कुमारी कंदम महाद्वीप का रहस्य, जो समुद्र में समा गया

कुमारी कंदम महाद्वीप का रहस्य, जो समुद्र में समा गया

गौतम चौधरी

यह पृथ्वी करोड़ों वर्ष पुरानी है। भौगोलिक चिंतन के आधार पर यदि व्याख्या करें तो कई करोड़ वर्ष की होगी। भूगोविदों की मानें तो पृथ्वी का निर्माण सूर्य से हुआ है। पहले हमारी पृथ्वी सूर्य की तरह ही तरल थी लेकिन कालांतर में ठंडी हो गयी। जिस प्रकर रसदार फल का सतह सुख जाने के बाद अनगढ़ और उबर-खाबर हो जाता है उसी प्रकार हमारी पृथ्वी का भी स्वरूप वैसा ही हो गया। थोड़े समय के बाद पृथ्वी के सतह के उपर वातावरण का निर्माण हुआ और लंबे समय तक बारिश होती रही। पहले तो करोड़ों वर्ष तक अम्लीय बर्षा हुई। इसके बाद जलवृष्टि होती रही। जलवृष्टि के कारण खाई वाले स्थान पर जल का जमाव हुआ और वहां से श्रृष्टि प्रारंभ हुआ। हमारे भूगोलवेत्ता, पृथ्वी पर कैलिडोनियन, हरसीनियन, अल्पाइन और टर्शियरी नामक चार भूसंचलन का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इसके बाद कई स्कूल के भूगोल चिंतक कई सिद्धांत लेकर आए। उसमें से एक सिद्धांत प्लेट विवर्तनिकी का भी सिद्धांत है। इस सिद्धांत से ही जुड़ा एक सिद्धांत महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धांत है। उसी क्रम में यह पता चल रहा है कि भारतीय प्रायद्वीप पहले अफ्रीकी भूभाग का अंग था लेकिन बाद में यह उससे टुट कर उत्तर की दिशा की ओर विस्थापित हो गया। वह भारतीय भूभाग अंगारा लैंड में जाकर टकराया और वहां जो छिछला समुद्र था वह हिमालय पर्वत के रूप में परिवर्तित हो गया। इस सिद्धांत के मध्य कुछ भूगोलविदों ने अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और भारत के मध्य एक महाद्वीप होने का प्रमाण प्रस्तुत किया है। विद्वानों ने उसका नाम कुमारी कंदम रखा है। 

इस नवीन भौगोलिक चिंतन के स्थापित होते ही जो लोग यह मानते हैं कि सिन्धु घाटी की सभ्यता से भारत के इतिहास की शुरुआत होती है, उनकी सोच पुरानी पड़ जाएगी। बता दें कि ऐसे लोग गुजरात समुद्र के भीतर द्वारिका नगरी के मिलने के साक्ष्य को नकार नहीं सकते हैं। अब उन्हें कुमारी कंदम के अस्तित्व को भी मान्यता प्रदान करना होगा। आज से 100 या 50 साल पहले इतिहास को जानने के स्रोत कम थे। उस काल में लिखी गई इतिहास की किताबों को पढ़कर ही अब इतिहास को नहीं जाना जा सकता, हालांकि वे किताबें हमारे ज्ञान का आधार जरूर हैं लेकिन अंतिम सत्य नहीं है। 

वैज्ञानिक कहते हैं कि गोंडवाना नामक एक विशाल द्वीप के टूटने से भारत, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और अंटार्कटिका का निर्माण हुआ। उस काल में भारत कैसा था, यह शोध का विषय हो सकता है लेकिन हम बात कर रहे हैं आज से 15,000 वर्ष पूर्व के भारत की। 19वीं सदी में अमेरिकी और यूरोपीय विद्वानों के एक वर्ग ने अफ्रीका, भारत और मेडागास्कर के बीच जियोलॉजिकल और अन्य समानताएं समझाने के लिए जलमग्न हो चुके एक महाद्वीप का अनुमान लगाया और उसे लेमुरिया नाम दिया। 

भूगोलविदों की मानें तो जिस तरह वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी पर कई विनाशकारी बदलाव होने की आशंका जताई जा रही हैं, उसी तरह प्राचीनकाल में एक बार ऐसा हो चुका है, जिसके कारण लेमुरिया और मु नाम के 2 महाद्वीप जलमग्न हो गए। हालांकि वैज्ञानिक इस पर अभी शोध ही कर रहे हैं किंतु विश्व के खोजकर्ताओं का दावा है कि इन दोनों महाद्वीपों पर सभ्यता काफी विकसित थी। कुछ खोजकर्ताओं, जिनमें प्रमुख हैं, फिलिप स्कोल्टर, का कहना है कि मनुष्य की उत्पत्ति इन्हीं महाद्वीपों पर हुई थी। ये दोनों महाद्वीप किसी भू-वैज्ञानिक हलचल की वजह से समुद्र के भीतर समा गए।

जब से पृथ्वी बनी है, तब से विनाश के कई चरण पूरे हुए हैं तथा कई प्रजातियां विलुप्त हुईं तथा नई प्रजातियां आई हैं। विश्व की सभी जातियों एवं धर्मों में प्राचीन महाप्रलय का उल्लेख मिलता है। केवल धर्म ही नहीं, भू-वैज्ञानिक साक्ष्य भी पृथ्वी पर कई प्राचीन विनाशकारी हलचलों को दर्शाते हैं। चाहे वे भूकंप के रूप में हों या ज्वालामुखी के रूप में या फिर ग्लोबल वार्मिंग या हिमयुग के रूप में हों। आदिम जनजातियों में भी जल महाप्रलय का उल्लेख कहानियों के रूप में हुआ है। इसी क्रम में इस महाद्वीप का उल्लेख भी प्राचीन तमिल साहित्य में देखने को मिलता है। 

तमिल इतिहासकारों के अनुसार इस द्वीप का नाम कुमारी कंदम था। कुमारी कंदम आज के भारत के दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर में एक खो चुकी तमिल सभ्यता की प्राचीनता को दर्शाता है। इसे कुमारी नाडु के नाम से भी जाना जाता है। तमिल शोधकर्ताओं और विद्वानों के एक वर्ग ने तमिल और संस्कृत साहित्य के आधार पर समुद्र में खो चुकी उस भूमि को पांडियन महापुरुषों के साथ जोड़ा है। तमिल पुनर्जागरणवादियों के अनुसार कुमारी कंदम के पांडियन राजा का पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन था। दक्षिण भारत के लोकगीतों में इतिहास के साथ उस खो चुकी इस सभ्यता का वर्णन मिलता है। नतीजतन, जब इसके बारे में जानकारी देने वाले खोजकर्ता भारत के नगरों में पहुंचे, तब इस लोकगीत और कथा को बल मिला।

तमिल लेखकों के अनुसार आधुनिक मानव सभ्यता का विकास अफ्रीका महाद्वीप में न होकर हिन्द महासागर में स्थित कुमारी कंदम नामक द्वीप में हुआ था। हालांकि कुमारी कंदम या लुमेरिया को हिन्द महासागर में विलुप्त हो चुकी काल्पनिक सभ्यता कहा जाता है। कुछ लेखक तो इसे रावण की लंका के नाम से भी जोड़ते हैं, क्योंकि दक्षिण भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला राम सेतु भी इसी महाद्वीप में पड़ता है।

इस महाद्वीप को लेमुरिया नाम भूगोलवेत्ता फिलीप स्क्लाटर ने 19वीं सदी में दिया था। सन् 1903 में वीजी सूर्यकुमार ने इसे सर्वप्रथम कुमारी कंदम नाम दिया। कहा जाता है कि यह कुमारी कंदम ही रावण के देश लंका का विस्तृत स्वरूप है, जो कि वर्तमान भारत से भी बड़ा था।

फिलीप स्क्लाटर ने मेडागास्कर और भारत में बहुत बड़ी मात्रा में वानरों के जीवाश्मों के मिलने पर यहां एक नई सभ्यता के होने का अनुमान व्यक्त किया था। उन्होंने इस विषय पर एक किताब भी लिखी जिसका नाम The Mammals of Madagascar है, जो कि 1864 में प्रकाशित हई थी। कुमारी कंदम का क्षेत्र उत्तर में कन्याकुमारी से लेकर पूरब में ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट और पश्चिम में मेडागास्कर तक फैला था। 

(नोट : इस आले के अधिकतर तथ्य विभिन्न वेबसाइटों से संकलित किया गए हैं। कुछ तथ्य अपनी ओर से भी डाला हूं साथ ही संपूर्ण आलेख का संपादन मैंने खुद किया है।)

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