वक्फ बोर्ड की असीम ताकत व आंतरिक भ्रष्टाचार भारत के पंथनिरपेक्ष छवि के लिए खतरनाक 

वक्फ बोर्ड की असीम ताकत व आंतरिक भ्रष्टाचार भारत के पंथनिरपेक्ष छवि के लिए खतरनाक 

वैसे तो वक्फ बोर्ड विगत लंबे समय से विवादों की सुर्खियां बटोरता रहा है लेकिन विगत कुछ वर्षों में असीम ताकत व भ्रष्ट आचरण ने इसे और ज्यादा विवादित बना दिया है। इसके कारण अब यह कई राज्य सरकारों के लिए ही नहीं केन्द्र सरकार के लिए भी चुनौती बन गया है। पिछले कुछ महीनों में कर्नाटक के अंदर, वक्फ भूमि को लेकर विवाद ने वक्फ अधिनियम के दायरे में वक्फ बोर्डों को सौंपी गई शक्तियों पर बहस छेड़ दी है। आरोपों में भ्रष्टाचार, संरक्षित स्थलों पर अतिक्रमण और गैर-मुस्लिम समुदायों को हाशिए पर धकेलने का खतरा शामिल है। इन उदाहरणों ने वक्फ अधिनियम में सुधार को बल प्रदान किया है। आलोचकों का तर्क है कि वक्फ बोर्डों के अनियंत्रित अधिकार और शक्ति, जैसा कि वर्तमान में मान्यता प्राप्त है, पारदर्शिता, निष्पक्षता और अन्य समुदायों के अधिकारों के लिए खतरा पैदा कर रहा है। 

पूरे देश में इसके कई उदाहरण हैं लेकिन हाल में कर्नाटक का मामला इन चिंताओं और बढ़ा दिया है। कर्नाटक की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि वक्फ को मिले अधिकार देश की बहुलतावादी संस्कृति के खतरा है। वक्फ बोर्डों को दी गई व्यापक शक्तियों के परिणामस्वरूप संदिग्ध भूमि दावे, व्यापक सांप्रदायिक तनाव को जन्म दे रहा है। इसके कारण गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच नए प्रकार का डर पैदा हो रहा है। ऐसे मामले केवल कर्नाटक के ही नहीं हैं, देश के अन्य राज्यों में भी इस प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं, जो वक्फ के अधिकार को लेकर बहुसंख्यकों के साथ ही साथ अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के मन में भी डर पैदा कर रहा है। चूंकि राज्य इन विवादों से जूझ रहा है, इसलिए वक्फ के अधिकारों में संशोधन की जरूरत स्वाभाविक है। 

वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत गठित वक्फ बोर्ड, इस्लामी कानून के उदाहरणों के अनुसार धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए दान की गई संपत्तियों के प्रबंधन और देखरेख के लिए जिम्मेदार हैं। वक्फ संपत्तियों के रूप में जानी जाने वाली इन संपत्तियों में अक्सर मस्जिद, कब्रिस्तान, दरगाह और शैक्षणिक संस्थान शामिल होते हैं। यह अधिनियम वक्फ बोर्डों को व्यापक शक्तियां देता है, जिसमें भूमि विवादों पर निर्णय लेने, वक्फ संपत्तियों को पट्टे पर देने और अतिक्रमण के लिए दंड लागू करने का अधिकार शामिल है। वक्फ न्यायाधिकरण ऐसे निर्णय पारित करते हैं जिन्हें अक्सर सिविल अदालत के फैसलों से ऊपर होता है। इससे न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश सीमित हो जाती है। हालांकि इस ढांचे का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की रक्षा करना था, लेकिन इसकी जवाबदेही की कमी और दुरुपयोग की संभावना के कारण आलोचना हो रही है। 

कर्नाटक का मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि अगर इन शक्तियों पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो इसके कारण कई ऐसे विवादास्पद दावें जन्म लेंगे जो अंतर-सामुदायिक संघर्ष को बढ़ावा देगा। इससे देश का बहुसांस्कृतिक स्वाभाव खंडित होगा। कर्नाटक में विवाद इस आरोप पर केंद्रित है कि राज्य वक्फ बोर्ड ने मंदिरों और अन्य सार्वजनिक संपत्तियों सहित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्थलों पर स्वामित्व का दावा किया है। इन दावों से स्थानीय समुदायों में आक्रोश है, जो इसे अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत मानते रहे हैं। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि बोर्ड ने पर्याप्त सबूत या पारदर्शिता के बिना स्वामित्व का दावा करके उन्हें प्राप्त संवैधानिक अधिकार अतिक्रमण किया है। माना जाता है कि इस तरह के विवाद न केवल समुदायों के बीच तनाव पैदा करते हैं, बल्कि वक्फ बोर्डों के प्रशासन और निगरानी पर भी सवाल उठाते हैं।

आलोचकों का तर्क है कि बोर्ड की व्यापक शक्ति उसे मानक कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करने की अनुमति देती है, जिससे वह उचित प्रक्रिया के बिना भूमि पर मनमाने दावे करने में सक्षम हो जाता है। कर्नाटक विवाद वक्फ बोर्डों के भीतर भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी के बारे में व्यापक चिंताओं को रेखांकित करता है। पक्षपात, कुप्रबंधन और वक्फ संपत्तियों को अवैध रूप से पट्टे पर देने के आरोप लंबे समय से इनपर लगते रहे हैं। बड़ी मात्रा में भूमि और परिसंपत्तियों पर केंद्रीकृत नियंत्रण अक्सर शोषण के अवसर पैदा करता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वक्फ संपत्ति प्रबंधन में अनियमितताओं के कारण राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण राजस्व की हानि हो रही है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में वक्फ संपत्तियों पर अनधिकृत पट्टे और अतिक्रमण के कई मामले सामने आए हैं। इस तरह की प्रथाएं न केवल वक्फ के उद्देश्य – धार्मिक और धर्मार्थ जरूरतों को पूरा करने – को कमजोर करती हैं, बल्कि संस्था में जनता के विश्वास को भी कम करती हैं। गैर-मुस्लिम समुदायों के लिए, पूर्वाग्रह और भ्रष्टाचार की धारणा आक्रोश और सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ाती है।

अभी हाल में मोदी सरकार द्वारा संसद में पेश किया गया वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024, वक्फ बोर्डों की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए नहीं बल्कि बोर्ड में हो रहे भ्रष्टाचार को कम करने और धर्मनिर्पेक्ष संविधान की सुरक्षा का एक प्रयास मात्र है। इससे वक्फ की संपत्ति का उपयोग सार्वजनिक के लिए सुलभ हो पाएगा। साथ ही दूसरे समुदायों के प्रति जो वक्फ का दृष्टकोण है उसमें भी बदलाव आएगा। हालांकि कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि मोदी सरकार वक्फ बोर्ड पर संशोधन पारित कर देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है लेकिन इस तर्क का कोई मलतब नहीं है। जब वक्फ को अधिकार दिया जा रहा था उस समय भी इसी प्रकार के तर्क सामने आए थे लेकिन वह तर्क स्थापित नहीं हो पाया। यदि वक्फ के वर्तमान ताकत से किसी अन्य समुदाय को डर हो रहा है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। बता दें कि संशोधन के मुख्य प्रावधानों में शासन को वक्फ न्यायाधिकरणों से राज्य सरकारों को स्थानांतरित करना, भूमि दावों में पारदर्शिता बढ़ाना और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करना शामिल है। 

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने इस बात पर जोर दिया है कि संशोधनों का उद्देश्य वक्फ अधिकारों को कमजोर करना नहीं है, बल्कि मौजूदा ढांचे की खामियों को सुधारना है। उन्होंने कहा, मौजूदा कानून में खामियां हैं जो दुरुपयोग और कुप्रबंधन की अनुमति देती हैं। ये संशोधन अनुशासन लाएंगे और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करेंगे।् विधेयक के समर्थकों का तर्क है कि भ्रष्टाचार को रोकने और सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह एक आवश्यक कदम है। अधिक निगरानी और जवाबदेही का परिचय देकर, संशोधनों का उद्देश्य एक अधिक न्यायसंगत प्रणाली बनाना है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के हितों को समान रूप से संतुलित करती है। अपने घोषित उद्देश्यों के बावजूद, वक्फ (संशोधन) विधेयक को विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम नेताओं की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। कई लोग प्रस्तावित बदलावों को वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को कमजोर करने और मुस्लिम समुदाय के मामलों में हस्तक्षेप के प्रयास के रूप में देखते हैं। इसे सरकार के मंत्री ने खारिज कर दिया है। 

कर्नाटक मामले को वक्फ सुधार की तत्काल आवश्यकता के दायरे से देखा जा सकता है। यह धार्मिक स्वायत्तता का सम्मान करते हुए जवाबदेही को संतुलित करेगा। हालाँकि, वक्फ (संशोधन) विधेयक कई चिंताओं को जन्म तो दे रहा है लेकिन इसमें बदलाव जरूरी भी है। इसे अनियंत्रित नहीं रहने दिया जा सकता है। इससे देश की अखंडता को भी खतरा पैदा हो सकता है। 

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