नयी दिल्ली/ कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वस्तु एवं सेवा कर पर दिए गए संबोधन पर तीनी प्रतिक्रिया व्यक्ति की है। कांग्रेस ने रविवार को पीएम मोदी पर जीएसटी 2.0 का पूरा श्रेय लेने का आरोप लगाया। कांग्रेस का कहना है कि साल जुलाई 2017 से पार्टी जीएसटी 2.0 की मांग कर रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने संशोधनों का पूरा श्रेय खुद को देने की कोशिश की।
अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने वर्तमान जीएसटी सुधार अपर्याप्त बताया। उन्होंने ‘‘एक्स’’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘आज प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए जीएसटी काउंसिल, जो एक संवैधानिक निकाय है, द्वारा किए गए संशोधनों का पूरा श्रेय खुद को देने की कोशिश की।’’
उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लंबे समय से यह तर्क देती आई है कि जीएसटी वास्तव में विकास दमनकारी कर है, इसमें कई समस्याएं हैं- उच्च संख्या में टैक्स स्लैब, आम उपभोग की वस्तुओं पर दंडात्मक कर दरें, बड़े पैमाने पर चोरी और गलत वर्गीकरण, महंगी औपचारिकताओं का बोझ और एक उल्टा शुल्क ढांचा (जहां आउटपुट पर इनपुट की तुलना में कम टैक्स लगता है)। हमने जुलाई 2017 से ही जीएसटी 2.0 की मांग की थी। यह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए हमारे न्याय पत्र में एक प्रमुख वादा भी था।
जयराम रमेश ने कहा कि वर्तमान जीएसटी सुधार अपर्याप्त प्रतीत होते हैं। लंबित मुद्दों में शामिल हैं- अर्थव्यवस्था में प्रमुख रोजगार सृजनकर्ता, एमएसएमई की व्यापक चिंताओं का सार्थक समाधान किया जाना चाहिए। बड़े प्रक्रियात्मक परिवर्तनों के अलावा, इसमें अंतरराज्यीय आपूर्ति पर लागू होने वाली सीमाओं को और बढ़ाना शामिल है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न सेक्टर से उभरे मुद्दों, जैसे वस्त्र, पर्यटन, निर्यातक, हस्तशिल्प और कृषि इनपुट, का समाधान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यों को राज्य-स्तरीय जीएसटी लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि बिजली, शराब, पेट्रोलियम और रियल एस्टेट को भी इसके दायरे में लाया जा सके। साथ ही उन्होंने कहा कि सहकारी संघवाद की सच्ची भावना में राज्यों की प्रमुख मांग यानी उनके राजस्व की पूरी सुरक्षा के लिए मुआवज़े को पांच और वर्षों तक बढ़ाया जाए। इस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है।
जयराम रमेश ने कहा कि यह देखना बाकी है कि आठ साल की देरी से आए इन जीएसटी संशोधनों का दौर वास्तव में निजी निवेश को बढ़ावा देगा या नहीं, जो उच्च जीडीपी वृद्धि के लिए आवश्यक है। इस बीच, पिछले पांच वर्षों में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा दोगुना होकर 100 अरब डॉलर पार कर चुका है। और भारतीय व्यापार भय और एकाधिकार के कारण पंगु हो रहा है, जिसके चलते कई व्यवसायी विदेश पलायन कर रहे हैं।