सुनील कुमार महला
संपूर्ण विश्व आज बारूद के ढ़ेर पर खड़ा हुआ है। इधर रूस-यूक्रेन युद्ध भयानक दौर में पहुंच गया है। आज हर तरफ हथियारों की होड़ लगी हुई है। जानकारी देना चाहूंगा कि चीन और पाकिस्तान लगातार हथियारों का जखीरा जुटाने में लगे हैं। पाकिस्तान की आर्थिक हालत खराब होने के बावजूद भी वह लगातार हथियार जुटाने में लगा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने कहा कि वर्ष 2018-22 के दौरान दुनिया के पांच सबसे बड़े हथियार आयातक भारत, सऊदी अरब, कतर, ऑस्ट्रेलिया और चीन थे। कुछ समय पहले स्वीडिश थिंक टैंक ने कहा था कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप से कीव को सैन्य सहायता लगातार मिल रही है। इससे यूक्रेन 2022 में हथियारों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया है। यह बहुत ही संवेदनशील है कि संपूर्ण विश्व में आज हथियारों को खरीदने, बेचने की होड़ सी लगी हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत भी हथियारों को खरीदने (आयातक) में टाप पर बना हुआ है। हालांकि साल वर्ष 2013-17 और 2018-22 के बीच इसके आयात में 11 प्रतिशत तक की कमी आई है। जानकारी देना चाहूंगा कि एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का सबसे अधिक हथियार खरीदने वाला देश है। जानकारी देना चाहूंगा कि हथियार बेचने के मामले में अमेरिका दुनिया भर में सबसे अव्वल बना हुआ है।रिपोर्ट के मुताबिक, पांच सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी शामिल हैं।
हाल ही में एक प्रतिष्ठित दैनिक के हवाले से यह खबर आई है कि एटमी हथियारों का जखीरा जुटाने में चीन सबसे आगे निकल गया है। सिपरी (स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) की ताजा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि चीन ने पिछले एक साल के दौरान अपने परमाणु खजाने में काफी हद तक बढ़ोतरी की है। रिपोर्ट में कहा गया चीन जिस हिसाब से अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें बना रहा है, उस हिसाब से आने वाले एक दशक के अंत तक वह अमेरिका और रूस जैसे शक्तिशाली देशों से से बराबरी कर सकता है। यहां पाठकों को यह जानकारी भी देता चलूं कि सिपरी एक स्वीडिश थिंक टैंक है जो कि परमाणु हथियारों पर लगातार अपनी नजर रखता है। वास्तव में, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) एक वैश्विक गैर-लाभकारी शोध संस्थान है। सिपरी संघर्षों को हल करने, हथियारों को नियंत्रित करने और निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह संस्थान सशस्त्र संघर्षों, सैन्य व्यय और हथियारों के व्यापार के संबंध में डेटा, विश्लेषण और सुझाव प्रदान करता है। आज संपूर्ण विश्व लगातार खतरनाक दौर की ओर बढ़ता चला जा रहा है।
यह संपूर्ण विश्व के लिए बहुत ही संवेदनशील और गंभीर है कि परमाणु संपन्न देश नाभिकीय हथियारों का जखीरा लगातार बढ़ाने में लगे हैं। यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि आखिर हथियारों की होड़ मानव सभ्यता को किस ओर ले जाएगी? क्या आज विश्व विनाश की ओर अग्रसर नहीं हो रहा है? आज रूस-यूक्रेन जंग के भू-राजनीतिक संबंध लगातार बदलते चले जा रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध से दोनों ही देशों में बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान पहुंचा है। बहुत सी जानें अब तक जा चुकी है और जंग अभी भी लगातार जारी है।दस्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है। रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अपने परमाणु खजाने को बढ़ा रहे हैं। केवल यहीं नहीं, दोनों ही देश परमाणु हथियार को ले जाने वाले नए सिस्टम को भी विकसित करने में लगे हैं।सिपरी रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में चीन के परमाणु खजाने में 350 हथियार थे जो कि साल 2023 में बढ़कर 410 हो गए हैं।
वास्तव में,पाकिस्तान का मुख्य फोकस भारत के परमाणु हथियारों को लेकर हैं। वहीं, भारत लंबी दूरी के हथियार डेवलप करने में लगा हुआ है, यह हथियार चीन के अंदर तक जाकर टारगेट को निशाना बनाने की काबिलियत रखता है। आज अमेरिका और रूस के पास सबसे ज्यादा हथियार उपलब्ध हैं। रिपोर्ट की माने तो परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका और रूस के पास मौजूद है। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया कि उनके संबंधित परमाणु आर्सेनल का आकार 2022 में अपेक्षाकृत स्थिर रहा है। हालांकि, फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के युद्ध के मद्देनजर दोनों देशों में परमाणु बलों के संबंध में पारदर्शिता में गिरावट दर्ज की गयी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चीन, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजराइल सहित नौ परमाणु-सशस्त्र देशों ने अपने परमाणु आर्सनल का आधुनिकीकरण जारी रखा है।
यह ठीक है कि विश्व के सभी देश अपनी सुरक्षा के मद्देनजर यह सब कर रहे हैं लेकिन आखिरकार यह होड़ हमें कहां और किस दिशा में ले जा रही है और इसका परिणाम क्या हो सकता है? जानकारी देना चाहूंगा कि आज भारत हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार देश बना हुआ है। बीते पांच सालों में दुनिया में जितने हथियार खरीदे गए, उनमें से 11 प्रतिशत अकेले भारत ने खरीदे हैं। सऊदी अरब (9.6 फीसदी) खरीद के साथ दूसरे स्थान पर है। वहीं इनके बाद कतर (6.4 प्रतिशत), ऑस्ट्रेलिया (4.7 प्रतिशत) और चीन (4.7 प्रतिशत) का नंबर आता है। सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है, जो दुनिया के कुल हथियार निर्यात का 40 फीसदी निर्यात करता है। अमेरिका के बाद रूस दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है, जो 16 फीसदी हथियार निर्यात करता है। इनके बाद फ्रांस (11 फीसदी), चीन (5.2 फीसदी) और जर्मनी (4.2 फीसदी) का नंबर आता है। साल 2013 के बाद से अमेरिकी के हथियार निर्यात में 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं रूस के हथियार निर्यात में 31 फीसदी की कमी हुई है।
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018-22 के दौरान दुनिया के आठवें सबसे बड़े हथियार आयातक पाकिस्तान द्वारा आयात में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें चीन इसका मुख्य आपूर्तिकर्ता रहा। बहरहाल, रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या परिणाम निकलेगा यह कहना तो बहुत ही मुश्किल है मगर इतना जरूर तय है कि दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी। इतना ही नहीं हथियारों की होड़ में कई देश अब अपनी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा रक्षा पर खर्च करेंगे। आज दुनिया के लगभग लगभग सभी देश अपनी सुरक्षा के लिए अपनी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा रक्षा पर खर्च करते रहे हैं। यही खर्च तब और बढ़ जाता है जब कोई देश या तो युद्ध में हो या युद्ध के मुहाने पर या ऐसी संभावनाओं से युक्त हो। युद्ध से कोई भी देश बहुत पीछे चला जाता है,यह बात सभी जानते हैं। जान माल का नुकसान तो होता ही है, पर्यावरण पर भी युद्ध से बहुत असर पड़ता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था 4.4 फीसद की गिरावट में थी। बावजूद इसके वर्ष 2021 में हथियारों की खरीद पर दुनिया में कुल दो हजार अरब डालर की राशि खर्च की गई। खास यह भी है कि साल 2010 से 2020 के बीच हथियारों पर सबसे ज्यादा खर्च एशियाई देशों का बढ़ा है। हालांकि इस होड़ में खाड़ी देश भी शामिल हैं।
एलाइड मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट यह कहती है कि साल 2020 में न्यूक्लियर मिसाइलों और बमों का बाजार 73 अरब डालर था। अनुमान है कि दुनिया युद्ध के खौफ के चलते वर्ष 2030 तक मिसाइलों और बमों के बाजार का आकार तुलनात्मक 73 फीसद बड़ा कर लेगी। बहरहाल,यह ठीक है कि किसी भी देश के लिए उसकी सुरक्षा अपने आप में बहुत मायने रखती है लेकिन सुरक्षा के बहाने क्या हथियारों को बढ़ाया जाने को उचित कहा जा सकता है ? तो इसका उत्तर यही है कि कदापि नहीं। आज दुनिया बहुत से गुटों में बंटी हुई है। आज हर ओर हिंसा तथा खून-खराबा है और यह दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी हुई है, यह मानव सभ्यता के लिए एक खतरनाक संकेत है। आज हर तरफ तबाही, खौफ का मंजर है। दुनिया की शक्ति कहे जाने वाले देश जिस प्रकार इस समय परस्पर भिड़ने, हथियारों की होड़ बढ़ाने की तैयारियों में लगातार लगे हुए हैं उससे लगता है कि दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की ओर तेजी से बढ़ रही है। आज अमन की रोशनी जैसे धीरे धीरे मंद पड़ती जा रही है। बारूद, युद्ध, हथियारों की होड़ में आशाएं, भावनाएं, खुशियां सब खत्म हो जाती हैं। युद्ध का आगाज करने वाले देशों और हथियारों की होड़ में लगातार लगे देशों को ये भी सोचना चाहिए कि लाशों को बिछाकर मिली खुशियों से कुछ हासिल नहीं होता है। असमय, असंख्य जिंदगियों को मौत के आगोश में सुला देने से कभी भी किसी देश की उन्नति और प्रगति नहीं होती है। शक्तिशाली होने का ये मतलब कतई नहीं होता है कि कमजोर के अस्तित्व को ही नकार दिया जाए।
मानवता की रक्षा करनी है तो हथियारों की होड़ और युद्ध को विराम देना होगा। आज जरूरत इस बात की है कि हर तरफ शांति, संयम और धैर्य का दीप जले, अमन-चैन की बात हो, द्वेष, वैमनस्यता खत्म हो, बुद्ध की राह हो, युद्ध की नहीं। हमारा ध्यान इस बात की ओर होना चाहिए कि मानव जाति का व सभी जीवों का कल्याण हो। मानवहीनता की पराकाष्ठा कभी भी किसी रूप में नहीं होनी चाहिए। हथियारों की होड़ से पहले विश्व को हिरोशिमा और नागासाकी को जरूर देखना चाहिए। अपनी आने वाली पीढ़ियों की ओर हमें देखना चाहिए कि हम हमारी भावी पीढ़ी को बारूद का ढ़ेर सौंपकर क्या कभी भी उन्नति, प्रगति के सोपानों को छू सकते हैं,आगे बढ़ सकते हैं? अंत में बस इतना ही कहूंगा कि – ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख्वाब तो अच्छा हो।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
(लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख का कोई लेनादेना नहीं है।)