तो वह मौजूदा कानून के अंदर ऐसा कर सकता है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत संसार के किसी भी कोने से आने वाला मुसलमान स्वाभाविक नागरिकता कानून की सहायता से यहां की नागरिकता प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है। यह अधिनियम अवैध अप्रवासियों को भी बाहर नहीं निकालता। अतः मुसलमानों व छात्रों के एक वर्ग द्वारा जताए जाने वाला संदेह कि यह कानून मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ है, गलत है। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम सीएए मौजूदा कानूनों के अंदर उपरोक्त इस्लामी देशों में रहने वाले मुसलमान को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से भी कतई नहीं रोकता। इस कानून के अन्य फायदों में से इसका एक उद्देश्य यह भी है कि यह भविष्य में आने वाले संभावित अवैध प्रवासियों को यहां प्रवेश करने से रोकेगा, जो यहां आकर यहां के करदाताओं के पैसे पर जीते हैं। यह कानून इस देश और इसकी जनता को समय समय पर फायदा पहुंचाएगा। जहां यह कानून इन तीन देशों के प्रताड़ित-धार्मिक अल्पयंख्यकों को स्वाभाविक तरीके से एक विशेष दर्जा देता है, वहीं अन्य समुदायों को आश्रय लेने की प्रक्रिया से भी नहीं रोकता। कुछ मुस्लिम नेताओं ने इस कानून की इन तब्दीलियों को समझा है और विभिन्न मंचों से मुसलमानों को शांति व भाइचारा कायम करने की अपील करते हुए नागरिकता संशोधन अधिनियम की आड़ में अपना खेल खेलने वाली विभाजनकारी ताकतों से बचने की अपील की है। 

(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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