केरल उच्च न्यायालय का POCSO के मामलों में ‘रगड़-स्पर्श-स्खलन’ पर फैसला बेहद महत्वपूर्ण

केरल उच्च न्यायालय का POCSO के मामलों में ‘रगड़-स्पर्श-स्खलन’ पर फैसला बेहद महत्वपूर्ण

केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में पीओसीएसओ एक्ट के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पीड़िता के बाहरी जननांग (लेबिया मेजोरा या वल्वा) के साथ मामूली शारीरिक संपर्क भी यौन हमला माना जाएगा। हाई कोर्ट ने कहा कि यह क्रिया यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 3 के तहत प्रवेशात्मक यौन हमले का अपराध होगा। इसके साथ ही आरोपित की सजा को बरकरार रखा।

जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जोबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने इस परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा, “स्त्री के बाहरी जननांग लेबिया मेजोरा या वल्वा में पुरुष जननांग का प्रवेश, चाहे वो आंशिक हो या मामूली हो, पीओसीएसओ अधिनियम के तहत प्रवेशात्मक यौन हमले का अपराध होगा।‘ हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस दौरान चाहे वीर्य का उत्सर्जन हुआ हो या नहीं, यह मायने नहीं रखता।

याचिका दायर करने वाले आरोपित का तर्क था कि अभियोजन पक्ष आईपीसी की धारा 376 में बलात्कार को साबित करने के लिए बताए गए जरूरी घटक लिंग के प्रवेश को साबित नहीं कर पाया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने पीड़िता की मेडकिल रिपोर्ट का भी हवाला दिया और कहा कि उसकी हाइमन बरकरार थी। इसलिए इसे बलात्कार की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज करते कहा कि अगर हाइमन नहीं टूटा, इसका मतलब ये नहीं है कि बलात्कार या प्रवेशात्मक यौन हमले का अपराध नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा कि साल 2013 में संशोधित आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) में प्रवेशात्मक हमला सिर्फ योनि में पुरुष जननांग के पूरी तरह प्रवेश तक सीमित नहीं है। इसमें बाहरी महिला जननांग और उसके आसपास का प्रवेश भी शामिल है।

कोर्ट ने कहा कि पीओसीएसओ एक्ट में प्रवेशात्मक यौन हमले की परिभाषा में ‘योनि’ को साफ तौर परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए यहाँ आईपीसी की परिभाषा को लागू किया जा सकता है जिसमें आंशिक प्रवेश भी प्रवेशात्मक यौन हमला माना जाएगा। कोर्ट ने योनि में पूर्ण लिंग के प्रवेश को ही अपराध बनाने की आवश्यकता के तर्क को नकार दिया। इस तरह हाई कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए आजीवन कारावास की सजा को 25 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।

दरअसल, केरल के कासरगोड में अपीलकर्ता ने 4 साल की बच्ची का अपने घर पर बार-बार बलात्कार और यौन उत्पीड़न किया था। अपीलकर्ता पीड़िता का पड़ोसी है। कुछ समय के बाद बच्ची ने अपनी माँ से बताया कि उसके जननांग में दर्द हो रहा है। उसकी माँ उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई तो डॉक्टर को यौन शोषण का संदेह हुआ और उसने पुलिस को इसकी जानकारी दी।

इसके बाद पुलिस ने मेडिकल के आधार पर एससी/एसटी एक्ट और पीओसीएसओ एक्ट सहित रेप एवं आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज कर लिया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान कासरगोड की निचली अदालत ने आरोपित को रेप का दोषी पाया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही उस पर 25,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया। इस फैसले के खिलाफ आरोपित केरल हाई कोर्ट गया था।

केरल हाई कोर्ट ने इस केस के तमाम पहलुओं एवं साक्ष्यों को देखने-सुनने और विचार करने के बाद आरोपित की अपील याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही उसके आजीवन कारावास की सजा को 25 साल की कठोर कारावास में बदल दिया। न्यायालय ने कहा कि पीड़िता द्वारा दोषी को जानबूझकर फँसाने के संकेत नहीं हैं क्योंकि दोनों के बीच किसी तरह की दुश्मनी नहीं है।

ऐसे ही एक मामले में केरल हाई कोर्ट ने 4 अगस्त 2021 को कहा था कि आरोपित को महिला के किसी भी अंग के साथ छेड़छाड़ करने से यौन संतुष्टि मिलती है तो ये भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार माना जाएगा चाहे उसने अपने लिंग को महिला की योनि में प्रवेश कराया हो या नहीं कराया हो। दरअसल, बच्ची से रेप के आरोपित ने याचिका दायर कर कोर्ट से यह जाँचने की माँग की थी कि बच्ची की जाँघों के बीच लिंग रगड़ना बलात्कार है या नहीं।

कोर्ट ने कहा था कि आईपीसी की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा में पीड़िता की जाँघों के बीच जननांग में प्रवेश कराना यौन हमला है। हाई कोर्ट कहा था, “आईपीसी की धारा 375 में योनि, मूत्रमार्ग, गुदा और मुँह (मानव शरीर में ज्ञात छेद) में लिंग के प्रवेश के अलावा यौन संतुष्टि के लिए अगर आरोपित कल्पना करके पीड़िता के शरीर के अन्य अंगों को ऐसा आकार दे कि उसे लिंग के घर्षण से यौन सुख मिले और वीर्य स्खलन हो तो यह बलात्कार की श्रेणी में आएगा।‘

मेघालय हाई कोर्ट ने मार्च 2022 में एक नाबालिग से रेप के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि पीड़िता की अंडरवियर पर लिंग का स्पर्श भी बलात्कार माना जाएगा। अदालत ने कहा था कि अगर यह मान भी लिया जाए कि आरोपित ने चड्डी पहने हुए ही पीड़िता की योनि या फिर उसके मूत्रमार्ग में जबरन अपना लिंग प्रवेश कराने की कोशिश की तो भी यह आईपीसी की धारा 375 (ठ) के तहत रेप होगा।

कोर्ट ने कहा था, “23 सितंबर 2006 की घटना में एक सप्ताह बाद 10 साल की पीड़िता का मेडिकल टेस्ट किया गया तो उसकी योनि कोमल और लाल पाई गई थी। उसका हाइमन (कौमार्य झिल्ली) टूटा हुआ था। जाँच करने वाले डॉक्टर का भी कहना था कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। पीड़िता ने भी कहा था कि आरोपित ने उसकी चड्डी को नीचे खींचा था।‘

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