पंकज सिंहा
खेती-किसानी को लेकर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान केन्द्र सरकार बेहद संवेदनशील दिख रही है। अतीत की कई घोषणाओं और योजनाओं के कृयान्वयन के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि उपज के सुचारू परिवहन के लिए किसान रेल स्कीम योजना प्रारंभ करने की घोषणा की है। यह योजना प्रधानमंत्री मोदी की अति-महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी संकल्पना है, जिसके माध्यम से, जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों की आवाजाही के लिए विशेष रेलगाड़ियां चलायी जाएगी। यह सरकार की किसानों के प्रति प्रतिबद्धता व विश्वसनीयता का एक और उदाहरण है। किसान रेल की सफलता इसी से आंकी जा सकती है कि अभी तक करीब पौने दो सौ मार्गों पर इसके लगभग 2500 फेरे देशभर में लगाए जा चुके हैं। इससे किसानों को अपने उत्पाद मार्केट तक ले जाने में मदद मिल रही है।
किसानों के सशक्तिकरण और उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी सरकार ने विगत आठ वर्षों में जितने कार्य किए हैं, उतने पहले कभी नहीं हुए। यह केवल दावा नहीं इसका प्रभाव जमीन पर दिख रहा है। यही कारण है कि बीजेपी वर्ष 2014 के मुकाबले 2019 में और बड़ी जीत के साथ सत्ता में लौट पायी। इस बड़ी जीत में पीएम मोदी के नेतृत्व में लाई गई कल्याणकारी योजनाओं ने अहम भूमिका निभाई है। इन कल्याणकारी योजनाओं में किसानों की हिस्सेदारी अधिक बतायी जा रही है।
आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार ने विगत 9 वर्षों में खेती के लिए बड़ी राशि खर्च की है। यही कारण है कि देश ने खाद्यान्न उत्पादन में अपना एक कीर्तिमान स्थापित किया है। कोविड और रूस-यूक्रेन गतिरोध के बाद दुनिया भर में आए खाद्यान संकट में भारत ने बेहतर भूमिका निभाई है। भारत दुनिया के कई प्रभावशाली देशों को खाद्यान्न उपलब्ध करा रहा है। यह परिस्थिति मोदी सरकार के द्वारा किसानों के प्रति दिखाए गए सकारात्मक तेबर से ही संभव हो पाया है।
किसानों के सशक्तिकरण और उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी सरकार ने 9 वर्षों में जितने कार्य किए हैं, उतने पहले कभी नहीं हुए। मोदी सरकार की कृषि हितैषी योजनाएं आज किसानों की असली शक्ति बनी है। सचमुच, यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना महामारी की चुनौतियों के बीच भारत ने कई जरूरतमंद देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति की है. अब फिर रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के समय भी हमारा भारत एक जरूरतमंद देशों के लिए खाद्यान्न आपूर्ति का प्रमुख मददगार देश बनकर उभरा है. यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि न केवल देश में खाद्यान्न का उत्पादन लगातार रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है, बल्कि कृषि का निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है, जो लगभग 4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा पिछले 9 साल में किए गए चैतरफा प्रयासों के परिणाम देश के समक्ष दिखाई दे रहे हैं. मोदी सरकार के आठ साल (9 ल्मंते व िडवकप ळवअमतदउमदज) के कार्यों ने खेती की दिशा और दशा बदलने का काम किया है।
सरकार की प्रतिबद्धता एवं जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय द्वारा शुरू की गई योजनाओं एवं कार्यक्रमों से देश के किसानों की दिशा व दशा बदल रही है। किसानों का जीवन स्तर बेहतर हो रहा है और दिल्ली से कृषि सहायता बैंक खातों के माध्यम से सीधे उन तक पूरी पारदर्शिता से पहुंच रही है। विभिन्न क्षेत्रों में किसानों की आय बढ़ी है, कृषि को व्यवसाय के रूप में स्वीकार करने के प्रति उनकी सोच को नई दिशा मिली है। सरकार की योजनाएं, कार्यक्रम एवं अन्य सारी गतिविधियां सदैव इसी प्रयास में रही हैं कि किसान पूरी इच्छाशक्ति से कृषि उद्यमी बनें।
पिछले 9 वर्षों में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का बजट आवंटन लगातार बढ़ा है। वर्तमान वित्त वर्ष में कृषि बजट (।हतपबनसजनतम ठनकहमज) का आवंटन लगभग 1.32 लाख करोड़ रुपये है। पिछले 9 वर्षों में कृषि संबंधी बजट आवंटन में लगभग 6 गुना तक की वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र में हो रही विकास यात्रा यहीं पर समाप्त नहीं होती है, आवंटन के साथ-साथ रिकॉर्ड खाद्यान्न एवं बागवानी फसलों का भी रिकॉर्ड उत्पादन सरकार के बजट आवंटन का सही दिशा में खर्च होने का प्रमाण है। वर्ष 2021-22 में तृतीय अग्रिम अनुमान के अनुसार, लगभग 315 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन अनुमानित है, वहीं बागवानी क्षेत्र का उत्पादन भी 334 मिलियन टन अनुमानित है, जो अब तक का सर्वाधिक है।
सरकार ने किसानों के जीविकोपार्जन के साथ-साथ उनकी बेहतर आय को ध्यान में रखते हुए खरीफ, रबी व अन्य वाणिज्यिक फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार वृद्धि की है। इसी का परिणाम रहा है कि वर्ष 2013-14 में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य जो 1310 रुपये प्रति क्विंटल था, वह 2021-22 में बढ़कर रु. 1940 प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। इसी प्रकार, वर्ष 2013-14 में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1400 रु. प्रति क्विंटल था, जो अब 2015 रु. प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है।
रबी मार्केटिंग सीजन 2021-22 के दौरान सरकार द्वारा एमएसपी पर गेहूं की 433.44 लाख मीट्रिक टन खरीद की गई, जो अब तक की सर्वाधिक है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में गेहूं की अब तक का सबसे अधिक खरीद हुई है। आंकड़े अपनी कहानी यही नहीं समाप्त करते हैं, वो यह दर्शाते हैं कि रबी विपणन सीजन के दौरान 49.19 लाख गेहूं उत्पादक किसानों को एमएसपी पर 85604.40 करोड़ रुपये का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में किया गया है।
सरकार की, किसानों के प्रति प्रतिबद्धता की सीरीज में, प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत लगभग साढ़े 11 करोड़ किसानों को 1.82 लाख करोड़ रु. (तीन समान किस्तों में प्रतिवर्ष कुल 6 हजार रु.) भी सीधे उनके बैंक खातों में जमा किए गए हैं। यह योजना केंद्र सरकार की सबसे व्यापक व महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक है और किसानों के प्रति निष्ठा की प्रतीक भी, जिसमें कहीं-कोई बिचैलिया नहीं है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिट्टी की सेहत के प्रति सरकार की गंभीर सोच को दर्शाता है। यह योजना मृदा स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए किसानों को बेहतर उपज दिलाने के लिए प्रभावी एवं बेहतर कृषि उत्पादन परिणाम के प्रति सजग कर रही है। सरकार ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में, इस वर्ष के आम बजट में जैविक खेती के साथ-साथ प्राकृतिक खेती के लिए विशेष प्रावधान किया है।
इनके अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने के साथ ही प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि, संसाधनों व पर्यावरण के संरक्षण का उद्देश्य निहित है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के दोनों किनारों के 5 किलोमीटर के क्षेत्र को प्राकृतिक खेती के रूप में लाने के लिए एक वृहद कार्ययोजना के माध्यम से काम होगा।
प्राकृतिक खेती (छंजनतंस थ्ंतउपदह) को बढ़ावा देने के लिए सरकार की सोच यही नहीं रुकती है। सरकार ने, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (प्ब्।त्) से प्राकृतिक खेती से संबंधित सामग्री स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करने के लिए एक समिति का गठन कराया है और मंत्रालय एवं आईसीएआर द्वारा रसायनमुक्त प्राकृतिक खेती को समर्थन किया जा रहा है। प्राकृतिक खेती की सम-सामयिकता को ध्यान में रखते हुए आईसीएआर ने प्राकृतिक खेती से संबंधित अनुसंधान एवं शोधपरक विषयों को सम्मिलित करने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों को विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं। प्राकृतिक खेती किसानों की आय बढ़ाने में सक्षम है और बेहतर जीवनयापन के प्रति केंद्र सरकार की रचनात्मक सोच की प्रतीक है।
यह केंद्र सरकार का किसानों के प्रति समर्पण ही है कि उनकी सुविधाएं बढ़ाने के साथ ही बेहतर आय के लिए एक लाख करोड़ रुपये के एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की योजना शुरू की गई है। जिसके जरिए उनके लिए गोदाम, कस्टम हायरिंग सेंटर, फूड प्रोसेसिंग यूनिट और कोल्ड स्टोरेज जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
इसी कड़ी में सरकार, आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन को भी विशेष बढ़ावा दे रही है। इसी तरह राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और कृषि यंत्रीकरण जैसी योजनाओं से सरकार किसानों को अधिकतम लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है. कृषि मंत्रालय के इस साल के बजट में कृषि स्टार्ट-अप और कृषि उद्यमिता पर विशेष जोर दिया गया है। इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है, जिसके बेहतर परिणाम भी दिखने लगे हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना द्वारा प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। ज्यादा किसानों को इसमें शामिल करवाने के लिए मेरी पालिसी, मेरे हाथ अभियान भी चलाया गया। पीएम फसल बीमा स्कीम के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसानों ने प्रीमियम के लगभग 21 हजार करोड़ रुपये जमा कराए, जबकि उन्हें फसलों के नुकसान के बदले क्लेम के रूप में 1.15 लाख करोड़ रुपये मिले हैं।
भारत ऋषि और कृषि का देश है। भारत की पूरी संस्कृति कृषि पर आधारित है। खेती-किसानी मजबूत होगी तो देश की संस्कृति भी मजबूत होगी और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। मोदी सरकार ने खेती के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी ध्यान केन्द्रित किया है। इसलिए गांव की आधारभूत संरचना पर तसल्ली से ध्यान दिया है। इस दिशा में परिवर्तन दिख रहा है। अब तक शहरों को केन्द्र मान कर विकास की योजनाएं बनायी जाती थी लेकिन मोदी युग में गांव को विकास का केन्द्र बनाया गया है। इस लिहाज से किसान और ग्रामीण हस्तशिप्ल पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
(लेखक झारखंड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के सह प्रशिक्षण प्रमुख हैं। आपने लंबे समय तक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया है। लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)